Saturday 15 December 2018

अंतस् के पीर

अंतस् के पीर दृग से बह रहे अविरल
विरह दंस से बिंध कर हृदय है घायल

किसी ने मेरा जहां इस कदर लूटा
नैनों ने अश्कों का दरिया बहाया
मुहब्बत के बेबसी में दिल है टूटा
बीच मझधार में पतवार जैसे छूटा
किस्मत मेरी रूठी मिली न मंजिल

अंतस् के पीर दृग से बह रहे ...

लाख रोकने पे भी रूका कहाँ दिल
मुहब्बत में हार ही गया उनपर दिल
जज्बातों से केवल मिलता नहीं दिल
किसी से बेइन्तहा प्यार हुआ गुनाह
वेदना ही उपहार है,मिला न दो दिल

अंतस् के पीर दृग से बह रहे ...

टूट कर चाहा फिर भी उनको न पाया
बिछुड़ कर उनसे मैंने सुख चैन गवाया
जीवन भर का गम न जाने क्यों दिया
मेरे बिखरे अरमां पे आसमां भी रोया
उनके बिन अब जीना हुआ मुश्किल

अंतस् के पीर दृग से बह रहे ...

रब न करे किसी का कभी टूटे दिल
बहे न नयनों से किसी का भी अश्क
दो तन होकर भी मिले दिल संग दिल
आकुलता से तप्त हृदय का हो मिलन
प्रीतम संग नेह दीप जलते रहे हर पल

अंतस् के पीर दृग से बह रहे अविरल
विरह दंस से बिंध कर हृदय है घायल

 

 

Wednesday 12 December 2018

मनुहार पुत्र से

विधा-गीत

मेरा लाड़ला हो गया अब तू जवान
तरस रही देखने को मैं तेरी दुल्हन

सुनो बेटा ले ले कुछ तुम रूपया
नहीं चाहिए मुझको तुमसे चूड़ियाँ
ले आना तू मेले से सुन्दर सा हार
लाना मेले से प्यारी सी एक गुड़िया
पहनाना हमारी प्यारी बहुरानी को
चाँद सी बहू को दिखा दे बेटा
तेरे संसार सुखी देख जी उठुँगी
रब करे सजी रहे तेरे शक्ल पे मुस्कान
मेरा लाड़ला हो गया अब तुम जवान
तरस रही देखने को मैं तेरी दुल्हन ...

मेरे बाद भी मेरा नाम अमिट न हो
मेरे परिवार फले फूले यही चाह है
बस प्यारी सी बहूरानी ला दे तुम
बस हमारे दिल में यही तमन्ना है
मेरे आंगन खिले सुंदर सुंदर फूल
उसके खुशबू संग महके मन आंगन
नन्हें मुन्ने की किलकारी का हो गूंजन
मेरा लाड़ला हो गया तू अब जवान
तरस रही देखने को तेरी मैं दुल्हन .....

ख्वाब हमारा सच हो ये सबकी चाहत
बाग खिला रहे माली की यही चाहत
नव पौध भी बने उन्नत व विशालकाय
माली करते हैं मन से हमेशा ही सिंचित
हमारा कुल का जड़ हो इतना गहरा 
आंधी में भी ना टुटे वृक्ष रूपी परिवार
फल फूल से सजा रहे मेरा बगियन
मेरा लाड़ला हो गया तू अब जवान
तरस रही देखने को तेरी मैं दुल्हन ...

Tuesday 11 December 2018

संतुलन

विधा- राधिकाछन्द

कन्यदान पुण्य महान ,,, वेद में बखान
जगत की रीत निभा दी,,,रिक्त मन आंगन
देकर बेटी दान दृग ,,,,अश्क बहा रहे
परायी हुई जब सुता ,,,,धीर न बंध रहे

रौनक घरों की उससे ,,,हुआ करती है
वो सबके ही दिलों की  ,,, जान होती है
खुशबू होती सुता जो,,, रूह  महकाती
बसेरा बदल गया वो,,, तो पंछी होती
       
राजा हो या रंक सुता ,,विदा नियम बना 
पीली कर हाथ हिय को,,, मिले हैं  चैना
जागती नयन के ख्वाब,,, करे रब  पूरे 
योग्य घर वर ढूंढ कर,,, ब्याह तभी करे

बनाएँ जिसने चलन थे,,,बहुत सुंदर सोच
संतुलन से समाज सजा,, लाए सिर्फ मौज
देकर  बेटी  बहू  घर,,,,   सभी  ले  आते
गम और खुशी की लहर ,,,, हर ओर बहते

