Wednesday 27 November 2019

जीवन के संताप

विधा - रोला 

ढलती जीवन साँझ , सुहाने पल हैं  बीते ।
फिसल गया जब वक्त , मनुज क्यों लगते रीते।।

पले दिलों में मोह , जिन्दगी व्यर्थ गँवाया ।
 किए नहीं जब कर्म, मनुज क्यों फिर  पछताया ।।
कटी नींद में उम्र ,  भुलाया नाते रिश्ते ।
जीवन संध्या पास , शीष पकड़ क्यों सिसकते  ।।
करते छल दिन रैन , गम संताप के पीते ।
फिसल गया जब वक्त, मनुज क्यों लगते रीते ।

तन से निकले प्राण, उड़े पिंजरे से देखो ।
धन दौलत बेकार , जरा तुम यही परेखो ।
गया  नहीं कुछ संग,   रटै तू   तेरा    मेरा   ।
धन बल का अभिमान, बँधा माया का फेरा ।।
धोया कब मन मैल , हरदम स्वार्थ में जीते   ।
फिसल गए जब वक्त , मनुज क्यों लगते रीते ।।

तुम जो बोये बीज , काटता फसल उसी का ।
त्याग दिया संस्कार, निभाया न फर्ज सुत का ।।
आई जीवन शाम ,मन अब लगे अकुलाने  ।
खुशियाँ होती बाँझ , भय फिर लगते समाने ।।
होता  यौवन  खत्म  , अश्रु नयन हैं  पीते  ।
फिसल गए जब वक्त,   मनुज क्यों लगते रीते ।।

ढलती जीवन सांझ, सुहाने पल हैं बीते ...।।

Monday 25 November 2019

शब्दों की शह और मात


 विधा-  दोहे

बाजीगर दिन रैन ही , सोचता नव बिसात  ।
खेल अनोखा खेलता, शह को मिलता मात ।।

हार जीत के खेल में, जीवन जाए बीत ।
व्यर्थ वाद विवाद करे, गाते अपनी गीत  ।।

दुख सुख जीवन चक्र है, मिले हमें  सौगात ।
प्रतिकूल अनुकूल बने , तम की कटती रात ।।

स्याह हृदय सफेद करें, ले लो प्रभु का नाम।
नफरत बदले प्यार में ,नेक करो कुछ काम।।

फैले प्रकाश हर्ष का , छँटे उर  अंधकार ।
जगमग अब घर द्वार में ,सुख बरसे आगार ।।

पथ अधर्म का छोड़ दो, मानवता ही धर्म ।
त्याग दया है मनुजता, मनुज करो कुछ कर्म ।।

 ऊँच नीच में मनु बँटा, मानसिकता  बिमार ।
 दीन -धनिक दिल कब मिले,नैन धन का खुमार।।


खिले हृदय पुहुप

विषय- सुगंधित ,सुरभि,  खुशबू , महक , सौरभ 
विधा - दोहा  (गीत)

दस्तक सर्दी दे रही, लगे सुहावन धूप ।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगतीं हमें अनूप ।।
मन विभोर खुशबू करे , बिखरे हरशृंगार ।
रोम रोम सुरभित हुआ, निखर गया है रूप ।।

मन आंगन पुलकित हुआ, गेह झर रही प्रीत ।
कुसमित है गुल बाग में, हृदय सुगंधित शीत ।।
प्रेम तिक्त उर में भरा , दूर है अब विरक्ति ।
प्रीतम जब हो पास में, हृदय भरा आसक्ति  ।।
प्रीत धार में डूब कर ,  उर नव धरा स्वरूप ।।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगतीं हमें अनूप।।

मुग्ध शीतल नैन भये, किरण मुदित है ओस ।
पुलक मंद समीर रहे , मुग्ध भोर मदहोश ।।
पुष्प लुटा सौरभ रही, भ्रमर गा रहा गीत ।l
 मदहोश हुए प्यार में , मन को भाये मीत।।
इतना जादू प्रेम में , बदल गए सब भूप ।।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगती हमें अनूप ।

