Thursday 29 November 2018

विलग होना शरीर से आत्मा का

विधा-  सरसी छंद आधारित गीत

नूतन वस्त्र पहनकर आता , मनुज देह हर बार  ।
आत्मा  मुक्त जीवन मरण से  , नश्वर ये संसार   । 
    
                       ⚘⚘(1 )⚘⚘

मरती आत्मा कभी नहीं है ,,, बदल   लेती शरीर
कर्मों के अनुरुप होती है,,,, भाग्य की भी लकीर

हर योनियों का हिसाब ईश,,,करे सबका जरूर
किए कर्म जिसने जैसे फल,,, देते बनकर क्रूर

ओज खोया शरीर, छोड़ने ,,, को जग हो तैयार
आत्मा मुक्त जीवन मरण से,,, नश्वर  ये  संसार

                        ⚘⚘(2)⚘⚘
                
बुरे कर्म करके डरा नहीं ,  सोचा नहीं अंजाम
आत्मा ने तुझको समझाया, ली न फिर भी विराम

कितने ही किए हेरा फेरी,,,, कलुषित  तेरे  सोच
घायल किया दिलों को कितने ,,वचन में न था लोच

मिल जाते हैं  करनी के फल,,,, बोते हैं जो खार
आत्मा मुक्त जीवन मरण से ,,,, नश्वर  ये  संसार

                          ⚘⚘(3)⚘⚘

कर्मों के अनुरुप लिए जन्म ,,,मनुज  हुए  देवेष
सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग,,, सब युग हुए विशेष

सतयुग सबसे पावन निर्मल  ,,,, करते देव निवास
सत्य व शांति की बोल बाला ,,, करे  प्रेम परिहास

त्रेता में था तमस आ घेरा ,,,, द्वापर पंच विकार
आत्मा मुक्त जन्म मरण से,,,,  नश्वर  ये   संसार

                        ⚘⚘(4 )⚘⚘

कलयुग के चरण पड़े जैसे , घेर लिए अति पाप 
मनुजों ने पहचान मिटाया  , सबके  सब हैं  बाप

योग तप करना हुआ मुश्किल, जपो नाम भगवान
भक्ति भाव से तू पूज प्रभु को ,  मिलता है वरदान

माया में  नश्वर  शरीर  के ,,,,  पड़ना  है  बेकार
आत्मा मुक्त  जीवन  मरण  से,,,नश्वर  ये  संसार

                      ⚘⚘(5)⚘⚘

जब  तक संभलता मनुष्य आ ,,, जाता यम का दूत
आत्मा मुक्त चले ही जाते ,,,,छोड़ चीर निंद्रा में धूत

अब तक तो नाम शोहरत ही ,, थी केवल पहचान
बन गया है मिट्टी का शरीर ,,,  छुट गए जब ही प्राण

मिट्टी के तन का यही मोल , कर लो सब स्वीकार
आत्मा मुक्त जीवन मरण से,,, नश्वर  ये   संसार

Monday 26 November 2018

प्रतिक्षा

विधा-  कुन्डलियां

बने दो दिल एक जान ,,है जन्मों का साथ   1.            
मुदित मन हो रहा हर्षित ,,लिए हाथों में हाथ
लिए हाथों में हाथ,,,,,सब प्रेम का दीवाना
तन मन जलाते क्यों  ,लिखा नसीब से मिलना
इश्क तो इबादत है,,,, पूज ले दिल से अपने
दिल में तुम हो बसे , हर जनम प्रियतम बने

प्रेम प्रतिक्षा नैनन में ,,, खोल हृदय के पाट  2.
जिया डोले धड़क धडक,,देखे पी के बाट
देखे पी के बाट,,, मनवा में अगन लगाय
तड़प रहे बिन सजन , विरह शूल सहा न जाय
मचल रहा अरमान , पिघल रहा उर बन मोम
दो जां एक आत्मा, हर धड़कन में बस प्रेम 