Sunday 9 December 2018

समगोत्री

विधा-संस्मरण

आज रविवार के चाय की चुस्की संग बैठे बैठे बीती यादें दस्तक देने लगी । परंपरा के बली बेदी पर कैसे दो प्रेमी चढ़ गए थे, कैसे अलगाव के गम सहने के लिए दोनों ही अभिशप्त हो गए ।आज भी याद आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।
बात उन दिनों की है जब मेरे पति और उनके सहपाठी रूमेट मेडिकल फाइनल इयर में पढ़ रहे थे ।उन दोनों में
बहुत ही दोस्ती थी । मेरी अभी नई नई शादी हुई थी, अतः
मेरे पति अपने मित्र के साथ मेरे घर यदा कदा आते रहते थे ।मेरी भी उनसे अच्छी बनती थी ।
बातों ही बातों मैंने पूछा आप कब ये विरागी जीवन त्याग कर नई दुल्हनियाँ लावोगे ।
उत्तर देने के बजाय वो फीकी हँसी में बात टाल गए ।
बाद में एक दिन मेरे पति ने बताया गुरु(इनके मित्र) आजकल बहुत टेन्सन में चल रहा है ।जिसके साथ चक्कर चल रहा है वो उसके ही गोत्र  की है ।परंतु उन दोनों का प्यार बचपन से ही है । दरअसल वो लड़की गुरू की माँ के जानने वालें में से थी इसलिए पढाई के सिलसिले में
उसी के घर रही थी ।अब किसको पता था बचपन का लगाव प्यार में बदल जाएगा ।
"हाय हाय बेचारा रोता रहता है  ....!!"
खैर फाइनल परीक्षा नजदीक आ गई तो मेरे पति ने  पढ़ाई करने के तरफ उसे ये कहकर आगाह किया कि "कोई न कोई उपाय जरूर निकलेगा ...मुझ पर विश्वास रख !!"
खैर दोनों अच्छे नम्बर से पास हुए ।फिर गुरु ने मेरे पति को कहा ,अब तो मेरे लिए कुछ करो पार्टनर ...।"
फिर दोनों ने  लड़की को समझाया  ,"आधुनिक युग में ये गोत्र का लफड़ा छोड़ चलो मंदिर में फेरे ले लो,घर वाले धीरे धीरे मान ही जाएँगें ...।"लड़की मान गई ..
तय के मुताबिक लड़की अपने सहेली संग आई और गुरु के साथ मेरे पतिदेव थे।फिर दोनों का वरमाला हो गया ।
मिठाई बैगरह बाँटा गया उसके सब चले गए ...
लड़की अपने  हाॅस्टल और लड़का अपने काॅलेज लौट गए ।
मेरे पति और गुरु बहुत खुश थे कि शादी हो गई धीरे धीरे लड़की का डर  खत्म हो जाएगा,बी.आनर्स के पेपर देकर तो दोनों साथ रहने लगेंगे ।
लेकिन ऐसा हो न सका , लड़की अपने घर  लौट गई ।उसने संदेशा भेजा जब तक घर वाले नहीं मानेंगे,तब तक वो नहीं लौटेगी ।इस बीच गुरु विक्षिप्त सा रहने लगा ।मेरे पति से उसकी हालत देखी न जाती ।
फिर उन्होंने एक और कोशिश करने की योजना बनाई ।
गुरु को लेकर मेरे पति लड़की के घर पहुँचे ।वहां उन्होंने लड़की के माता पिता, लड़की की बहन, लड़की सभी से
अलग अलग तरह से समझाने का प्रयास किया ,परंतु कोई फल नहीं निकला।
लड़की की माँ कहने लगी, "एक डॉ से मेरी बेटी की शादी होगी, घर जाना पहचाना मिल रहा है, इससे अधिक सौभाग्य की बात क्या हो सकती है ...।"
...पर समगोत्री से शादी कराने पर हमारी नाक कट जाएगी । मेरी दूसरी बेटी की शादी में मुश्किलें खड़ी हो जाएगी ।..."बेटा हमें माफ कर दो !!"
लड़की भी रो रो कर यही कह रही थी कि, "गुरु जैसा योग्य पति मिलना मुश्किल है पर माता पिता के दिल तोड़कर घर बसाने की मेरी हिम्मत नहीं ...।"
उसके बाद दोनों बुझे मन से वापस आ गए ।उसके बाद गुरु की हालत बहुत घराब हो गई ।उसे लगता लड़की ने उसे धोखा दिया ।उसको सामान्य जीवन यापन करने में काफी वक्त लगा ।मेरे पति के बदौलत वो सही राह पकड़ लिए ।आज उनका बड़ा नर्सिंग होम है ।प्यारी बीवी और दो बच्चों का सुखी परिवार है ।हम लोग मिलते रहते हैं ।
       समाज के दकियानुसी रीति रिवाज कैसे दो हस्ती के
जीवन को बदल दिए ये आज भी विचारणीय प्रश्न है ... ।

Saturday 8 December 2018

घुंघरू

विधा - गीत

मंदिर महफिल में बजे इसकी शान
मधुर धुन सुनाके लुभाना है पहचान

घुंघरू छन छन छनक कर
बहुत ही इतराए वो खुद पर
कला पुजारी पग बांधे जब जब
लुभाता है मधुर धुन तब तब 
अप्सरा पग बांध छीने देवों के चैन
मंदिर से महफिल ....