कोंपल कलियों की खिली ,नैन हुए  रंगीन ।
उन्माद बढ़ा भ्रमर का ,तरसे जल बिन मीन ।।
 साँझ सुगढ़ मन हेरती , धरती उतरा  भानु ।
आकांक्षा  प्रीतम मिलन  , प्रमुदित हृदय कृशानु  ।।
पावन प्रीत अमर भये , हृदय में खिले पुहुप ।
दस्तक सर्दी दे रही , लगे सुहावन धूप ।
पर्वत तरु पर रवि किरण,  लगतीं हमें अनूप ।।
  

Thursday 21 November 2019

खो न जाए भरोसा

विधा - इन्द्रवज्रा वर्णिक छंद
221    221   121   22
थोड़े गमों में घबरा न  जाओ 
थोड़ी खुशी मेंं इतरा न जाओ
आए न कोई फिर भी बुलाओ
रिश्ते पराये सब से निभाओ ।।

दोनों हथेली पर हो भरोसा
तो जीत आसान बने हमेशा
दे भाग्य को तू कबहूँ न दोषा
कर्तव्य हीना न मिटे कुदोषा ।।

टूटे दिलों को तुम जोड़ देना
रूठे न कोई यह सोच लेना
रास्ते सभी जीवन में खुलेंगे
मुस्कान तेरे लव पे सजेंगें ।।

काँटे कभी मंजिल क्यों न रोके
ओ वीर खाना अब तो न धोखे
हारो न यूँ हिम्मत बुद्धि मानों
ओ सैनिकों धीरज अस्त्र जानो ।।

हो राह में संकट घोर यारो
काँटे बिछे हों फिर भी न हारो
शूलों भरे दामन पीर पाता
आशा न हो जी कब कौन पाता ।।
_________________________

Tuesday 19 November 2019

अनुपम अहसास

विधा- रोला

चोटी ढकती बर्फ , श्वेत धवल पर्वत दिखे  
देवदार औ चीड़ ,शीश किए ऊँचा दिखे ।।
छू लो बादल हाथ,  रूई सा उजले दिखे  ।
सुन्दर  नैनाभिराम, दृश्य पहाड़ों के दिखे ।।

 लौटे पंछी नीड़ , वे मधुर मिलन को गेह ।
दो दिल खोया प्यार, भर रहे  नैन में नेह।।
आयी सर्दी द्वार,    बिखर हरशृगांर गए। 
नया नया अहसास, मचल हृदय फिर भी गए ।।

आनंदित हर पोर, रोम रोम छाया नशा ।
आये साजन साथ,आज झूमती हर दिशा
हर्षित मानव मुग्ध , रश्मि छिटकती ओस है ।
खिले पुष्प सब बाग , मुग्ध नैन मदहोश है।।

सुरभित कानन मुग्ध,चूस अलि मकरंद रहे।
सुप्त हिया अनुराग, नैन झूम प्रीतम रहे ।।
मुक्त हुआ तन तप्त , गात शीतल, लिहाफ में ।
भींग रहा मन प्रीत ,बँध प्रीतम की बाँह में ।।

उषा झा

Monday 18 November 2019

मन ही दर्पण

विषय - दर्पण/ शीशा
विधा-  रोला 11/13
मद का दर्पण नैन, भ्रमित मनु कुन्द सोच है ।
सच से सब बैचेन , मृग पाने की खोज है।।
उड़ते नभ,बिन पंख, गिरेंऔधें मुँह धड़ से।
दर्पण में है सत्य, सुख जिंदगी में बरसे।।

दर्पण खोले पोल ,झूठ कभी न वो बोले ।।
सभी मुखौटे खोल, ज्ञान से खुद को तोले 
खुद को भीतर झाँक, धरातल पर रख पग, लो ।
चेहरा नहीं झाँप, हृदय सुन्दर हो पगलो! ।

मन से बना जवान, मिश्री उर में घोलता । 
कहाँ छुपे हैं सत्य ,दर्पण सब सच बोलता 
छुड़ा हाथ को वक्त, बढ निर्मोही  रहा है।
आईना वो देख, बाल श्वेत गिन रहा है ।।

भटक रहा दिन रैन, कभी न हृदय में झांका ।
कर्म नहीं थे नेक,नियम  न किसी  पर आंका ।।
समय गया जब बीत , फिर क्यों मनुज पछताया ।
मन दर्पण से पूछ , झूठ खुद को  बतलाया ।।