कंचन सा बदन तेरा ,छाया कितना नूर
मलय सी खुशबू तेरा,,,,बढ़ाते हैं सुरूर
बढ़ाते हैं सुरूर ,,, सुवासित हुआ जिन्दगी
छाया प्रेम का नशा ,,प्रीत की है प्यास जगी
मदमाती पुरवाई ,, मन को बहकाती सजन
 रूप सलोना लगे ,लुभा रहा काया कंचन

सच्चे प्रहरी

विधा- गीत

प्रभु जी तुम कितने ही गम दोगे 
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे

तन ढकने को हमें  वस्त्र नहीं
खाने को घर में मिले रोटी नहीं
अपने भाग्य को खुद बनाउगाँ
खुशियों से जीवन सजाऊँगा
हँसते हँसते ही गम को पी लेंगे
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे ...।।

करनी पड़े बचपन में मजदूरी
जिन्दगी में है कितनी मजबूरी ,
मुश्किल को धूल चटाऊँगा    ।
मै तो अपना फर्ज निभाऊँगा
जीवन की विसंगतियाँ भूला देंगे,
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे.. ।।

वंचित हूँ हर एक सुविधाओं से
सरकारी स्कूल में पढूँगा मन से,
शिक्षा का मशाल जलाऊँगा   ।
उँचे पद को हासिल कर लूँगा
करेंगे सब फक्र ऐसे चिराग बनेंगे,
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे   ।।

धनिकों का वर्चस्व मिटाकर
मेधा से जाऊँगा शीर्ष पर
जन जन होंगे गर्वित मुझपर  ।
ऐसे सच्चे प्रहरी बनूँगा
देश के हित में मर मिटेंगे ,
कर्मों से अपने नसीब बदल देंगे ।।

Sunday 25 November 2018

काल के पद चाप

विधा-कुंडलियां   

आना शिशू का भूमि पर , भरे प्रेम उर भाव  3.
 लोग बधाई दे रहे  ,,,, पले  नेह  की  छाँव
पले नेह की छाँव ,     सभी अह्लादित होते
हँसकर सभी गुजार ,   यहाँ पर जीवन लेते,
 कठिन टालना मृत्यु  ,,,,,सत्य है जग से जाना
 कर चल ऐसे कर्म ,,,,, पड़े फिर लौट आना

मनुज पहन चोले नए  ,आता है संसार
निभा कर फर्ज अपना ,, जी लो तुम किरदार
जी लो तुम किरदार,,कर्तव्यों की राह पकड़
दया धर्म  है पूजा,,, लालसाओं में न जकड़
दो दिनों का मेला जग , जी लो खुशियों से आज
आ के धरा पर तुम , कर कुछ नए काम मनुज

रिश्ते में उलझा रहा ,   राग द्वेष में जीवन
दौलत में फंसा मन, माया न छोड़ रहा तन
माया न छोड़ रहा तन ,छोड़ अब सारे झंझट
सुन लो अब आ गए  ,  काल के पद चाप निकट
आत्मा कराह रही,,,,, मूढ़ क्यों मद में जीते
 विदा के पल भी ,,,,,, छुट  न  पाते  रिश्ते

ईमान (गजल)

रदीफ़-  नहीं होती
काफिया- ओती

 बिन प्यार के कभी आँखे ख्बाव बोती नहीं होती      
 जीवन के खूबसूरत लम्हों के ये मोती नहीं होती
 
  तेरे बैगैर कैसे जीते थे ये सोच के मन सिहर उठा
  तुम जुदाई के गम न देते तो आंखें रोती नहीं होती

 सच्चे मुहब्बत से महबूब का दिल भी संभल जाता
 दिलबर को अपनी कभी शिकायते ढोती नहीं होती

 आशिकी करनी और बात निभाना उतना मुश्किल
 बेवफा के दिल कभी पाकीजगी शोभती नहीं होती

  दुश्मन को भी कभी दिखाए न मुश्किल भरे दिन
  साथी हो संग तो साया भी साथ छोड़ती नहीं होती
  
  कोई किसी के जज्बातों के कदर न करते जहां में
  सभी स्वार्थ के शिकार अपना खोजती नहीं होती 

   ईमानदार सजन धोखा न देते अपने प्रियतम को
   परख लें उन्हें,साफगोयी हरदम बोलती नहीं होती

