Monday 27 December 2021

हँसता खिलखिलाता घर मरघट बन गया

*हँसता खिलखिता घर बना मरघट सा*

श्यामानंद झा जी हाई स्कूल के ख्याति प्राप्त साइंस शिक्षक थे ।बहुत ही निश्छल और हँसमुख स्वभाव के
थे वो ।उनको एक पुत्र और तीन पुत्रियाँ है । बेटा सबसे
बडा और क्रमशः तीन बेटियाँ।
वो एक मामूली घर से होने के बावजूद अपनी पढाई पूरी करके एक योग्य शिक्षक बने थे। पढाई के दरम्यान में उनको कितनी मुश्किलें उठानी पडी वो यदा कदा हम बच्चों को सुनाया करते थे। श्यामानंद जी हमारे पडोसी थे ।कभी कभी कोई सवाल पूछने उनके पास सहेली के साथ चली जाती थी। इसलिए हम सबों को प्रेरित करने के लिए पढाई के अतिरिक्त भी ज्ञान वर्धक बातें बताया करते थे। उनके बारे में थोड़ीसी जानकारी उन्हीं के मुख से सुनी ।पढने में उन्हें बहन ने मदद की थी ।
अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए और बच्चों को हर सुविधा मुहैया कराने के लिए श्यामानंद जी खाली समय में ट्यूशन करते थे । चूँकि वो शहर के माने हुए शिक्षक थे इसलिए ट्यूशन के कई बैच उनके चलते थे।
जल्दी ही किराये के मकान से अपने स्वनिर्मित घर में
चले गए । बेटा - बेटी भी पढ लिख गए ।चमचमाती
कार भी एक दिन दरवाजे का शोभा बढाने लगी ।
बेटा और दो बेटियों की शादी भी उन्होंने समय पर कर दी ।अब एक बेटी की जिम्मेदारी थी और रिटायरमेंट का
समय दो साल बाकी था । इसलिए किसी भी तरह की
परेशानी से मुक्त थे । वैसे भी मैंने चिन्तित उन्हें कभी
नहीं देखा ।उनके चेहरे की मीठी मुस्कान देख सब मुग्ध
हो जाते थे ।उनकी पत्नी का स्वभाव थोडा झक्की था ।
वो कभी झल्लाती तो श्यामानंद जी की मीठी मीठी बातें
सुनकर तुरंत ही शांत हो जाती थी ।
श्यामानंद जी की ड्यूटी चुनाव में लगाई गई थी चूँकि दो- चार दिन पहले उन्हें पेचिस हुआ था सो कमजोरी आ गई थी,इसलिए अपने बेटा को ड्यूटी पर अपने संग ले गए । उनके जाने के दूसरे ही दिन उनकी मौत की खबर से पूरा शहर सन्न रह गया । सहसा किसी को विश्वास ही नहीं हुआ ।उड़ती खबर आई कि बेरोजगार बेटा नौकरी पाने की लालच में खाने में कुछ मिला दिया ।
खैर मैं तो इन बातों को झूठ मानती रही । पर इस घटना
के बाद श्यामानंद झा जी के घर की स्थिति को देखते हुए मन में संदेह भी होने लगा था। आए दिन माँ बेटा में कहा सूनी होती थी ।बेटा बाप के पूरे पैसे को हड़पना चाहता था ।पर माँ अपनी कुँवारी बेटी के लिए पैसे
जमा रखना चाहती थी ।खैर दो आदमी के अनबन में
तीसरा फायदा उठा लिया ।उनके बड़े दामाद जो उनके
घर के पास ही रहते थे , अपने सास और साली को सपोर्ट करने के नाम पर उन्हीं के मकान के पीछे वाले हिस्से में शिफ्ट हो गए । सास सारे पैसे बेटी दामाद के नाम पर जमा करवायी ताकि , छोटी बेटी की शादी में दिक्कत न हो ।धीरे धीरे वह बहुत विश्वास पात्र बन गए