मंदिर में भजन का वो श्रृंगार
ईश के आराधना में बजकर
छीन लेता भक्तों के मन प्राण
राज दरबार में साजों के शान
छनक पे नर्तकी के डोला सिंहासन
मंदिर से महफिल तक....

देव व दानव हो या मानव
रिझाता घुंघरू सबके मन
देवालय से लेके विद्यालय
सियासी गलियों के वो जान
नसीब में फिर भी न सम्मान 
मंदिर से महफिल तक...

नृत्यांगना के नृत्य पर घुंघरू
मुदित हो छेड़ता सुरीला स्वर
वाह वाह करते थकते न कोई
देवदासी पग बाँध हुई मशहूर
प्रभु को ही जीवन करती अर्पण
मंदिर से महफिल ...

बाजार में जब छनके घुंघरू
तब छेड़े सरगम दर्द भरी धुन
मजबूरी में बहुत बहाते अश्रु
सिसक उठता है रूह बैचेन
आशिकों की चाह दिलाए घुटन
मंदिर से महफिल ...

कोठे की महफिल में सजकर
बिक जाता है घुंघरू बारंबार
हुस्न वालों के वाह से आहत
कई बार बिखर जाता वो टूटकर
कच्ची कली बांधे तब आए रूदन
मंदिर से महफिल ....

लालच

विधा-दोहे

मिटती कब लालची को,  दौलत की है भूख
संदुक भर न हवस मिटे , बदल न पाते रूख

मानवता न शेष बची,  लोभ है  बेहिसाब
अब न अपनापन जग में,  रिश्ता ना नायाब

रिश्तों  से  बढ़कर  उसे,  दौलत  की  है  चाह
धन के नशा में होते ,   सबसे   बेपरवाह

धन की आकांक्षा किया , संबंध को तार तार
अपने मतलब का सभी ,  कोई  है अब यार

पग पग दिखे लूटेरा , किस पे करें विश्वास
बेच कर ईमान अपना , बनाया महल निवास

पेट पर दीन दुखी के , लोभी  मारे  लात
हक उसका छीन कर वो, दिखा रहे हैं जात

स्वार्थ में होकर अंधा , उल्लू तुम ना साध
जवाब देना प्रभु को !, कांधे पाप न लाध

Thursday 6 December 2018

अनुराग

विधा- रूपमाला छंद

तन्हाई डरा रही मुझे , दे न सजन पनाह
रात लगे काली नागिन ,उर मचाए आह 
देख रही हूँ राह !आई , ख्वाब की बारात
तुम यूँ न मुझे तड़पाओ, दृग करे बरसात

तुम बिन जीना न गँवारा,खुद से कर न दूर
इतनी सी आरजूँ मान , तू  लेना  जरूर
करूँगी न शिकवा कभी ,रख नेह के छाँव
ये जान तुम पर कुर्बान,, दो हृदय में ठाँव

करूँ कुछ अब ऐसी जतन ,लूँ हृदय मैं जीत
दिन को भी मैं रात कहूँ, तुम से करूँ प्रीत
प्रेम में हो गई दिवानी , तुझपे दिल निसार
सदियों से भटक रही हूँ , तुम बिन बेकरार

धरा गगन से मिले रोज,आती उसे न लाज
शाम सिंदुरी हो रही है ,क्षितिज को भी नाज
प्रेम जग में सबसे पावन, सभी हिय  में  राग
तू भी जीवन रीत निभा,कर मुझसे अनुराग





Monday 3 December 2018

निर्झर जीवन

विधा- गीत

युगों युगों से संग संग ही चलते
मिलते नहीं नदियों के किनारे

पथ हो चाहे कितने ही दुर्गम
दरिया बना ही लेती है सुगम ।
युग युग से बह रही वो निरंतर
प्यास बुझाये अविरल धारा... ।
है अतृप्त मन ,दूर प्रीतम प्यारे,
दो पल ही सही,बैरी संग बितारे ।
युगों युगों से संग संग ही चलते
मिलते नहीं नदियों के किनारे ।।

रूकना न पथ में कभी थक कर
कह रही ओ पथिक बढ़ता चल ।
राह के शूलों से बुज दिल घबराते  ।
बीहड़ वन सुनसान डगर पुकारे  ,
नाप रही बावरी नैन स्वप्न सजाये
सागर मिलन मन में अभिलाषाये  ।
दुर्गम राहें रौशन करे चाँद सितारे ।।
युगों युगों से संग संग ही चलते ।
मिलते नहीं नदियों के किनारे...।।

जब जीवन में हो दुख घनेरी
हृदय में हो कितनी व्यथा भरी,
दुख दर्द में न तुम करो प्रलाप
नेह दीप आंधी में भी जला लो
मिटा लो तुम अपना सब संताप  ।
अरमां दिलों के रव ही पूरे करते
भर उर मे हर्ष का उजास बावरे  ।
युगों युगों से संग संग ही चलते 
 मिलते नहीं नदियों के किनारे ।।

निर्झर जीवन में धर लो जरा धीर
विलग प्रिये हो तो बहाओ न नीर ।
पंछी बन एक दिन उड़ जाना है,
ये जीवन तो है दो दिन का ड़ेरा ।
मनुज मिटा ले तम अपने हृदय के  ।
मिट जाते हम, नेकी कभी न मरते
प्रेम पुष्प वसुधा पर सब खिला रे
युगों युगों से संग संग ही चलते
मिलते नहीं नदियों के किनारे..

