विधा- कुण्डलिया
प्यासा है जग नीर बिन , बहा नीर न इन्सान
बिन नीर नहीं जिन्दगी , धारण कर यह ज्ञान
धारण कर यह ज्ञान , समस्या जग की सुलझे
अगर चाहिए नीर , बचा जल उलझन उलझे
भरे झील तालाब , देना खग पशु दिलासा
खर्च हो बूँद बूँद, नहीं हो कोई प्यासा
धरती विकल अब वृक्ष बिन , मानव है नादान 2.
बिना वृक्ष ऋतु बदल ता , वन बहुत मूल्यवान
वन बहुत मूल्यवान ,पहुँचा न नुकसान इसे ।।
काट नहीं अब वृक्ष , चेतावनी मान इसे
सभी लगाना पेड़ , प्रकृति सम्मोहित रहती ।
अधर सजे मुस्कान , रहे हरी भरी धरती
सूना वन लग रहा है , हरियाली है लुप्त 3.
होते शिकार नित्य पशु , अनगिन जंतु विलुप्त ।
अनगिन जंतु विलुप्त ,मनुज आखेट लुभाते
मारे चीता शेर, खाल बेच धन कमाते ।।
असुरक्षित वन जीव ,वनों की हानि दूना
संरक्षण हो सृष्टि , बिना पौधे वन सूना ।।
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