रोक न सकते उम्र, बाँट प्रीत  संसार में ।
दर्पण बना चरित्र , जलो नहीं अंगार में ।।
उत्तम नेक विचार, मिले सम्मान सभी से
बाह्य रूप बेकार, कहे ये दर्पण सबसे ।।




उषा झा

Saturday 16 November 2019

सपना हुआ साकार

विधा- रोला 

बसे पिया परदेश, याद हर क्षण आता है ।
मिले न कोई संदेश, चैन न हृदय पाता है ।।
मीरा के उर कृष्ण , ढूंढती वन सांवरिया ।
दर्शन की है प्यास,बन गई वो सांवरिया।।

भर कर मन विश्वास,हेरती राह पिया की।
आयेंगे पिय पास, बुझायें अगन, जिया का ।।
नित्य देखती स्वप्न , सजन थामे हैं बैया ।
 पी करते मधु बात ,नींद छीने री दैया ।।

प्रीतम  से अनुबंध,  कई जन्मों का मेरा ।
अनुपम अति सम्बंध, राधा कृष्ण का घेरा।।
दिल में केवल चाह,मिलन हो चाँद निशा सा ।
टूटे कभी न प्रीत , लगे उर को अपना सा ।।

  नैन सजाती ख्वाब, सावन मोरा अंगना ।
   रूप लिया संवार ,  कब आयेगें  सजना  ।।
   मुदित हृदय दिन रैन, प्रेम मिला उपहार है।
    निर्मल मन आकाश, स्वप्न हुआ साकार है ।।

उषा झा

Friday 15 November 2019

बरसे प्रीत फुहार

सजना  तेरा  साथ, दिया औ'  बाती जैसा ।
थाम लिया जो हाथ, जीवन मधुमास जैसा ।।
खुशियों का आधार ,सभी है पिया तुम्हीं से ।
झरता हरसिंगांर,महकता जिया तुम्हीं से ।

मन है गेंदा फूल, पिया उर वीणा  बाजे ।
पायल छनके पाँव,कंगना कर मे साजे।।
हृदय पगी है प्रीत, पिया ही दुनिया  मेरी।
जनम जनम की रीत,प्रीत है पावन तेरी।।

झूलूँ प्रिय गल-हार,अहो सौभाग्य हमारा ।
बसंत आया द्वार, है इन्तजार तुम्हारा ।।
खुश कितना संसार , कहूँ  कैसे  वर्णों मे ।
खुशियाँ नाचे द्वार, पड़ी तेरे चरणों मे।।

लायी बहार प्रीत , मौसम उमंग भरा है ।
आया मन का मीत,हुआ दिलआज हरा है।।
खिलते जब मन पुष्प ,लगते पग भी थिरकने।
रंग भरे मधुमास ,लगते दिल भी पिघलने।।

 हर्षित है खग वृन्द , भँवरे बाग में घूमे ।
कोकिल है आनन्द,  मोरा मन पिया झमे ।।
जग में प्रेम अनूप,जीवन खुशियाँ मनाता ।
जपे सभी दिन रैन, रात दिन खुशियाँ  लाता ।।

चखी  नेह की  बूँद ,पुलकित मन आंगन हुआ ।
बरसे प्रीत फुहार, कण कण रोमांचित हुआ ।।
मीरा  मन  बैराग, अंग प्रिय नहीं लगाता ।
अधर सजे मुस्कान, संग पिया का भाता ।।
उषा झा

Thursday 14 November 2019

बाजीगर

सिंहावलोकित

चालें बाजीगर चली  ,फँस जाते मासूम  ।
मासूम दूध से धुले, पकड़े शातिर दूम  ।।

हृदय में टकराव बढी, आये रिश्ते स्वार्थ ।
स्वार्थ कारण विनाश के, कर मनु कुछ परमार्थ ।।

लालच की पराकाष्ठा , करे करु क्षेत्र  याद ।
याद अनगिनत हृदय में , अपनों में ही  बाद ।।

लालच भारी प्रेम पर, लहू का कहाँ  मोल ।।
मोल जब होता  दिल का, रिश्ता फिर अनमोल ।।

जाना खाली हाथ है , छुपे हृदय क्यों  दाग ।
दाग तो भद्दा दिखता, सजा हिया के  बाग ।।