और पूरे घर को मुट्ठी में कर ली ,और बेटा घर का खलनायक बन गया ।जाने किस गम में , अपने कुकर्म या
पापा के खोने के गम या , माँ के रवैये के कारण वह
सिजोफ्रेनिया का शिकार हो गया । एक दूसरा कारण उस
लड़के की बीवी भी थी , जो कभी ससुराल में बस ही नहीं
पाई , आती भी तो सास बहू के खटपट शुरू हो जाते ।
उसपर पति भी निकम्मा, आजिज होकर बहू मायका लौट जाती थी। बहरहाल जो भी कारण हो पर सबके नजर में बेटा संदिग्ध व्यक्ति बन गया था ।
साल भर आते आते श्यामानंद जी का हँसता खिलखिलाता परिवार बिखर गया । घर कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया था । रिश्ते नाते पड़ोसी सब दूर दूर रहने
लगे । निकटवर्ती पडोसी होने के नाते हमें सब कुछ पता
चल जाता था।
वार्षिक कर्म के बाद बेटी के विवाह के लिए श्यामानंद जी की बीवी बडे दामाद पर दवाब डालना शुरू कर दी , क्योंकि बेटा तो पहले ही दिल से दूर हो गया था , दामाद ही वफादार दिखते थे ।जब जब लडका ढूढने की बात चलती दामाद कल परसो कह कर बात को टाल जाते थे।
दो तीन महीना ऐसे ही बीत गए ।जब सास का धैर्य
जवाब दे गया तो कुछ कडक स्वर में दामाद को आगाह कराई कि मुझे इसी वर्ष शादी करानी है , इसलिए कहीं न कहीं इसी माह में रिश्ता तय कर लो ।
उसी रात के दूसरे दिन कहीं रिश्ते देखने दामाद गए ।
सास शांत हो गई ।पर तीसरे दिन सबह सुबह चीख पुकार सुन मेरे मम्मी पापा और अन्य पडोसी श्यामानंद जी के घर दौड़ पड़े ।वहाँ के दृश्य देख सभी अचंभित रह गए । छोटी बेटी माधवी के गले में फंदा लटका हुआ था । आँखे खुली थी ।वह इस दुनिया को छोड परलोक सिधार
चुकी थी । पुलिस आई पोस्टमार्ट के लिए बाॅडी ले गए ।रिपोर्ट में आत्महत्या नहीं हत्या करार दिया गया।
किसी ने हत्या करके उसे लटका दिया था ।इस बार शक
कि सूई दामाद की और थी ।सुनने में आया वो सारे पैसे
हजम कर लिया, जिस गम में श्यामानंद झा जी की पत्नी
विक्षिप्त दशा में चली गई और कुछ महीने के बाद गुजर गई । वह घर अब भी है , वहाँ मरघट सा सन्नाटा है ।
पिता के रिटायर होने से पूर्व दिवंगत होने के आधार पर
बेटा कलर्क बन गया था और खुद को घर से अलग कर लिया था , अब वह अकेले यहाँ रहता है ।दामाद उसी समय अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर चले गये थे।
कहने को श्यामानंद जी के दो पोते भी हैं पर वो नानी घर
पले बढे तो वहीं के होकर रह गये क्योकि बहू तो ससुराल
में बस ही नहीं पाई ।पति ही पत्नी के पास यदा कदा चला जाता था जिस कारण कुल के दो चिराग प्रज्वलित है....... ।

