छंद मनोरम
2122 2122
जीत की आई घड़ी है,
भारती जेवर जड़ी है।
झूमने की अब घड़ी है ।।
द्वार, तोरण से सजा है,
माथ पर चंदन रचा है ।
शौर्य टीका से सजा है,
जीत की तुरही बजी है ।
रक्त-रंजित भू सजी है ।।
नेह की छलकी झड़ी है ।
जीत की आई घड़ी है।।
दुष्ट- हिय अमर्ष बढ़ा है ,
काल उनके सिर चढ़ा है।
चाल यह सब दिल-जलों की,
दूर कर नफ़रत सदा की ।
ले तिलक-रज अब धरा की।।
नाचती अब हर कुड़ी है।
जीत की आई घड़ी है ।
आज दुश्मन डर रहा है
नैन से मद, झर रहा है ।
गात पुलकित हो उठा है,
पूर्ण फिर राष्ट्र बनेगा ।
देश खंडित अब जुड़ेगा ।।
देख असि लहरा पड़ी है,
जीत की आई घड़ी है ।
कर्म -योगी तो डटा है ,
ओज की छाई प्रभा है ।
फासला दिल का घटा है
देश से दुश्मन भगाना ।
प्रीत की गंगा बहाना ।।
चाँदनी दर पर जड़ी है ,
जीत की आई घड़ी है ।
आज मन घायल हुआ है,
वीर न्योछावर हुआ है ।
जान कर लेता न पंगा ,
जान से प्यारा तिरंगा ।
तू न कर नापाक दंगा ।।
भ्रष्ट मति क्यों कर सड़ी है,
जीत की आई घड़ी है ।