खुशबू बिखरे बाग में ,लगे अनगिनत फूल ।
फूल काँटों में खिलते , दुख जाते सब भूल  ।।

जीवन दर्शन है यही ,  नेकी दरिया डाल ।
डाल अहं की हविश मनु, नहीं भ्रम को पाल ।।

प्रेम के वशीभूत हरि

विधा- शृंख्ला दोहे 
वशीभूत हरि प्रेम के, हृदयंगम में  भक्त ।
बँध जाते है स्वयं हरि,नियम खत्म सब सख्त।

 नियम खत्म जब सख्त हो , बहे व्यर्थ में  रक्त ।।
मनुजता पर चोट जब, तब मर्यादा  जप्त 

तब मर्यादा जप्त हो ,आता हरि को क्रोध ।।
तन विराट धारण किए  , हरि के रूप अयोद्ध  ।।,

हरि के रूप अयोद्ध थे , समा गए संसार ।
यशुदा इतनी डर गई,विस्मित नैन निहार ।

विस्मित नैन निहारती,  कुटिल मनुज  को देख ।
 गिर मनुष्य कितने गए , मिटे मनुजता रेख ।।

मिटे मनुजता रेख जब ,  घृणा बिकै बाजार ।
प्रेम नेह दिल में नहीं,  रिश्ते है मँझधार ।।

रिश्ते है मँझधार में, करे प्रेम व्यापार ।
बना खिलौना दिल  लिया, जता रहे अधिकार ।।

गाँधी युग पुरुष

गाँधी का एक सपना, हिन्सा जग हो खत्म ।
खत्म ईष्या द्वेष करें,  मिटा हृदय से क्षद्म ।।

कहते गाँधी थे हमें , रिश्ते रहे प्रगाढ़ 
प्रगाढ़ प्रेम विभेद बिन,लाओ हृद से काढ़।।

ऊँच नीच निकृष्ट कथन ,सब है एक समान ।
समान काया मनुज के, विचार क्यों
 असमान ।।

जल वायु खुशी गम मिले,सभी ईश के पुत्र ।
पुत्र धर्म का फर्ज कर, लक्ष्य से  गुम कुपुत्र ।।

बापू ने जो सीख दी, दिल से कर स्वीकार ।
स्वीकार कर स्वच्छ धरा ,अब न करो अपकार ।।

लीलाधर घनश्याम

विधा-  दुमदार दोहे 

बहु भाग्य वृन्दावन के, बाल-कृष्ण का रूप।
नटखट माखन चोर बन , लगते कृष्ण अनूप ।।
जी लीला धर ले उड़े ।
नेह गोपी के उमड़े ।।

नित्य चोरी माखन नित्य ही , करें सखा, गोपाल ।
गोपी करें शिकायतें, जाते थे वो टाल ।।
जब कान्हा पकड़े गए ।
ओखल से जकड़े गए ।।

मुग्ध नैन ब्रजवास के, देख अलौकिक रास ।
मोहित राधा, कृष्ण पर, बंसी राधा दास 
वो यशुदा का  लाड़ला ।
गुपियन का भी लाड़ला ।

ब्रजभूमि के भाग्य खुले, कण कण में भगवान ।
पूरा द्वापर में हुआ , देवकि को वरदान ।।
कंस संहारा गया ।
दानव मारा गया ।।

भूल कृष्ण सबको गए, धेनु, यमुन के तीर
राज-काज में वे बहे, गुपियन बहता नीर ।
बाम अंग रुक्मी नार ।
 गोवर्धन अँगुर धार ।।

पार्थ कृष्ण को बहु प्रिय , सौपा गीता ज्ञान 
मोह भंग अर्जुन  हुआ, नष्ट हिया अज्ञान। 

बने  सारथी  मित्र के ।
महभारत के चित्र  थे।।

पाण्ड़व अकेले जब हुए, सिर्फ कृष्ण थे साथ ।
कुचला सिर अन्याय का , मिली जीत प्रभु हाथ ।।
दिखा मार्ग, मानव दिए।
;रूप विराटी धर लिए।।