दो मुँहें

विधा - क्षणिका

हाव भाव ऐसे  जैसे सगी अपनी   1.
मीठी चाशनी से तर उसकी वाणी
बातों ही बातों में दुखती रग पकड़ी
भीतर की बात जैसे ही वो उगली
फैल गई देखते देखते सारे गाँव में

 अभिमान था अपनी दोस्ती पर   2.
 उसके आने पर खिल उठता दिल
कहकहों से गूँजा करता महफिल
मौके पाकर पीठ में ऐसे छूरा भोंका
 तार तार ही हो गई उसकी मित्रता
सच्चे रिश्ते बनाने से दिल अब डरता

सबके पास शेखी बघार रही थी         3.
बड़ाई का पुल बांध रही थी
साहब बनके आया बेटा बहू
कमी न रहे आवभगत में
उधार ले के सारी बंदोबस्त की
आज जा रहे गले मिलकर
 खेती कैसी है वे पूछकर

 मालिक का कारोबार संभाला    4.
उसने बड़े मनोयोग से
खेतों की देखभाल में
दिन रात लगा दिया उसने
फसल कटकर आई जैसे ही
ट्रको में लद कर चली गई
भूख न मिटी ! पेट पीठ पकड़ ली

Thursday 29 November 2018

विलग होना शरीर से आत्मा का

विधा-  सरसी छंद आधारित गीत

नूतन वस्त्र पहनकर आता , मनुज देह हर बार  ।
आत्मा  मुक्त जीवन मरण से  , नश्वर ये संसार   । 
    
                       ⚘⚘(1 )⚘⚘

मरती आत्मा कभी नहीं है ,,, बदल   लेती शरीर
कर्मों के अनुरुप होती है,,,, भाग्य की भी लकीर

हर योनियों का हिसाब ईश,,,करे सबका जरूर
किए कर्म जिसने जैसे फल,,, देते बनकर क्रूर

ओज खोया शरीर, छोड़ने ,,, को जग हो तैयार
आत्मा मुक्त जीवन मरण से,,, नश्वर  ये  संसार

                        ⚘⚘(2)⚘⚘
                
बुरे कर्म करके डरा नहीं ,  सोचा नहीं अंजाम
आत्मा ने तुझको समझाया, ली न फिर भी विराम

कितने ही किए हेरा फेरी,,,, कलुषित  तेरे  सोच
घायल किया दिलों को कितने ,,वचन में न था लोच

मिल जाते हैं  करनी के फल,,,, बोते हैं जो खार
आत्मा मुक्त जीवन मरण से ,,,, नश्वर  ये  संसार

                          ⚘⚘(3)⚘⚘

कर्मों के अनुरुप लिए जन्म ,,,मनुज  हुए  देवेष
सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग,,, सब युग हुए विशेष

सतयुग सबसे पावन निर्मल  ,,,, करते देव निवास
सत्य व शांति की बोल बाला ,,, करे  प्रेम परिहास

त्रेता में था तमस आ घेरा ,,,, द्वापर पंच विकार
आत्मा मुक्त जन्म मरण से,,,,  नश्वर  ये   संसार

                        ⚘⚘(4 )⚘⚘

कलयुग के चरण पड़े जैसे , घेर लिए अति पाप 
मनुजों ने पहचान मिटाया  , सबके  सब हैं  बाप

योग तप करना हुआ मुश्किल, जपो नाम भगवान
भक्ति भाव से तू पूज प्रभु को ,  मिलता है वरदान

माया में  नश्वर  शरीर  के ,,,,  पड़ना  है  बेकार
आत्मा मुक्त  जीवन  मरण  से,,,नश्वर  ये  संसार

                      ⚘⚘(5)⚘⚘

जब  तक संभलता मनुष्य आ ,,, जाता यम का दूत
आत्मा मुक्त चले ही जाते ,,,,छोड़ चीर निंद्रा में धूत

अब तक तो नाम शोहरत ही ,, थी केवल पहचान
बन गया है मिट्टी का शरीर ,,,  छुट गए जब ही प्राण

मिट्टी के तन का यही मोल , कर लो सब स्वीकार
आत्मा मुक्त जीवन मरण से,,, नश्वर  ये   संसार

Monday 26 November 2018

प्रतिक्षा

विधा-  कुन्डलियां

बने दो दिल एक जान ,,है जन्मों का साथ   1.            
मुदित मन हो रहा हर्षित ,,लिए हाथों में हाथ
लिए हाथों में हाथ,,,,,सब प्रेम का दीवाना
तन मन जलाते क्यों  ,लिखा नसीब से मिलना
इश्क तो इबादत है,,,, पूज ले दिल से अपने
दिल में तुम हो बसे , हर जनम प्रियतम बने

