गुलाबी धूप जाड़े की
बरबस खींच के
यादों के पार लेके
ऐसे चली जाती जैसे
बात हो कल की..
दलान पर कुर्सियों के
भीड़ में सब लीन गप्पों में
मस्त अपने कामों में
चाय की चुस्की के
साथ चर्चा देश दुनियाॅ की ..
पापा मम्मी व संग भाई के
शरारतों और कहकहों के
बीच माँ के हाथों का
स्वादिष्ट लड्डुओं व संदेश को
आज भी मचल जाता मन पाने को..
वो रजाईयों में साथ दादी के
अपनी अपनी कहानियों को
सुनाने की जिद्द सभी बच्चों की
और बात जिसकी पूरी न होती तो
फिर सबके बीच धमा चौकड़ी
यादें आज भी भींगो जाते नयनों को ..
गोबर के उपलों को जलाकर
दादा जी के धुनी के चारों ओर
सब का बैठकर जाड़े से ठिठुरे
तन को आग की गर्मी से तपाना
फिर चलता सिलसिला दादाजी के प्रश्नों का
सबों को देना ही पड़ता उत्तर
वो सुनहरी यादें कभी न भूलता मन ..
जीवन में हम कितने ही कुछ पा ले
भरे हो घरों में खाने के अनेको सामग्री
छुपा के रखे शीशे में देशी घी के लड्डू
बचपन में चुपचाप चीजें चुरा कर
खाने का मजा ही था कुछ और ...
जीवन में वो पल होते न कभी औझल ..
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