*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून













स्वार्थ में पगे रिश्ते (कहानी)

मेरे पड़ोस में एक पंजाबी परिवार रहता है।उनकी तीन बेटियाँ और एक बेटा है। मीनू, पिहू, गीत और परमिन्दर क्रमशः इनके नाम हैं । स्वभाव से पंजाबी दम्पत्ति सरल व मितभाषी हैं। शायद तेज तर्रार नहीं थे तभी इनका बिजनेस भी न के बराबर ही था ।बस दो गड्डी(ट्रक) खड़ी
है माल ढ़ुलाई ( रेत, बजरी) के लिए । घर की माली स्थिति दयनीय देख बड़ी बेटी बी .एस .सी .के बाद घर से ही होम ट्यूशन चलाने लगी ।देखते ही देखते बच्चों की भीड़ मीनू के दरवाजे पर दिखने लगी ।मीनू ने अपने घर को संभाल लिया ।वो अपने पिता के मजबूत कंधे बन गई थी। घर ,भाई बहनों के केरियर सँवारने में खुद को उसने झोंक दिया ।इधर परिवार तो संभलता जा रहा था पर दूसरी तरफ उसकी शादी की उम्र भी निकली जा रही थी ।कोई न कोई अक्सर उसे पूछ ही डालते ...
" अरे मीनू तुम कब शादी करोगी ? आखिर हर लड़की को अपना घर तो बसाना ही पड़ता है ..! "
" तुम्हें भी अब शादी के बारे में सोचना चाहिए .. ?"
इस पर मीनू ने कहा - "अभी तो मुझको बहुत सारे काम करने हैं । घर भी नहीं बना है , भाई बहनों की पढाई
अधूरी है । ऐसे में कैसे शादी कर लूँ ? "
तीनो बहनें कमसीन और खूबसूरत थी, हर किसी के मुँह से उनके लिए तारीफ ही निकलती थी । हर किसी को उनकी शादी की फिकर हो रही थी पर ,उसके माता पिता
तो आँखें ही मूँद रखे थे । काॅलोनी में सब उनके लिए स्वार्थी, बेटी की कमाई खाने वाले ,मक्कार माँ बाप जाने
क्या क्या बोला करते ? इन बातों में कुछ तो सच्चाई थी और कुछ फालतू भी ।कारण दोमंजिला खड़ा हो गया था, बड़ी सी कार आ गई ,बच्चे पढ लिख भी गए थे ।
अब तो उन्हें मीनू की शादी कर ही देनी चाहिए थी , पर जब पूछो तो कहते ,"रब जाने उनके बगैर तो कुछ होता ही नहीं । जब होने को होगी, हो जाएगी ।"
खैर इसी बीच ,सबसे छोटी बेटी घर से भागकर शादी कर ली ।सुनने में आया वो एक अधेड़ से शादी कर ली है।
उसके बाद मीनू ने भी अपने लिए लड़के खुद तलाशने शुरू कर दिए ।उड़ती उड़ती खबरे सुनाई दी कि , अपने ही शुरूआती दिनों के ट्यूशन वाले छात्र, जो मर्जन्ट नेवी में इन्जिनियर था, उसी से शादी तय हो गई ।
मुझे याद है जिस दिन मीनू की शादी थी , उस दिन सारी
काॅलोनी ही खुश थे ।हम सभी सज धज के मीनू की हल्दी , मेंहदी और शादी के सभी फंक्सनअटेन्ड किए थे।शादी भी शानदार फार्महाऊस में हुई थी ।सुनते हैं लड़के वाले ने ही अधिकतर इन्तजाम करवाए थे ।
