Wednesday 13 December 2017

वजूद

अजीब हाल  शुकुन ए दास्ता का
 चारों ओर घिर रखा है सन्नाटा ..
सुनसान है दिल का हर एक कोना
रातें फैला रखी है हर तरफ अंधियारा
चाहत तो होती है एक पल शुकुन की ..
पर किसी को इतना भी न मिले एकाकी   ..

सभी के हिस्से में थोड़ा गम थोड़ी खुशी
परमात्मा भर देते हैं आंचल सभी की
जब खुशियाँ मिलती तो छप्पर फाड़ के
आँसू देते तो दरिया भी छलक पड़ता
जाने क्या जिद्द होती है जिन्दगी की
अपने हर रंग से रूबरू कराने की

आँधियों की फितरत होती है जिन्दगी को
तबाह कर सब कुछ तहस नहस करने का
पर अपनी भी जिद्द है तूफानों से लड़ने की
हौसलों के दम से डूबने ना देंगे किस्ती को
संघर्षों के बल पर बिखरने न देंगे वजूद को
इतना तो हिम्मत अभी मुझमें है बाकी..
 

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