प्रियतम के आस
आज हुए साकार
बरसों के बिछुड़े
सजन आए जो पास ..
धड़कनें मचाए शोर
हजारों घंटियां
कानों में बजने लगी
दिल बहकने लगे
आरजुएं मचलने लगी
खुद से बगावत करने लगी
अब न चले दिल पे जोर ..
मिलन की बेला
आई गई जो पास ..
बहारों के मौसम
साजन के साथ
लगे कुछ खास
मन के मयूर झूमें
एक दूजे में खोये
मिल रहे हों जैसे
धरती और गगन
सदियों की प्यास
बुझने लगी आज ..
अतृप्त आत्मा
को मिल गया जैसे चैन ..
अजब ही रिश्ते
में बंधे दो प्रेमी
दोनों के बिना
वो होते अधूरे ..
एक दूजे के संग
सुख और दुख
सपने व खुशियाँ
मिल के ही बाँटते
जीवन के धूप-छाँव
साथ ही साथ
करते व्यतीत ...
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