Wednesday 13 November 2019

शूरवीर

विधा - गीत
ताटंक छंद 16/ 14 
अंत-- 222

रोक प्रिये!मत, मातृभूमि की...
गरिमा पर बन आई है ।
मात पुकारे है पुत्रों को ... 
दुश्मन अब हरजाई है ।।

मैं हूँ प्रहरी सदा देश का. 
दाग नहीं  लगने दूँगा ।
दुश्मन सरहद पार करे तो ... 
उसका लहू बहा दूँगा ।।
सैनिक सच्चा, भारत माँ का
नाको चने चबाऊँगा ।
भारत के सरहद केसरिया ...
झंड़ा मै लहराऊँगा ।।
भारत के शूरों से अ रि ने...
हरदम मुँह की खाई है ।
रोक प्रिये! मत मातृभूमि की...
गरिमा पर बन आई है ।।

 ऱँगी लहू से,निर्दोषों के .... 
धरती का दिल भी रोता ।
नापाक पाक , दिल ना-पाकी...
बीज जहर के ही बोता ।।
मारे निहत्थे को गद्दार .. 
दुश्मन सिर काटो काफी  ।
दीप बुझे जो, उदास बहनें.. 
अरि को मिले नही  माफी ।।
चिन्गारी हर  दिल में सुलगी 
 याद मित्र की आई है
रोक प्रिये  मत मातृभूमि ...

सैनिकों के बहे  शोणित को,
अव तक कौन भुला पाया?
आँसू विधवा वधु के कहते ,,,
पुत्र नहीं  जीवित आया।

हर हिन्दुस्तानी है गम में ...
मौका मिला न वीरों को
दें शहादत देश की खातिर, 
हसरत होती वीरों को
लिपट तिरंगे में जब आया ..
आँखें सब भर आई है
रोक प्रिये मत..

शौर्य सदा इतिहास लिखेगा ,
,प्रहरी वीर अनोखे हैं 
सेज बिछाते  है काँटों की, ..
आतंकी, दे धोखे हैं ।
वार पीठ पर करने को फिर
जालिम भोज परोसे हैं 
वहशी झाड़ कुकुरमुत्ते के...
बेला काटन की आई है।
.रोक प्रिये मत,,,  

उषा झा (स्वरचित )
देहरादून (उत्तराखंड )

Tuesday 12 November 2019

प्यार का मौसम

विधा - रोला 

दस्तक सर्दी द्वार, आने वाली शीत  है ।
दो बूँदें प्रेम जब , भावे मन को मीत है ।।

जगे हिया अहसास ,याद कहानी हो रही ।
झरते हरशृंगार ,    प्रीत दिवानी हो रही ।।

तुझे खोजते नैन,  बसी  है मूरत  मन में ।
है निशान मौजूद ,बसती आस नयनन में ।

लायी बहार प्रीत , मौसम उमंग भरा है
आया मन का मीत,हुआ दिलआज हरा है

खिलते जब मन पुष्प ,लगते पग भी थिरकने।
रंग भरे मधुमास ,लगते दिल भी पिघलने।

 हर्षित है खग वृन्द , भँवरे बाग में घूमे ।
कोकिल है आनन्द, मेरा पिया मन चूमे ।

जग में प्रेम अनूप,जीवन खुशियाँ मनाता 
जपे सभी दिन रैन, रात दिन खुशियाँ  लाता ।।

चखी  नेह की  बूँद ,पुलकित मन आंगन हुआ ।
बरसे प्रीत फुहार, कण कण रोमांचित हुआ ।।

रहे अधूरे  ख्वाब , चली दो सिरे जोड़ने ।
चुनने शिउली फूल , चली फिर तुम्हें ढूँढने 

मिलने का विश्वास ,नही टूटा है अब भी 
मत मृगतृष्णा पाल,जानता इसको जग भी ।

उषा झा 


राधा हुई दिवानी

कुन्डलियां

कृष्ण संग राधा मगन , मनवा है बैचेन  ।
रिश्ता अद्भुत प्रीत का,नैन बाँचते बैन ।।
नैन बाँचते बैन,प्रिये बिन मुश्किल  जीना ।
 पिय बिन तरसे नैन,सुहाता मधु रस पीना।।
डूब रही आकंठ, जले विरह में तन बदन  ।
मुरली दई छुपाय, राधा के केवल कृष्ण ।।

