विधा- रूपमाला
रूप देख अलबेली की , गुम हो रहे होश । 1.
चाल मस्त मृगनयनी के, कर रही मदहोश ।।
लट बिखरे हैं नितम्ब तक ,रूप लगे अनुपम ।
चाँद सा सूरत अप्रतिम, चितवन भरे प्रेम ।।
लाज से बहुत सकुचाती , भींगती हो ओस । 2.
छवि बसती अब नैनों में, मिलन की है आस ।।
मन सुमन बरसा रहे हैं , स्वागत करे नैन ।
राह निहारूँ अब निश दिन , हिया है बैचेन ।।
ये घटा घनघोर आई, बावरा मन आज । 3.
बह रही शीतल बयरिया,बज रहा दिल साज ।।
याद में तरसी पिया की , मन है अब उदास ।
मीठी मिलन की चाह ने , जगाया है प्यास ।।
ख्वाब में है कौन आया, कर रही महसूस । 3.
जनम की संगिनी तेरी, कर न तू मायूस ।
बने जीवन सफल मेरा, रख अपने पनाह ।
बनूँ साजन अर्धांगिनी , यही दिल में चाह ।
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