Sunday 7 January 2018

कसाई पुत्र

कहाँ गए वो राम सा बेटा
जिसने पूछे बिना सवाल
चले गए चौदह साल वनवास
पिता के आज्ञा मान सब सुख
छोड़ त्याग दिया राजमहल ..
माँ की ममता से बगैर पिघले
तनिक भी उफ किए बिना
हँसते हँसते गए वन को प्रस्थान  ..

वो श्रवणकुमार जो काँधे पे टांग
कराया मात पिता को हर तीर्थाटन ,
दिन रात सेवा करते नहीं थके
वो आखिर कैसे पुत्र थे महान !!
आखेट पे लगे तीर की न थी उसे फिकर,
प्यासे माँ पिता की चिंता में घुलकर
विनती पानी पिलाने की करते करते
राजा से, दे दी उन्होंने अपनी जान ..
 
कल टीवी पे समाचार देखके
हुआ व्यथित जाने कितना मेरा मन
राम के धरती पर ये कैसा कसाई पुत्र
बीमार माँ को घसीट घसीट के टैरेस पे
ले जा लिया जान, चुपचाप देके धक्का
आत्महत्याका नाम दे, उल्लू बनाया सबको

 माँ पिता अपने बच्चों के खातिर
दिन रात मेहनत कर जोड़ पाई पाई
करते सुंदर उसके भविष्य निर्वाण
बच्चों की खुशियों से बढ़कर
चाहत न होती उसे कोई ओर ..
फिर कहाँ होती आखिर चूक
जो बच्चे हो जाते इतने निर्मम निर्दयी ..

 

 

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