प्रेम प्रतिक्षा नैनन में ,,, खोल हृदय के पाट  2.
जिया डोले धड़क धडक,,देखे पी के बाट
देखे पी के बाट,,, मनवा में अगन लगाय
तड़प रहे बिन सजन , विरह शूल सहा न जाय
मचल रहा अरमान , पिघल रहा उर बन मोम
दो जां एक आत्मा, हर धड़कन में बस प्रेम 

कंचन सा बदन तेरा ,छाया कितना नूर
मलय सी खुशबू तेरा,,,,बढ़ाते हैं सुरूर
बढ़ाते हैं सुरूर ,,, सुवासित हुआ जिन्दगी
छाया प्रेम का नशा ,,प्रीत की है प्यास जगी
मदमाती पुरवाई ,, मन को बहकाती सजन
 रूप सलोना लगे ,लुभा रहा काया कंचन

सच्चे प्रहरी

विधा- गीत

प्रभु जी तुम कितने ही गम दोगे 
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे

तन ढकने को हमें  वस्त्र नहीं
खाने को घर में मिले रोटी नहीं
अपने भाग्य को खुद बनाउगाँ
खुशियों से जीवन सजाऊँगा
हँसते हँसते ही गम को पी लेंगे
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे ...।।

करनी पड़े बचपन में मजदूरी
जिन्दगी में है कितनी मजबूरी ,
मुश्किल को धूल चटाऊँगा    ।
मै तो अपना फर्ज निभाऊँगा
जीवन की विसंगतियाँ भूला देंगे,
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे.. ।।

वंचित हूँ हर एक सुविधाओं से
सरकारी स्कूल में पढूँगा मन से,
शिक्षा का मशाल जलाऊँगा   ।
उँचे पद को हासिल कर लूँगा
करेंगे सब फक्र ऐसे चिराग बनेंगे,
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे   ।।

धनिकों का वर्चस्व मिटाकर
मेधा से जाऊँगा शीर्ष पर
जन जन होंगे गर्वित मुझपर  ।
ऐसे सच्चे प्रहरी बनूँगा
देश के हित में मर मिटेंगे ,
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे ।।

Sunday 25 November 2018

काल के पद चाप

विधा-कुंडलियां   

आना शिशू का भूमि पर , भरे प्रेम उर भाव  3.
 लोग बधाई दे रहे  ,,,, पले  नेह  की  छाँव
पले नेह की छाँव ,     सभी अह्लादित होते
हँसकर सभी गुजार ,   यहाँ पर जीवन लेते,
 कठिन टालना मृत्यु  ,,,,,सत्य है जग से जाना
 कर चल ऐसे कर्म ,,,,, पड़े फिर लौट आना

मनुज पहन चोले नए  ,आता है संसार
निभा कर फर्ज अपना ,, जी लो तुम किरदार
जी लो तुम किरदार,,कर्तव्यों की राह पकड़
दया धर्म  है पूजा,,, लालसाओं में न जकड़
दो दिनों का मेला जग , जी लो खुशियों से आज
आ के धरा पर तुम , कर कुछ नए काम मनुज

रिश्ते में उलझा रहा ,   राग द्वेष में जीवन
दौलत में फंसा मन, माया न छोड़ रहा तन
माया न छोड़ रहा तन ,छोड़ अब सारे झंझट
सुन लो अब आ गए  ,  काल के पद चाप निकट
आत्मा कराह रही,,,,, मूढ़ क्यों मद में जीते
 विदा के पल भी ,,,,,, छुट  न  पाते  रिश्ते

ईमान (गजल)

रदीफ़-  नहीं होती
काफिया- ओती

 बिन प्यार के कभी आँखे ख्बाव बोती नहीं होती      
 जीवन के खूबसूरत लम्हों के ये मोती नहीं होती
 
  तेरे बैगैर कैसे जीते थे ये सोच के मन सिहर उठा
  तुम जुदाई के गम न देते तो आंखें रोती नहीं होती

 सच्चे मुहब्बत से महबूब का दिल भी संभल जाता
 दिलबर को अपनी कभी शिकायते ढोती नहीं होती

 आशिकी करनी और बात निभाना उतना मुश्किल
 बेवफा के दिल कभी पाकीजगी शोभती नहीं होती

  दुश्मन को भी कभी दिखाए न मुश्किल भरे दिन
  साथी हो संग तो साया भी साथ छोड़ती नहीं होती
  
  कोई किसी के जज्बातों के कदर न करते जहां में
  सभी स्वार्थ के शिकार अपना खोजती नहीं होती 

   ईमानदार सजन धोखा न देते अपने प्रियतम को
   परख लें उन्हें,साफगोयी हरदम बोलती नहीं होती

   मुहब्बत का वादा सच्चे प्रेमी ही निभाया करते हैं
   सचमुच झूठों के नैन ईमान की ज्योति नहीं होती