पिया छुपे किस देश में , खोया मन का चैन ।
बस में अपना दिल नहीं , निशदिन बरसों नैन ।।
निशदिन बरसों नैन ,  ढूंढते हैं प्रियतम को ।
धड़कन करता शोर,सँभालो आकर हमको ।।
मन में तेरा आस,प्यास अबूूझ बुझे जिया ।
 बसे तुम्हीं में  प्राण, राधा विह्वल बिन पिया ।

बहका रहा मलय हिया ,लिए जाय किस देश ।
बस में अपना दिल नहीं ,मुग्ध दृग प्रेम भेष ।।
मुग्ध दृग प्रेम भेष ,   नैन ढूँढे है साजन ।
कहाँ सजन बिन चैन,प्रीत है अपना पावन ।।
राधा के मन कृष्ण   ,पुष्प हो जैसे महका ।
दिल कान्हा को वार,नयन है बहका बहका ।

मोहित करती कामिनी  मटकी फोड़े कृष्ण ।
नीर घट से छलक रहा, लगते अद्भुत दृश्य।
लगते अद्भुत दृश्य , भींग गए सब वस्त्र है  ।
झांक रहे सब गात, नैन लाज से त्रस्त  है ।
विह्वल करता प्रेम, मानिनी हृद में शोभित ।
जादू करता रूप ,  कामिनी हुई है मोहित ।।


Sunday 10 November 2019

बावरी गोपिन

विधा- किरीट सवैया 01
मापनी - 211* 8 सगण 12 वर्ण पर यति

 211  211 2 11   211     211  211   2 11  211
प्रेम सुधा बरसी सब आँगन , बाजत है मुरली मन भावन
पावन पूनम की जब  रौशन , रात हुई फिर चाँद छुपा मन
गोपन  नैनन  शीतल ठंडक  रास रचा वत कोप भुलावन
नेह भरे सब के हिय ये धन ,छीन सके अब कौन बुलावन

पुष्पित प्रेम सरोवर डूबि रही मुरली सुन,  गोपन  धावत  
कंचन देेह सुखाय गये प्रभु प्रीति डली मिसरी सन लागत
काम सभी बिसरा कर माधव संग चली मन जो बहकावत 
झूमि रहा नर नारि सभी मिलि साँझ भये सब झूलन गावत

कृष्ण बसे मथुरा नगरी सब , भूल सखा अब केवल  , 
कोंपल प्रेम सभी उर मुरझावत  ग्वालन नैन बहे पिघले  सब 
वो छलिया अब याद करे तब , दंश वियोगन शूल जले सब
पीर दिये विरहा तड़पी वृृृषभानु सुता उर तीर चले जब 

उषा झा (

Saturday 9 November 2019

सरहद पे लहराए केसरिया

विधा - गीत
ताटंक छंद 16/ 14 
अंत-- 222

मत रोक प्रिये!, मातृभूमि की...
गरिमा पर बन आई है ।
मात पुकारे है पुत्रों को ... 
दुश्मन अब हरजाई है ।।

मैं हूँ प्रहरी सदा देश का. 
दाग नहीं  लगने दूँगा ।
दुश्मन सरहद पार करे तो ... 
उसका लहू बहा दूँगा ।।
सैनिक सच्चा, भारत माँ का
नाको चने चबाऊँगा ।
भारत के सरहद केसरिया ...
झंड़ा मै लहराऊँगा ।।
भारत के शूरों से अ रि ने...
हरदम मुँह की खाई है ।
मत रोक प्रिये! मातृभूमि की...
गरिमा पर बन आई है ।।

 ऱँगी लहू से,निर्दोषों के .... 
धरती का दिल भी रोता ।
नापाक पाक , दिल ना-पाकी...
बीज जहर के ही बोता ।।
मारे गद्दार निहत्थे को  .. 
दुश्मन सिर काटो काफी  ।
दीप बुझे जो, उदास बहनें.. 
अरि को मिले नही  माफी ।।
चिन्गारी हर  दिल में सुलगी 
 याद मित्र की आई है
मत रोक प्रिये मातृभूमि ...

