मुझे अब भी याद है
तुम्हारे आँखों का
वो कशिश ..
कैसे मैं बंध गई ?
उम्र भर के लिए ..
बगैर कोई संवाद के ही
आँखें सब बोल देती ..
यादों के भंवर से
मैं अब भी
निकल नहीं पाती ..
एक अजीब सी
एहसास में खो जाती ..
तुम्हारे आने पर
एक मीठी सी हलचल
दिल में शोर मचा देती ..
सचमुच मैं अब भी
खुद पर और
अपने चुनाव पर
फक्र हूँ करती ..
हमारे प्रीत की
गहराईयाँ सागर से
भी अधिक ...
तुझमे मेरी जान
हमेशा से ही बसती..
तुम्हें पाकर मैं
अपने किस्मत
पर इतराती ..
कभी कभी सोचती
तुम मेरे किसी जन्म के
तपस्या का हो वरदान
हाँ हो सचमुच तुम मेरी जान..
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