 पाक साफ मुहब्बत रब के रहमो करम से ही मिलता
  नशीब वालों की किस्मत कभी डोलती नहीं होती



 

Thursday 22 November 2018

राखी (मुक्तक)

रहो तुम जिस देश भाई,हमेशा खुश रहना    ।
कभी भूलना न बहन को,जगह मन में देना  ।
बाँधना एक सूत हथेली पर मेरे ही नाम से   ।
रक्षा हो सभी बहनों का,बस ये लाज रखना  ।

एक ही माली थे,एक ही बगिया की फूल वो  ।
दूर भले हो गई सबसे याद करती हरदम वो  ।
वंचित न करना अपने प्यार दुलार से भाई   ।
भूल न पाती मायके सबके जीगर में रहती वो

माँ पिता की लाड़ली खुश रहती ससुराल   ।
बचपना छोड़ सब साँचे खुद को ली ढाल  ।
निभाती सभी रिश्ते दिल से मिली जो सीख  ।
रीत निभाना भाई राखी पर आना हर साल   ।

प्रहरी हैं सच्चे बाजी प्राणों के हँस के देते   ।
पहले भेजूँ उन्हें राखी, वचन वही निभाते   ।
वीर सैनिक भाई की कलाई कभी सूनी रहे  ।
सुरक्षित सभी उनसे,देश हीत में आहुति देते ।

वंचितो को बांधूँ राखी ,,,मुस्कान बनी रहे   ।
सबके भाई की कलाई,,,, हमेशा सजी रहे   ।
बहनें जिसे बांधे न राखी,,, बड़े हतभागी हैं  ।
अपने पराये के बीच भी,,, रिश्ते बनी रहे      ।

भ्रमित नव पीढ़ी

विधा- दिग्पाल छंद

 संग रहते भाई बहन , मात पिता खुश होते  ।
 बचपन में हरदम ही , नेह के बीज बोते  ।।
 बच्चे बने सब सभ्य , उन्होंने ही सिखाया ।
 मिल जुलकर प्यार बढ़े,सबको यही बताया ।।

बुरी संगत में पड़ कर,पथ भ्रष्ट बन जाते हैं
शर्म से गर्दन उनका,,,,  झुक जाया करते हैं  
अच्छी परवरिश से भी,,,, मार्ग से भटक जाते  ।
बीज उन्नत होकर न ,,, जाने क्यों सड़ जाते ।

 संस्कार जो दिए थे , ले सबके आशीसें     ।
 बड़े हो कर भूल गए , तोड़े सभी भरोसे  ।।
 पौध छायादार वृक्ष ,,,, बने आस में जीते  ।
 नेह से सींचकर भी,,,, खाली आँसू पीते ।

पा कर शोहरत आज,छोड़ दिया उन्हें ही ।
पेड़ पर बैठ कर क्यों, काट रहे जड़ को ही
अस्तित्व मिटेगा नव, पीढ़ी समझ न पाते   ।।
जड़ से पृथक हो पेड़, कभी जी कहाँ पाते   ।

 

आया चुनाव

विधा- दोहा/गीतिका छंद

 छुट रहे पसीने अभी , आ गए अब चुनाव ।
  फेंक रहे नेता गली,गली झूठ का दाव   ।

21 2  2         212 2        21 2 2      212
खोलकर उर मत दिया था, दुख हमारी कब सुनी ।
जीत के तुम घमंड में अब   ,कर न हम को अनसुनी
बेचकर तू शर्म हया ना,,,,डींग का पढ़ जूमला ।
सोचते ठग ले हमें वो ,,,,,,,फिर रहे वो फूसला ।
 
जो सिंहासन है दिलाया , भूलने कल थे लगे ।
पा गए ज्यों तुम सत्ता तो ,,,,, टालने क्यों थे लगे ।
सोच के अब तो सभी जन,वोट अब कर ने लगे
वोट देकर शपथ ले ली    , भाव वो खाने लगे ।

छोड़ खेती झूठ की अब ,,,, बर गलाना छोडिए
बाँटना अब तो सभी को ,,,,,आज से ही छोड़िए
लोभ का झासा न देकर ,,,,काम उत्तम कीजिए
काम  ही पहचान नेता ,,,,,कुछ नया तो कीजिए

Wednesday 21 November 2018

तराने प्यार के

विधा- मुक्तक

नयन बरसते तुम बिन, जाने क्यों भूल गए    
विरह की मारी तड़पूँ, तुम कहाँ चले गए
करती हूँ मुहब्बत तुझसे,इस जहां मे अधिक
तुझसे कब हो मिलन,हम अधूरे रह गए

 जानूँ न दिल धड़क धड़के क्यों तुम्हें पुकारता
नाम तेरा जपूँ  दिन रात,,,याद हमें सताता
क्यों चलता न जोर मुहब्बत पे किसी का
तुम बिन मेरे जीवन को अब कौन संवारता

मुहब्बत में सनम मुझे , तुम धोखा न देना
रखना तू दिल के करीब, पलकों पे बसाना
मेरे लिए तो सबसे नायाब तोहफा है मुहब्बत
तुम बिन अब जीना नहीं, कभी दूर न जाना

