सुन वो नन्हा बालक
ज्ञान की पंख लगाके
उड़ना तू आकाश तलक
बढाना मान माता पिता का
न करना अपमान नारी का
मशाल अपने हाथों में लेके
नई राह दिखलाना जग को
जनम देके माँ तुझको
सुन्दर सृजन दी धरा को
करना गौरवान्वित उनको
करना न शर्मशार कोख को
वर्ना रोयेगी ममता उनकी
सुन वो नन्हा बालक
नौ महीने गर्भ में रखके
नई दुनिया दिखाती शिशु को
होता नया जन्म स्त्री का
बेटा हो या बेटी टुकड़ा उनके दिल का
रगों में एक ही खून बहते दोनों के
सपना हर माता पिता का
राहों पे चले संतान नेकी के
करें ऐसे काम नाज हो सबको
देख उसके बुद्धि व विवेक
बन जाए वो पथ प्रदर्शक विश्व के
सुन वो नन्हा बालक
क्यूँ पथ से गए भटक
वासना के ज्वाला में युवक
क्यों कर दर्द देते लड़की को
बनाकर शिकार अपने हवस का
भूल गए स्त्री के खून मांस के
हिस्से से बना है शरीर उसका
सुन वो नन्हा बालक ..
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