Sunday 9 September 2018

आसक्ति

अतुकान्त/ छन्द मुक्त सृजन

आज हर संबंधों में
लगाव कम और
दिखावा अधिक है
फायदे और नुकसान
के तर्ज ही रिश्ते के
आधार हो रहे हैं
ममता खून के
आँसू पीती है
सपूत स्वार्थ में लिप्त है
पल पल वो दूर हो रहे
माँ के दूध का कर्ज
चुकाए बगैर ...
जाने क्यों वो
मतलबी हो रहे ..
सब उलझे हुए हैं
अनंत इच्छाओं के
मकड़जाल में ..
अपनी ही परिधि में
सभी घिरे हुए हैं ..
लालसाओं के
कुपमंडुताओं से
बंधके अपने ही
फर्ज से मुख
मोड़ रहे हैं ...
क्यों न स्वार्थ
की बेड़ियों से
मुक्त रखें खुद को
सफर आसानी से
कट जाएगी ...
जब जाना ही है
एक दिन सबको
छोड़ के ..
क्यों ना खुद को
दूर रखें आसक्ति के
भंवर जाल से ...



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