प्यार के छाँव में हो जीवन, खुशियाँ चुमें कदम
हर जनम बस तुम ही मिलो, खाओ अब कसम
बिन प्यार के जीवन का,होता न कोई मतलब
प्यार के तराने गाते ही, बीते जीवन हरदम

मुखौटा

विधा-कविता

चेहरे पे ओढ़े रहते मुखौटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं
                                            
मुखौटे में अपनी पहचान
छुपा के घुमते  हैं शैतान
दूषित इनके हैं आचरण
मानते लोग इन्हें भगवान ।।

भोले भालों को ये लूटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

सफेद लिहाफ ओढ़े इंसान
लगे है स्वच्छ निर्मल  पावन
स्याह चेहरा से सब अंजान
जाने न हैं कितने बेईमान ।।

 होते बड़े मक्कार व झूठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

मिश्री जैसे होते इनके वचन
देते रहते हैं सबको प्रलोभन
पर इनके चक्कर में न आना
होशियारी जल्दी पकड़ लेना ।।

बोलते ये बड़े ही मिट्ठे मिट्ठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

ईमानदारी का ये है दुश्मन
चाहे हो कितने ही धनवान
काम इनका लोगों को ठगना
कभी इनपे भरोसा न करना ।

ये तो एक उल्लू के पट्ठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं
 
मुखौटे की पोल जब खुलती
चेहरा सबसे छुपाते फिरते
मियाद जब पूरी हो जाती
सूद के संग मूल वापस होते ।।

लोभ लालच में सबको लूटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

दौलत की चमक फीकी पड़ती
रूपये पैसा कभी काम न आते
सच्चाई और नेकी ही साथ देती
 कपटियों से सभी दूर ही भागते ।।

अकल के बड़े होते मोटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

 

गूढ सीख

विधा- पदपालाकुलक छंद

तज  कर मान अभिमान को तू   ।
बन जा रे  मनुज  इंसान  तू   ।
तन कर्म भट्टी में तपा ले  ।
मन को खरा सोना बना ले   ।

जीवन पथ मुश्किलों से भरे
दृढ़ निश्चय से हल मिला करे
कठिन तपों से ही मुक्ति मिले
ब जलधि मंथन से,अमृत मिले

चल तू कर्तव्यों के राह पे   ।
चाहे कंटक बिछे हो पथ पे   ।
हो न तेरा साथी तभी भी ।
तू नेह दीप ले चल तब भी ।

ये जीवन है बहती दरिया  ।
इस के भगवन ही खैवैया    ।
वो ही करे पार दरिया के   ।
 जो  ठान लेते  तैरने के    ।
 
बिन कोशिश मेवा नहीं मिले ।
फल कठिन परिश्रम से ही मिले  ।
ये ही गूढ़ सीख जीवन का    ।
है क्रोध द्वेष बेमतलब का     ।

Tuesday 20 November 2018

धर्म (मुक्तक)

बताकर धर्म का पैगम्बर करते जुर्म संग हैं उनके
बनाकर नारी को खिलौना जीवन से खेलते उनके
दस्तूर नहीं किसी कौम का, लिखा है ग्रंथ में कहाँ
बीच राह में छोड़ के अकेले,दिल फिर तोड़ते उनके

धर्म की आड़ में छुप के जो मानवता पे वार करते हैं
लेके पत्थर निहत्थे लाचार के सिर वो फोड़ा करते हैं
नापाक इरादे से इन्सानियत को क्यों कर करते रूसवा
खुदा से बंदगी कैसी जो होली खून की खेला करते हैं

अंधविश्वास के आड़ में धर्म को बनाते हैं हथियार
हद से ज्यादा औरतों पे रखते बंदिशों के पहरेदार
औरतें कठपुतली नहीं वो भी जीती गाती है इन्सान
उन्हें अवसर दो फैला दो शिक्षा व ज्ञान के उजियार

  बाहर निकाल धर्म के रूढ़िवादी पुराने खयालात
  बेटा ही जल दाता भूला दो, कमजोर मानसिकता
  प्यार करो दोनों को बिटिया भी देगी सुख सेवा से
  गौरवान्वित करेगी वो बनके तेजस्विनी महाश्वेता

बेटी (मुक्तक)

कोख में मौत बेटी की,सरेआम हो रही
ममता की प्याली खाली, कचरे में रो रही
बेटे की लालसा मन में, करे उपेक्षा उसकी
आज सृजन है शर्मसार, प्रकृति भी रो रही

सड़कों पे अत्याचारी, छीने नींद माँ बाप के
नन्हीं भी नहीं सुरक्षित, कहाँ रखे संभाल के
जनम लेगी कैसे कली ,डर में आज अभिवाक
घर से स्कूल तक जीती बच्ची साये में डर के 

