Monday 29 June 2020

नेहिल सरिता उर बहे

आयोजन - स्वतंत्र
दिन- शनिवार 
दिनांक- 19.6.2020
विधा - राधे श्यामी 
16/ 16 आदि अंत द्विकल 

सीमा पर नित्य कुटिलता अब,बढ रही धृष्टता अरि की है।
करते दुश्मन क्यों मनमानी,बलि चढती नित निरीह की है।
सुत वीर भारती के अनेक  , वो आन नहीं मिटने देंगे ।
हो देश सुरक्षित वीर जवाँ,दुश्मन के शीश काट लेंगे ।

शुचि सदा रहे जब ये वसुधा , तब प्रेम सुधा निर्झर बहती।
सत प्रीति देख निश्छल माता,खुशहाली भी घर-घर रहती।
कुछ संतानें अब भटक रहीं ,माँ वार पीठ पर सहती है ।।
सोने की चिड़िया जब लुटती , निशि दिन क्रन्दन वह करती है।

अब नहीं चलेगी बल जोरी, अरि का मर्दन बस करना है।
भारत माँ का सिर ऊँचा हो, हुंकार हृदय में भरना है।
मन के हों खोट दूर सारे, बस प्रेम सुधा जग बह जाए ।
कर लें सुविचार तनिक मानव,नेहिल सरिता उर बह जाए।
 

उषा झा देहरादून
उत्तराखंड

Friday 26 June 2020

उपेक्षित कारीगर

सारिका का घर बन रहा था , नित्य मिस्री और मजदूरों के लिए 
चाय बिस्किट सुबह शाम बड़े केटली में बना लाती ।सबको बड़े कप में चाय पिलाती , खुद भी अपनी कप भर लाती ।चाय
पीते पीते मीठी - मीठी बातें करती , मजदूरों के दुख सुख भी पूछ लिया करती ।
मिस्री और मजदूर खुश होते और मन से घर के डिजाइन 
पीलर , आर्च खुद एक से बढ़कर एक डिजाइन बनाते । सारिका मन ही मन फूली न समाती ।
उसे पता था ये मजदूर प्रेम और स्नेह के भूखे होते ।इनसे मीठी बातें कर वो घर मनपसंद तरीके से बनवा रही थी ।
घर का काम सम्पन्न हो चुका था ।मिस्री मजदूर का काम समाप्त हो चुका था ।
देखते देखते खूबसूरत घर तैयार हो गया ।मिस्रियों ने बहुत मनोयोग से गृह निर्माण किया था ।सारिका की नाक ऊँची 
होने लगी ।सुन्दर सुरूचिपूर्ण घर बनने के बाद धीरे धीरे उसको अहंकार होने लगा ।
एक दिन मिस्री आया अपना हिसाब करने ।धीरे धीरे वो घर के दहलीज तक आ गया , और मुग्ध होकर घर निहार रहा था ।
इतने में सारिका आ गई , एकाएक चिल्ला पड़ी । कहने लगी, अरे दहलीज तक कैसे तुम आ गयि । कुछ कहना था , तो आवाज लगाता ।
मिस्री रामु बेहद गमगीन होकर बोला , मालकिन हम मिस्री के मेहनत और कारीगरी ही इक दिन ईंट गारे से महल बन जाते ।जिस हाथों की कलाकृति की भूरी भूरी प्रशंसा होती ,उन मिस्री मजदूर को उसे निहारने तक की इजाजत भी नहीं ।
माफ कर दीजिए मालिक मैं अपना औकात भूल गया था...।

बाबा तुंगनाथ

संस्मरण ( यात्रा)

