Thursday 18 October 2018

मुरादें

विधा-ग़ज़ल
रदीफ -कब तलक

धीरज ने दामन छोड़ा खुशियाँ मिलेगी कब तलक
गमों से परेशान जिन्दगी आस दिलाएगी कब तलक

चाहत थी फूलों भरी राहों से जिन्दगी गुजरती रहे
लहूलुहान हुए पथ काँटे पग चुभाएगी कब तलक

अरमां की झोली किस्मत वालों की ही भरी रहती
न जाने अधूरी मुरादें हमको तरसाएगी कब तलक

इन्सान तो ईश्वर के कठपुतली वो जैसा चाहे वैसा करते
विश्वास की डोर आखिर टूटने से बचाएगी कब तलक

जितने ही ले वो इम्तहान एक न एक दिन आएगी बहार
पतझड़ के मौसम आकर बार बार रूलाएगी कब तलक

उषा झा  स्वरचित)
उत्तराखंड देहरादून)

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