   मुहब्बत का वादा सच्चे प्रेमी ही निभाया करते हैं
   सचमुच झूठों के नैन ईमान की ज्योति नहीं होती

 पाक साफ मुहब्बत रब के रहमो करम से ही मिलता
  नशीब वालों की किस्मत कभी डोलती नहीं होती



 

Thursday 22 November 2018

राखी (मुक्तक)

रहो तुम जिस देश भाई,हमेशा खुश रहना    ।
कभी भूलना न बहन को,जगह मन में देना  ।
बाँधना एक सूत हथेली पर मेरे ही नाम से   ।
रक्षा हो सभी बहनों का,बस ये लाज रखना  ।

एक ही माली थे,एक ही बगिया की फूल वो  ।
दूर भले हो गई सबसे याद करती हरदम वो  ।
वंचित न करना अपने प्यार दुलार से भाई   ।
भूल न पाती मायके सबके जीगर में रहती वो

माँ पिता की लाड़ली खुश रहती ससुराल   ।
बचपना छोड़ सब साँचे खुद को ली ढाल  ।
निभाती सभी रिश्ते दिल से मिली जो सीख  ।
रीत निभाना भाई राखी पर आना हर साल   ।

प्रहरी हैं सच्चे बाजी प्राणों के हँस के देते   ।
पहले भेजूँ उन्हें राखी, वचन वही निभाते   ।
वीर सैनिक भाई की कलाई कभी सूनी रहे  ।
सुरक्षित सभी उनसे,देश हीत में आहुति देते ।

वंचितो को बांधूँ राखी ,,,मुस्कान बनी रहे   ।
सबके भाई की कलाई,,,, हमेशा सजी रहे   ।
बहनें जिसे बांधे न राखी,,, बड़े हतभागी हैं  ।
अपने पराये के बीच भी,,, रिश्ते बनी रहे      ।

भ्रमित नव पीढ़ी

विधा- दिग्पाल छंद

 संग रहते भाई बहन , मात पिता खुश होते  ।
 बचपन में हरदम ही , नेह के बीज बोते  ।।
 बच्चे बने सब सभ्य , उन्होंने ही सिखाया ।
 मिल जुलकर प्यार बढ़े,सबको यही बताया ।।

बुरी संगत में पड़ कर,पथ भ्रष्ट बन जाते हैं
शर्म से गर्दन उनका,,,,  झुक जाया करते हैं  
अच्छी परवरिश से भी,,,, मार्ग से भटक जाते  ।
बीज उन्नत होकर न ,,, जाने क्यों सड़ जाते ।

 संस्कार जो दिए थे , ले सबके आशीसें     ।
 बड़े हो कर भूल गए , तोड़े सभी भरोसे  ।।
 पौध छायादार वृक्ष ,,,, बने आस में जीते  ।
 नेह से सींचकर भी,,,, खाली आँसू पीते ।

पा कर शोहरत आज,छोड़ दिया उन्हें ही ।
पेड़ पर बैठ कर क्यों, काट रहे जड़ को ही
अस्तित्व मिटेगा नव, पीढ़ी समझ न पाते   ।।
जड़ से पृथक हो पेड़, कभी जी कहाँ पाते   ।

 

आया चुनाव

विधा- दोहा/गीतिका छंद

 छुट रहे पसीने अभी , आ गए अब चुनाव ।
  फेंक रहे नेता गली,गली झूठ का दाव   ।

21 2  2         212 2        21 2 2      212
खोलकर उर मत दिया था, दुख हमारी कब सुनी ।
जीत के तुम घमंड में अब   ,कर न हम को अनसुनी
बेचकर तू शर्म हया ना,,,,डींग का पढ़ जूमला ।
सोचते ठग ले हमें वो ,,,,,,,फिर रहे वो फूसला ।
 
जो सिंहासन है दिलाया , भूलने कल थे लगे ।
पा गए ज्यों तुम सत्ता तो ,,,,, टालने क्यों थे लगे ।
सोच के अब तो सभी जन,वोट अब कर ने लगे
वोट देकर शपथ ले ली    , भाव वो खाने लगे ।