मीनू भी उस दिन बेहद खूबसूरत लग रही थी । छत्तीस की मीनू को उम्र छू तक नहीं पाई थी ।
मैं अपने सखियों के संग मीनू को देखने के लिए मैरिज हाॅल के दुल्हन वाले कक्ष में गई थी ।कारण जयमाल तक रूकना मुश्किल था । उसे देखकर हम विभोर हो गए..
मेरी सरदारन सखी ने कहा ,
" मीनू अब तो हमारी काॅलोनी उदास कर चली जाओगी ।""अब बच्चे किससे पढने जाएँगे ...?"
मीनू मुस्कुराकर रह गई थी... ।
सभी के बच्चे मीनू से ही पढते थे इसलिए सबको उससे विशेष लगाव था ।
मीनू के शादी होने के बाद हमारी काॅलोनी सचमुच सूनी
दिखने लगी ।अक्सर आते जाते पंजाबन के घर पर नजरें
अटक जाया करती थी। मीनू के जाने के थोड़े ही दिनों के
बाद , दूसरे नम्बर की बहन पीहू ने ट्यूसन पढाना शुरू कर दिया।कारण छोटी बहन भाग कर शादी कर ली और
बड़ी बहन की भी शादी हो गई थी ।वोअकेलेपन के उदासी से निकलने की राह ढूँढ ली। वैसे भी अब घर खुशहाल हो गया है । छोटा भाई परमिन्दर अच्छे से बिजनेस चला रहा है । माल ढ़ुलाई के अतिरिक्त भी कई सारे धंधे करता है ।इसी साल के शुरुआत में परमिन्दर की शादी हो गई थी।पंजाबन मियाँ बीवी प्रसन्न मुद्रा में कार्ड बाँटने आए थे ।और सारे फंक्सन में सबको आमंत्रित किए।अब भी सबके मुख पर एक सवाल था ,
"अरे भाभी जी , भाई साहब आपने पीहू से पहले परमिन्दर की शादी कर दी ...!"
"कायदे से तो, पहले बड़ी बहन की शादी होनी चाहिए थी।"
पंजाबन तो मुस्कुराकर सबको कहते, "बहन को भी तो
शौक होता उसकी शादी में भाभी हो ....।"
खैर बेटे की शादी कर मियाँ बीवी खुश थे ,तो लोगों को
कोई हक नहीं बनता ज्ञान बाँचने का ... !
पीहू भी ट्यूशन में मशगूल थी ।सब कुछ ठीक चल रहा था । अचानक एक दिन मेरे पड़ोसन ने कहा ,
"अरे मिसेज झा आपने सुना , वो पीहू ने फाँसी का फंदा
लगा लिया .... ? रात में ही झूल गई थी ।सवेरे अपने कमरे मरी पाई गई है ।
मैं तो अपने मूड़ेर पर खड़ी स्तब्ध रह गई ।बार बार उसकी शकल आँखों के सामने नाचने लगी ।
बाद में पता चला भाई की बीवी से कहा सूनी हो गई थी ।
शायद ऐसी चूभने वाली बातें सुना दी, जिसे सुनकर पीहू
बरदास्त नहीं कर सकी थी..।
सबके जुबाँ पर अब एक ही बात है , "जिस घर की नींव बेटियों ने डाला ,उसी को नाते दार बोझ समझने लगे ।"
*प्रो उषा झा रेणु*
मौलिक (देहरादून)
सर्वाधिकार सुरक्षित