शहीदों के बहे  शोणित को,
अव तक कौन भुला पाया?
आँसू विधवा वधु के कहते ,,,
पुत्र नहीं  जीवित आया।

हर हिन्दुस्तानी है गम में ...
मौका मिला न वीरों को
दें शहादत देश की खातिर, 
हसरत होती वीरों को
लिपट तिरंगे में जब आया ..
आँखें सब भर आई है
मत रोक प्रिये..

शौर्य सदा इतिहास लिखेगा ,
,प्रहरी वीर अनोखे हैं 
सेज बिछाते  है काँटों की, ..
आतंकी, दे धोखे हैं ।
वार पीठ पर करने को फिर
जालिम भोज परोसे हैं 
वहशी झाड़ कुकुरमुत्ते के...
बेला काटन की आई है।
मत रोक प्रिये ,,,  






Thursday 7 November 2019

विश्वास

प्रश्नोत्तरी दोहे 

तबियत, प्रिय को देख क्यों , मचल रही है आज।
 खुद पर रख विश्वास लो, तभी सफल सब काज ।।

मम हृदय घनश्याम बसो,नेह तुम से अपार ।
मुझे दुखों से तार दो, लो अपने पर भार  ।

करे नित्य अन्याय मनु , मनुजता शर्मसार ।
हार गया विश्वास भी,लहू के बहे धार ।।

संतान भी छल करते,भरे माँ बाप आह ।
एकाकी बुजुर्ग हुए, जिन्दगी बीच राह ।।

कैसा आया दौर है, सभी जड़ काट गए  ।
दूरियाँ दिलों में बढ़ी ,मनु  हृद गड्ढे  पाट ।।

दुख में जो होते खड़े,वह असली इंसान ।
रब देते साथ उसका ,जग करते सम्मान ।।

त्याग दया दिल में नहीं, कोई करे न प्यार ।
नेकी जो मनुज करते, हर दिल जाते हार ।।

Saturday 2 November 2019

पहचान

दुख सुख में प्रभु! सब बँटे , तुमने किया विभेद ।
एक सभी तेरे लिए , फिर क्यों करता भेद ?

 पिघला तेरा क्यो न हिय, लाचार किए मर्द ।
किसी की झोली भरता, दिया किसी को दर्द ।।

आँच सत्य पर जब नहीं , सच फिर क्यों लाचार ।
दिल को भाता  झूठ है, सत्य कैद दीवार ।।

अपना दुख लागे बड़ा , दिखे न दूजे पीर ।
मानव लिपटा स्वार्थ  में, देता मन को चीर ।।

कान खोल सुन ले मनुज , प्रेम बसे संसार 
जग उजाड़ नफरत भरी,दई मनुजता मार।

क्यों मनुज जड़ खोद रहा ,खुद जाएगा सूख
सिंचित कर नींव अपने, बदले तेरा रूख ।।

देख सूरत रीझ गया , पकड़ा अपना माथ ।
गुण की जिसको परख है, खुशियाँ उसके साथ ।।

उषा झा

Friday 1 November 2019

कुरीति


विधा- गीत 16/ 14 ( लावणी छंद)
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मुखड़ा

क्यों कुरीति की बलि बेदी पर
चढ़ती नारी हर युग में ?
किस्मत की मारी को सब ही ,ठोकर मारे जग में ।

अंतरा

नियति ने मझधार जब छोड़ा,,नही मौन दृग, नीर बहा ।
पूत संग वह रही अकेली ,भरी जवानी बनी तन्हा।।
बिखर कामना गई ,रेत सम,भरी वेदना जीवन में 
मान अभागिनी को दे कौन?, पीर जले अंतस् मन में ।।
क्यो कुरीति की बलिबेदी...

जीवन में बिन रंग उम्मीद ,,करके कैसे ज्योति जले ?
डोर नेह की, थामे जीती ,दिल में, सुत के ख्वाब पले।।
बना हृदय पाषाण पीर से,,अटल-कर्तव्य पथ पर थी ।
पुत्र संग माँ भी खुश रहती,आंचल में नेह भरी थी ।।
हुई सफल तप, माँ बलिहारी, सुत खुश नूतन भविष्य में 
क्यो कुरीति के बलि बेदी....