बाबा तुंगनाथ ओढरदानी के दर्शन को निकल पड़ी पति संग ।कुछ घंटे उपरांत हम बादलों के आगोश में थे।नयनाभिराम दृश्यों का अवलोकन करते हुए तथा 
गगनचुम्बी पर्वत मालाओं को चीरते हुए हम पहुँच चुके 
थे, दुगलबिट्टा गेस्ट हाउस में । अप्रतिम प्राकृतिक 
सौंदर्य से लबालव हमारा विश्राम गृह ,वहाँ के अनुपम दृश्य ने हमें सम्मोहित कर दिया ।उस रोमांच को महसूस तो हमने कर लिया पर लिखने के लिए शब्द नहीं मिल 
रहा कल कल झरनों की धुन कानों में मिश्री घोल रही थी,
बाँझ बुराँस और रंग बिरंगे फूलों से भरी घाटी का रूप अलौकिक है।चूँकि दुगलबिट्टा के पहले से ही सैन्चुरी एरिया शुरू हो जाता है -इसलिए यहाँ बिजली की स
सुविथा नहीं पर,सोलर ऊर्जा के द्वारा प्रकाशित होते गेह।
विश्राम गृह में चिमनी का भी प्रबंध था ।चौकी दार ने गर्म
पानी आदि का व्यस्था संभाल लिया ।गाँव के भोले पहाड़ी बहुत ही नेक और कोमल हृदय के होते हैं ।इनके 
सेवा भाव से मन प्रसन्न हो गया । 
अगले सुबह बाबा के दर्शन के लिए चोपता पहँच गई 
पति संग, कुछ स्टाफ हमारे साथ हो लिए थे ।
चोपता से तुंगनाथ भोले बाबा के दर्शन के लिए हमने 
घोड़े ले लिए ।सूर्योदय के रश्मियों से घाटी और निखरी 
निखरी दिख रही थी ।मौसम भी बिलकुल साफ था सो 
प्रकृति के अलौकिक रूप को नैनों ने खूब पान किया ।
हृदय आनंद से विभोर हो रहा था।वैसे तो हम यदा कदा 
पहाड़ों की सैर पर निकलते ही रहते हैं ।हर्सिल की यादें 
अभी भी ताजा है जेहन में,  परंतु चोपता की अपनी 
अलग खूबसूरती है ।
हमने स्वीटजरलैन्ड तो नहीं देखा पर कहते हैं चोपता मिनी स्वीटजरलैन्ड है,सचमुच इस सौन्दर्य के आगे काश्मीर भी फीका है ।
 तुंगनाथ बाबा एक दम टाॅप पर विराजमान हैं ।अगर मौसम साफ है तो केदारनाथ,  बद्रीनाथ , मदमहेश्वर , 
गंगोत्री,  यमुनोत्री के ग्लेसियर बिलकुल पास दिखता है।
हमने भक्ति भाव से शिवपूजन किया ।बहुत सारी फोटो ग्राफी की ।आते वक्त हम टुरिष्ट बन प्रकृति का आनंद 
लेते हुए जगह जगह बुग्याल (हरी दूब से ढकी घाटी ) में ,
झरने के किनारे फोटोग्राफी करते हुए अपने गन्तव्य
रूद्रप्रयाग की ओर निकल पड़े ।सचमुच उत्तराखंड को 
धरती का स्वर्ग कहें तो इसमें कोई  अतिश्योक्ति नहीं ।
देवताओं के निवास और प्रकृति के सुन्दरता से भरी अलौकिक दृश्य प्रचुरता से विराजमान है...।🌹
 उषा झा स्वरचित 
देहरादून उत्तराखंड

  


Tuesday 16 June 2020

दुख की दवा करे कोई

2122  1212  22/112
रदीफ - करे कोई
काफिया - आ
मिसरा - मेरे दुख की दवा करे कोई।
2122      1212     22
रंजो गम जो  कहा करे कोई ।
पीर उसकी सहा करे कोई ।

ताश सी जिन्दगी नहीं बिखरे।
मेरे दुख की दवा करे कोई ।।

मेंहदी हाथ में रची ही थी ।
मांग में खूँ भरा  करे कोई  ।।

फूल भी साख से बिछुड़ रोये ।
बाग उजड़े दगा करे कोई  ।

प्रेम आघात सह न पाते अब ।
राह  सजदा सदा  करे कोई ।।

काश टूटे न दिल किसी का भी।
प्यार पर बंदिशे  खफ़ा करे कोई

भेद अब ऊच नीच में क्यों है?
रीत ऐसी दफा करे कोई  ।।

रात तम की हटे जगत से अब ।
हो अमन बस वफा करे कोई  ।। 

नैन मोती झरे न जग वालो  ।
नूर माँ का विदा  करे कोई  ।।

 उषा झा देहरादून
सादर समी

उल्फत की रैन

काफिया - आम
रदीफ - हो जाए
1222     1222      1222         1222

  तुम्हारे संग बीते  खुशनुमा   यह शाम   हो   जाए  ।
 बिछुड़ कर भी मधुर पलछिन नहीं गुमनाम  हो जाए।
      