गुल्लू और बिल्लू(बाल कहानी)

बिल्लू और गुल्लू दो जुड़वे भाई थे । एक माँ के कोख से
पैदा होने के बावजूद दोनों विपरीत स्वभाव के थे ।
गुल्लू भोला -भाला और बिल्लू लोमड़ी के तरह लालची
और चालाक ।इस बात को माँ पिता और बहनें समझती
थी ।इसलिए सभी गुल्लू को बहुत प्यार करते थे और
बिल्लू को सभीं से झिड़की मिलती थी ,कभी - कभी
थप्पड़ भी खा जाता था ।
एक दिन बिल्लू ने कहा..." अरे ओ गुल्लू इधर आओ
तुम्हें कुछ दिखाना चाह रहा हूँ !
गुल्लू ने कहा बिल्लू मैं समझ रहा,"तुम मुझे छका रहो हो.. हरदम मुझे फुसलाते रहते हो।"
पर बिल्लू हाथ पकड़ कर खींचते हुए गुल्लू को ले गया,
और गुल्लक दिखाते हुए बोला ..."देखो तुम्हारा गुल्लक
भर गया है...।"
"जरा इसको फोड़कर देखो तो , कितने रूपये जमा हो गए ", बिल्लू ने गुल्लू से कहा ।
गुल्लू के भी मन में उत्सुकता हुई ,और वह गुल्लक को
को हिलाकर देखा तो , वह भर भी गया था ।
उसने आव- देखा- न ताव देखा खट से जोर से जमीन पर पटक दिया ।इतने सारे पैसे देख बिल्लू के मन उथल पुथल मच रहा था । फिर उसने गुल्लू से कहा ,
"मैं भी पैसे गिनने में तेरी मदद कर दूँ....।"
"गुल्लू ने कहा हाँ -हाँ भाई जरूर , तुम मदद कर दो ।"
इधर ढेरों पैसे देख बिल्लू के मन लालच आ गया था ।
वो तरकीब लगा रहा था कैसे ,गुल्लू से पैसे ठगे जाए ।
पैसे गिनते- गिनते बिल्लू ने कहा ,"देखो गुल्लू तुम्हारे
कितने सारे पैसे काले पड़ गए हैं।"
देखो भाई ये पैसे तो भदवा पैसे ( बेकार) माने जाएँगें।"
"भाई इसे फेंक दो , इससे तो कुछ नहीं आएगा ।"
गुल्लू ये सुनकर मायूस हो गया ।फिर बोला ,
"ठीक है इन पैसों को नाली में फेंक देते हैं ..।"
बिल्लू ने बड़ी चालाकी से कहा , अरे मैं फेंक आता हूँ
गड्ढे में इसको ।"
"गुल्लू ने कहा मैं भी चलता हूँ तेरे साथ ।" पर बिल्लू ने
होशियारी दिखाई फिर कहने लगा , "तू बाकि पैसे तब
तक सँभाल ले ।" नहीं तो ये पैसे कोई उठा लेंगे ।
"तब तक मैं भदवा (बेकार ) पैसे को फेंक आता हूँ।"
और बात पूरी करते करते वह तेजी से उड़ गया ।
सारे पैसे को किसी नल के पानी से चमकाया और जाने उस पैसे से क्या क्या खरीदा... ।
चहकते हुए वह घर जब लौटा तो बिल्लू के हाथ खिलौने
खाने के सामान से भरे थे । गुल्लू ललचाई नजर से भाई को देख रहा था । कहने लगा मुझे भी दे दो । पर वह तो एक दाना भी देने को तैयार नहीं था । उसने कहा ,
"ये मैंने अपने पैसे से खरीदा है ।तुम्हें कैसे दे सकता हूँ ।"
।गुल्लू के आँखों में आँसू भरे थे । पर वह चुपचाप घर के अन्दर चला गया । माँ ने जब गुल्लू को उदास देखा तो पूछने लगी ," कहो गुल्लू क्या बात है क्यों रोनी सूरत बना रखे हो।"
उसने बिल्लू के तरफ इशारा किया कहा "भाई मुझे नहीं दे रहा चीजी खाने को ।"
माँ पापा ने फिर कड़क कर कहा कहाँ से लाए पैसे बताओ ?तुम्हारा गुल्लक तो भरा है ।हमने पैसे दिए नहीं , सच -सच बता कहाँ से पैसे लाया ।माँ -पापा के डर दिखाने पर बिल्लू सच उगल दिया ।उस दिन उसकी खूब धुनाई हुई । फिर बिल्लू को मुर्गा बनाकर कसम खिलाई गई कि कभी किसी के साथ धोखा नहीं करेगा ? न कभी
झूठ बोलेगा वह ?
उस दिन के बाद से बिल्लू में बहुत परिवर्तन आ गया था ।
धीरे धीरे वह अच्छे बच्चे बन गए थे ।

*उषा की कलम से*
उत्तराखंड देहरादून
यह मेरी स्वरचित मौलिक रचना है ।साथ ही अप्रकाशित
अप्रेशित रचना है ।