अबला पुलक रही बेटे को , शुभ निहारन की घड़ी है ।
घोड़ी चढ़ कर पुत्र पुकारे, आ माँ तू कहाँ छुपी है?
नयनों का टूटा बाँध तभी, चाल चली विधि ने गहरी ।।
लगाती नजर टीका सतु को, उस माँ की ही नैन भरी ।
सहे वैधव्य बुत हतभागी , सुन ग्रहण! डूबी दर्द में ।
क्यो कुरीति के बलि बेदी....

देर हुई क्यों सुत आशंकित , घर में माँ को खोज रहा ।
करे तिलक अपशगुनी कैसे , किसी ने माँ को क्या कहा ।
संवेदन हीन बने परिजन ,, हृदय पूत का व्यथित हुआ ।
धूँध छँटा सबके मन से जब, सुत सब पर नाराज हुआ ।
माँ तुम से पहचान शगुन की ,,खुशी तुम्हीं से जीवन में ।।
क्यो कुरीति पर वार....

मन गढंत है बात अशुभ शुभ, बंदिश नहीं मुझे सहनी
थोप मनमर्जियाँ फिजूल की, नारी को करते छलनी
करदो कुप्रथा का बहिष्कार, है जिम्मेदारी सबकी ।
माता सी कोई उपकारी , नहीं हुई है इस जग की ।

क्यो कुरीति के बलि बेदी क्यों कर,,चढ़ती नारी हर युग में ।
किस्मत की मारी को ठोकर, मारे हर कोई जग में ।।

उषा झा स्वरचित 
देहरादून उत्तराखंड

मनुजता बेजार

विधा-  प्रश्नोत्तरी दोहे

मानव क्यों राक्षस बना,पीता क्यों वो रक्त ?
विवश मनुजता आज है,मति गायब बेवक्त।

मात-पितु के हिय सिसकें , परिवार रहा टूट
रिश्ते सब  दुश्मन बने , भाई भाई फूट ।।

नीड तिनकों से बनते,उड़ा दिया क्यों गेह?
चलती आँधी स्वार्थ की, नष्ट परस्पर नेह।

मानसिकता लोभ ग्रसित, क्यों मानव लाचार ।
सारे रिश्ते बेच कर , हुआ मनुज  बेजार ।।

पौरुषता है गुम कहाँ, लापता स्वाभिमान 
लज्जा किसी की न रखो , करो रोज अपमान ।।

अभिभावक बेघर हुए ,कहाँ  गया घरबार?
भिजवा वृद्धाश्रम दिया, बेटे धक्के  मार।

संस्कार बेकार गये ,,हिय में क्यों है ताप ?
कुसंस्कारी पूत हुआ,व्यथित आज माँ बाप।

धन दौलत के लोभ में,मनु क्यों करे  नुकसान?
कौड़ी जाए संग कब, ले संग पुण्य का दान।।

रिश्ते माया पर टिके,कब चढ़ते परवान?  
प्रेम हुआ अनमोल है,मूरख तू यह जान।

बने पराये मीत जब,किसे दिखाए दर्द ?
बीवी के पल्लू छुपे , रहते हैं सब मर्द ।।

प्यास बुझाता रक्त से,मानव क्यो शैतान? ।
कटते बकरी भेड़ से,नीयत बेईमान ।।

गिरा जगत को गर्त में,मनु क्यों करता नाश?
कौड़ी भर औकात से, सिर्फ मिले उपहास  ।।


उषा झा

हरि के अद्भुत प्रेम

प्रेम से बंधे प्रभु हैं , अद्भुत प्रभु का रूप ।
मन से जो उन्हें भजते, भक्त लगते अनूप ।।
भक्त लगते अनूप, हैं बस में वो प्रेम के ।
भूल अगर मान लो ,रखे छाँव में नेह के ।।
झूठे चलते बेर , ,वात्सल्य से भरे प्रेम  ।
हृदयंगम में भक्त ,  हरि के अद्भुत  प्रेम ।।

सबरी हो कर के मगन ,हुई प्रेम में लीन
हरि दर्शन को तड़पती , जैसे जल बिन मीन
जैसे जल बिन मीन, प्रेम की भूखी सबरी
सुध बुध दई भुलाय, हर्ष में खुद को बिसरी
 आई जब वह होश , लगे ज्यों हुई बावरी
 हरि को देती बेर, नेह से चखकर सबरी