कभी कभी हालात
मुश्किलों में डाल देते
करें क्या समझ न पाते
परिस्थितियों के आगे
सभी नतमस्तक होते ..
बूढ़ी काकी हो गई इतनी
शरीर से कमजोर पर हिम्मत
अब भी जवानों पे भारी
अपने घरों में अकेले ही रहती
बच्चों के पास जाना न चाहती
मेरा घर बरबाद हो जाएगा
सबसे वो यही कहती ..
लोग बाग बच्चों को कोसते
सब सोचते बूढ़ी काकी
बताना न चाहती ...
बच्चे भी माँ की इच्छा जानकर
छोड़ दिए उनके हालात पर ..
हाल चाल लेने कभी कभी आ आते
सब ठीक ठाक चल रहा था
एक दिन बूढ़ी काकी को दौरा पड़ा
इतने बड़े घर में बेसूध थी पड़ी
कई घंटे बाद आए कोई पड़ोसी
देखा बूढ़ी काकी को बेहोश
सभी पड़ोसियोंको बुलाया
फिर सबने डॉ को बुलाया
बूढ़ी काकी फोन नम्बर
रखती डायरी में संभालकर
सबने बुलाया बच्चों को फोन कर
किसी तरह बच गई बूढ़ी काकी
अब फिर वही सवाल वो जाना ना
चाहती किसी के साथ सब परेशान ..
आखिर कौन सी व्यथा थी?
वो कौन सी अंतरद्वन्द थी ?
जो किसी से कहना न चाहती थी?
कौन सी वजह थी ? कैसी परिस्थिति थी?
जो अकेलेपन का दंश सह रही थी?
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