Monday 29 October 2018

बावरा मन

विधा- रूपमाला

रूप देख अलबेली की  , गुम हो रहे होश   ।   1.
चाल मस्त मृगनयनी के, कर रही मदहोश ।।
लट बिखरे हैं नितम्ब तक ,रूप लगे अनुपम ।
चाँद सा सूरत अप्रतिम, चितवन भरे प्रेम  ।।

लाज से बहुत सकुचाती , भींगती हो ओस   ।   2.
छवि बसती अब नैनों में, मिलन की है आस  ।।
मन सुमन बरसा रहे हैं , स्वागत करे नैन  ।
राह निहारूँ अब निश दिन  , हिया है बैचेन  ।।

ये घटा घनघोर आई, बावरा मन आज      ।      3.
बह रही शीतल बयरिया,बज रहा दिल  साज ।।
याद में तरसी पिया की , मन है अब उदास  ।
मीठी मिलन की चाह ने , जगाया है प्यास  ।।

ख्वाब में है कौन आया, कर रही महसूस   ।  3.
जनम की संगिनी तेरी, कर न तू मायूस     ।
बने जीवन सफल मेरा, रख अपने पनाह   ।
बनूँ साजन अर्धांगिनी , यही दिल में चाह   ।

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