चली चर्चा  जभी से ईश्क  की, हर कान चौकन्ने    ।
लगी है  भीड़  मजनूँ की  उन्हें  पैगाम  हो  जाए  ।।

उन्हें उल्फ़त भरी  हर  रैन  की  चाहत सदा रहती  ।
चलाए नैन से  बस तीर  दिल  नीलाम   हो   जाए  ।।

अगर दिलबर  तुम्हारा प्यार हो सच्चा मिटा दूँ जाँ  ।।
तुम्हें कुर्बां  किया तन मन  जरा सा नाम  हो   जाए ।।

भुलाए भी नहीं वो वक्त   बिसराता   हृदय   अंकित ।
सुहाने दिन करे पुलकित,नवल उर धाम  हो जाए ।।

पहर बीते नहीं आयी खबर उनकी  सशंकित मन ।
पवन संदेश दो पिय का   तभी  विश्राम  हो  जाये  ।।

बने सेवक निभाना ही पड़े हर  फर्ज  है  सबको ।।     
निखरता  सोच जब मनका ,शुचित आवाम हो जाए  ।।

विरह भारी  चिकित्सक पिय  उषा बैचेन रहती है ।
जगत  विपदा टले अब तो उन्हें  आराम हो जाए ।।
उषा झा देहरादून

मिलन की प्यास

रदीफ - नहीं
काफिया- आस
मापनी' 22  22  22  22   22  22 2
चाहत का मुझको कोई तोआभास नहीं।
मुझसे प्यार जताता लेकिन है विश्वास नहीं।

सर से पाँव तलक लगता वो झूठ पुलिन्दा ।
चालू सा दिखता इंसान लगे वो खास नहीं

कद्र करो सबकी पर हद से ज्यादा क्यों झुकना
भूलो मत ये साथी हैं तेरे पर दास नहीं।

रिश्ते सूखे फूलों सा खुशबू ही गायब जब ।
फिर नैनों में पहले सा मिलने की प्यास नहीं।

दोस्ती में तो सच्चाई ही नव आयाम गढे ।
यार कुटिल हो तो आघात लगे उर रास नहीं  ।।
    
पुष्प कली खिलता मन आँगन में गर पास सजन।
सबके साजन संग सदा जाए वनवास नहीं  ।

उम्मीद उषा उर में  खुशियाँ  देखो   छलके है ।
प्रियतम दूर दुखी दिल भाये अब  मधुमास नहीं
उषा झा देहरादून
अरदास , मधूमास , विश्वास, उपहास

Sunday 14 June 2020

कामना अभिसार की

धुन -इक रास्ता है जिन्दगी जो थम गये तो कुछ नहीं ।

रदीफ - तेरा
काफिया आ
2212  2212   2212  2212
दीवानगी हद से बढी है संग अब भाता तेरा ।
सावन अगन दिल में बढाए फासला खलता तेरा ।।

दर्पण दिखाता नूर रौनक है बढी पैगाम सुन ।
पट खोलती पथ देखती, दिल जो करे सजदा तेरा।।

साथी बिना जीवन अधूरा अब सफर कटता नहीं ।
है खूबसूरत जिन्दगी बस साथ जो मिलता तेरा ।।

दुश्वारियाँ भी खत्म मनके पास जब मनमीत हो।
हो निशि घनेरी मन निडर कर थाम पग बढता तेरा ।।

हो खत्म रोगों का समर ये दूरिया भाती नहीं ।।
उर मुस्कुराता जब हिया संदेश शुचि सुनता तेरा।।

बस खत्म हो मेरी परीक्षा कामना अभिसार के ।
जीवन भँवर मिल पार करना आस दिल करता तेरा ।।

आँगन उषा कबसे खड़ी नव रंग में भरना तुझे ।
स्वर्णिम पहर नूतन सवेरा द्रार पर आया तेरा ।।
उषा झा देहरादून