छोड़ खेती झूठ की अब ,,,, बर गलाना छोडिए
बाँटना अब तो सभी को ,,,,,आज से ही छोड़िए
लोभ का झासा न देकर ,,,,काम उत्तम कीजिए
काम  ही पहचान नेता ,,,,,कुछ नया तो कीजिए

Wednesday 21 November 2018

तराने प्यार के

विधा- मुक्तक

नयन बरसते तुम बिन, जाने क्यों भूल गए    
विरह की मारी तड़पूँ, तुम कहाँ चले गए
करती हूँ मुहब्बत तुझसे,इस जहां मे अधिक
तुझसे कब हो मिलन,हम अधूरे रह गए

 जानूँ न दिल धड़क धड़के क्यों तुम्हें पुकारता
नाम तेरा जपूँ  दिन रात,,,याद हमें सताता
क्यों चलता न जोर मुहब्बत पे किसी का
तुम बिन मेरे जीवन को अब कौन संवारता

मुहब्बत में सनम मुझे , तुम धोखा न देना
रखना तू दिल के करीब, पलकों पे बसाना
मेरे लिए तो सबसे नायाब तोहफा है मुहब्बत
तुम बिन अब जीना नहीं, कभी दूर न जाना

प्यार के छाँव में हो जीवन, खुशियाँ चुमें कदम
हर जनम बस तुम ही मिलो, खाओ अब कसम
बिन प्यार के जीवन का,होता न कोई मतलब
प्यार के तराने गाते ही, बीते जीवन हरदम

मुखौटा

विधा-कविता

चेहरे पे ओढ़े रहते मुखौटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं
                                            
मुखौटे में अपनी पहचान
छुपा के घुमते  हैं शैतान
दूषित इनके हैं आचरण
मानते लोग इन्हें भगवान ।।

भोले भालों को ये लूटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

सफेद लिहाफ ओढ़े इंसान
लगे है स्वच्छ निर्मल  पावन
स्याह चेहरा से सब अंजान
जाने न हैं कितने बेईमान ।।

 होते बड़े मक्कार व झूठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

मिश्री जैसे होते इनके वचन
देते रहते हैं सबको प्रलोभन
पर इनके चक्कर में न आना
होशियारी जल्दी पकड़ लेना ।।

बोलते ये बड़े ही मिट्ठे मिट्ठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

ईमानदारी का ये है दुश्मन
चाहे हो कितने ही धनवान
काम इनका लोगों को ठगना
कभी इनपे भरोसा न करना ।

ये तो एक उल्लू के पट्ठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं
 
मुखौटे की पोल जब खुलती
चेहरा सबसे छुपाते फिरते
मियाद जब पूरी हो जाती
सूद के संग मूल वापस होते ।।

लोभ लालच में सबको लूटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

दौलत की चमक फीकी पड़ती
रूपये पैसा कभी काम न आते
सच्चाई और नेकी ही साथ देती
 कपटियों से सभी दूर ही भागते ।।

अकल के बड़े होते मोटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

 

गूढ सीख

विधा- पदपालाकुलक छंद

तज  कर मान अभिमान को तू   ।
बन जा रे  मनुज  इंसान  तू   ।
तन कर्म भट्टी में तपा ले  ।
मन को खरा सोना बना ले   ।

जीवन पथ मुश्किलों से भरे
दृढ़ निश्चय से हल मिला करे
कठिन तपों से ही मुक्ति मिले
ब जलधि मंथन से,अमृत मिले

चल तू कर्तव्यों के राह पे   ।
चाहे कंटक बिछे हो पथ पे   ।
हो न तेरा साथी तभी भी ।
तू नेह दीप ले चल तब भी ।

ये जीवन है बहती दरिया  ।
इस के भगवन ही खैवैया    ।
वो ही करे पार दरिया के   ।
 जो  ठान लेते  तैरने के    ।
 
बिन कोशिश मेवा नहीं मिले ।
फल कठिन परिश्रम से ही मिले  ।
ये ही गूढ़ सीख जीवन का    ।
है क्रोध द्वेष बेमतलब का     ।

