Sunday 29 October 2017

सांझ

जीवन के सांझ
कोई संग न साथ
बिन साथी के
 उम्र लगे बोझ ..

किस से करूँ बात
देता न कोई साथ
मन बहुत पीड़ित
जीवन हुए उपेक्षित ..

आई झंझावात कैसी
कर दिया तहस नहस
अस्तित्व ही डगमगा गया
 व्यक्तित्व का न कोई मूल्य..

उम्मीद न थी कभी
भूल जाएँगे सभी
तड़पाएगी बेचारगी
ऐसे लाचार बन जाएँगे..

बनेगी ऐसी हालात
मिट जाएँगी हस्ती
किसी पे बोझ बन जाएँगे
बिन अपनों के तरस जाएँगे

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