प्यार का सुरूर कुछ ऐसा ही होता
बस में अपना कुछ भी नहीं होता
कितने ही बंदिशें बैठा लो मन पे
सारी कोशिशें बेअसर ही रहता
वो कितना ही बेवफा सनम होता
फिर भी दिल उसी को याद कर रोता
जमाने भर की रूसवाईयाँ सहता
खुदा से दुआ उसी के लिए ही मांगता
तन्हाईयों में भी दिल कितना ही रोता
दीवानगी प्रेम की खत्म नहीं होता
प्रेम में चाहे कोई कितना ही लुटता
पर खाक में मिलके प्रीत जिन्दा रहता
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