विधान- यगण यगण (122 +122)
दो दो चरण तुकांत , 6 वर्ण
भजो राम सीता ।
मिले ईश मीता ।।
करो प्रेम सच्चा ।
नहीं मोह अच्छा ।।
धरा देव आए ।
सभी संत गाए ।
सुधा प्रेम लाए ।।
सभी पुण्य पाए।
सुनो भक्त सारे ।
कथा सत्य प्यारे ।।
लिखी है पुरानी।
अयोध्या कहानी ।।
कहे राम गाथा ।
पिता ऊँच माथा ।।
सिखाते सभी को।
करो प्यार मही को ।
रहे आन दाता ।
गये छोड़ माता ।।
बिना राम जीती
सदा पीर पीती ।
छली क्यों विमाता
नहीं गेह नाता ।।
बहे नीर भ्राता ।
किया क्या विधाता ।।
लिए पाद भाई ।
चले संग माई ।।
सिया राम खोये ।
सभी भ्रात रोये ।।
बिना पी अकेली
नहीं है सहेली ।।
पिया की सुप्रीता ।
हिया उर्मि रीता ।।
*उषा की कलम से*
देहरादून
*उषा की कलम से*
देहरादून