कितनी पढ़ी हो बेटी ब्याही न जाती बिन दहेज के
समाज में व्याप्त दहेज,छीन रही जान बेटियाँ के
सबको खुश रखकर घर संभालती दिलों जान से
मिलते न चंद लम्हें जीवन में उसे खुशी व प्यार के

बिन प्रीत अधूरे सब

जलना ही शमां की नियति
सदियों से उसकी यही गति
रौशन करके सबों के जीवन
तिल तिल करके वो मरती

महल हो या झोपड़ी देती
एक समान ही वो ज्योति
किसी संग विभेद न करती
जल के भी वो राह दिखाती

किस्मत में है उसका जलना
डराती नहीं उसे काली रैना
किसी से कुछ नहीं कहती
जीवन के जंग खुद ही लड़ती

देख जलते शमां को अकेली
भर आता परवाना का दिल
आरजूँ में मिलन के दो पल
जल जाता परवाना पागल

चले न जोर इश्क पे किसीका
न्योछावर हो लुटा देते खुद को
शमा परवाना का प्रेम अनोखा
है निस्काम बलिदान उसका

जाने कौन सुख मिलता उसे
मिट जाता चाहत में प्रिया के
इस जगत में बंधे हैं सब कोई
दिल से होते मजबूर हर कोई

शाश्वत सत्य यही प्रीत की
बिन प्रीतम के अधूरे सभी
मिल जाए सबको मुहब्बत
हँसते गुजरे जीवन सभी की

Monday 19 November 2018

मुहब्बत

विधा-मुक्तक

उनको देखते ही मेरा हाल बूरा हुआ        1
मन मेरा बेकाबू दिल भी घबराया हुआ
धड़कनें भी कहाँ अब मेरा कहना माने
साँसों की तीव्र गति से बैचेन मनवा हुआ

यौवन की दहलीज पर चढके करे सब भूल   2.
रुप यौवन का माया जाल लगे जीवन फूल
धड़क धड़क कर धड़कनें छीने जीवन मूल्य
बहक जाते कदम ऐसे बिछते पथ पर शूल

कब मांगने से मिले, मुहब्बत है किसी को      3.
रब की मर्जी से मिले,मुहब्बत है सभी को
रूह की रौशनी से, सजदा सच्ची मुहब्बत
मन में बसाकर मूरत , पूजता मन है तुझीको

प्यार तो व्यापार होता , ठगता सब किसी से  4.
प्यार का दिखावा करे,  दे घात पीछे से
नेह लुटा के पता चले, सुकून मिले कितना
दुख में जो साथ निभा दे, मिलता है प्यार उसे

लाड़ली

विधा-नवगीत

सुन लो ऐ जग वालों
हूँ तेरे आंगन की कली
बगिया की खुशबू हूँ
मुझसे महकती धरा है
मेरे बिन बेनूर चमन

तेरे गुलशन की हूँ तितली
छूके पंख न कर घायल
मुट्ठियों में कैद न करना
देख के कर ले मुग्ध नयन
मैं हूँ सबकी मुस्कान

स्नेह की धारा मुझसे निकली
मैं ही हूँ झरणों की कल कल
संगीत की धुन मुझसे निकली
हूँ सबकी दिलों की धड़कन
मेरे संग प्रेम अंतहीन

हूँ मैं तेरेकोख की लाड़ली
मुझसे ही है घरों की लाली
करो न मुझको कोई भी नष्ट
वर्ना खत्म हो जाएगी सृष्टि
मेरे दम से दुनिया रौशन

परवाना शमां पे निसार

विधा- सरसी छंद आधारित गीत

शमां न जाने तू क्यों जलती , किसे कर रही याद  
तिल तिल कर तू मरती रहती, है किसका अवसाद

तन मन अपना जला रही है  , क्यों हो गम में बोल
हिया में तेरे कौन दुख है ,  राज जिया की खोल

रंक के घर व राजमहल करे , रौशन एक समान
तिमिर हटाकर रैना की तुम , देती हो वरदान

प्रतिक्षा में अभिसार की करो , न तुम वक्त  बरवाद
शमां न जाने तू क्यों जलती, कर रही किसे याद        1.

हूँ परवाना पागल, बरसों,,,   किया है इन्तजार
घायल हुआ सुधी बिसराया, दिल तुझ पे गया हार

मिट जाए हस्ती फिर भी टुटे , न मिलन की अब आस
 दिवाना हूँ दीदार के लिए, मिल लो तू बस काश

तेरे बिना व्यर्थ है जीवन ,,,,,  हूँ तेरा दिलशाद
शमां न जाने तू क्यों जलती, कर रही किसे याद   2.

रुप सुहाना देख के तेरा,,,,    गवां लिया है होश
आलिंगन को मन लुभाया जब , आ गया बहुत जोश

चाहे जल जाए मेरे पंख,,,,   करूँगा तुम्हें प्यार
सदियों से हूँ  दिवाना, तुझ  ,,,पे जान न्योछावर

हम तुम हैं जन्मों के साथी, अद्भुत है ये प्रमाद
शमां न जाने तू क्यों जलती, कर रही किसे याद      3.