विधा - मनहरण घनाक्षरी
क्यों कली को नोच डाला, दुखदायी पीती हाला,
हुई तार-तार स्मिता,जीना दुश्नवार है ।।
सरे आम लाज लुटी,घटना ये कैसी घटी,
सिसकी कहीं लाडली ,सोया संसार है।।
दूषित समाज सारा, बह रहा नैन खारा,
वहशी शिकारियों से,बिटिया शिकार है ।।
वहशी को मिले सजा,खिले नहीं फूल ताजा,
कोख शर्मसार करे,हद हुई पार है ।।
सह रही बेटी घातें, रिपु लार टपकाते ,
पड़ी खूँखार निगाहें,मन में संताप है ।
बेटी जनना भूल क्या? ज्ञान नष्ट समूल क्या ?
बचा नहीं उसूल क्या ? बेटी अभिशाप है ।।
सृष्टि ये सवाल करे , दुष्ट क्यों बवाल करे ?
दुहिता में नेह भरें,देवी की प्रताप है ।
वनिता से कोख तरे, जग का कल्याण करे ,
उन्हें देख नहीं जरें, कलि प्रेमालाप है ।।
#उषा #की #कलम #से
देहरादून उत्तराखंड
No comments:
Post a Comment