Tuesday 20 November 2018

धर्म (मुक्तक)

बताकर धर्म का पैगम्बर करते जुर्म संग हैं उनके
बनाकर नारी को खिलौना जीवन से खेलते उनके
दस्तूर नहीं किसी कौम का, लिखा है ग्रंथ में कहाँ
बीच राह में छोड़ के अकेले,दिल फिर तोड़ते उनके

धर्म की आड़ में छुप के जो मानवता पे वार करते हैं
लेके पत्थर निहत्थे लाचार के सिर वो फोड़ा करते हैं
नापाक इरादे से इन्सानियत को क्यों कर करते रूसवा
खुदा से बंदगी कैसी जो होली खून की खेला करते हैं

अंधविश्वास के आड़ में धर्म को बनाते हैं हथियार
हद से ज्यादा औरतों पे रखते बंदिशों के पहरेदार
औरतें कठपुतली नहीं वो भी जीती गाती है इन्सान
उन्हें अवसर दो फैला दो शिक्षा व ज्ञान के उजियार

  बाहर निकाल धर्म के रूढ़िवादी पुराने खयालात
  बेटा ही जल दाता भूला दो, कमजोर मानसिकता
  प्यार करो दोनों को बिटिया भी देगी सुख सेवा से
  गौरवान्वित करेगी वो बनके तेजस्विनी महाश्वेता

बेटी (मुक्तक)

कोख में मौत बेटी की,सरेआम हो रही
ममता की प्याली खाली, कचरे में रो रही
बेटे की लालसा मन में, करे उपेक्षा उसकी
आज सृजन है शर्मसार, प्रकृति भी रो रही

सड़कों पे अत्याचारी, छीने नींद माँ बाप के
नन्हीं भी नहीं सुरक्षित, कहाँ रखे संभाल के
जनम लेगी कैसे कली ,डर में आज अभिवाक
घर से स्कूल तक जीती बच्ची साये में डर के 

कितनी पढ़ी हो बेटी ब्याही न जाती बिन दहेज के
समाज में व्याप्त दहेज,छीन रही जान बेटियाँ के
सबको खुश रखकर घर संभालती दिलों जान से
मिलते न चंद लम्हें जीवन में उसे खुशी व प्यार के

बिन प्रीत अधूरे सब

जलना ही शमां की नियति
सदियों से उसकी यही गति
रौशन करके सबों के जीवन
तिल तिल करके वो मरती

महल हो या झोपड़ी देती
एक समान ही वो ज्योति
किसी संग विभेद न करती
जल के भी वो राह दिखाती

किस्मत में है उसका जलना
डराती नहीं उसे काली रैना
किसी से कुछ नहीं कहती
जीवन के जंग खुद ही लड़ती

देख जलते शमां को अकेली
भर आता परवाना का दिल
आरजूँ में मिलन के दो पल
जल जाता परवाना पागल

चले न जोर इश्क पे किसीका
न्योछावर हो लुटा देते खुद को
शमा परवाना का प्रेम अनोखा
है निस्काम बलिदान उसका

जाने कौन सुख मिलता उसे
मिट जाता चाहत में प्रिया के
इस जगत में बंधे हैं सब कोई
दिल से होते मजबूर हर कोई

शाश्वत सत्य यही प्रीत की
बिन प्रीतम के अधूरे सभी
मिल जाए सबको मुहब्बत
हँसते गुजरे जीवन सभी की

Monday 19 November 2018

मुहब्बत

विधा-मुक्तक

उनको देखते ही मेरा हाल बूरा हुआ        1
मन मेरा बेकाबू दिल भी घबराया हुआ
धड़कनें भी कहाँ अब मेरा कहना माने
साँसों की तीव्र गति से बैचेन मनवा हुआ

यौवन की दहलीज पर चढके करे सब भूल   2.
रुप यौवन का माया जाल लगे जीवन फूल
धड़क धड़क कर धड़कनें छीने जीवन मूल्य
बहक जाते कदम ऐसे बिछते पथ पर शूल

कब मांगने से मिले, मुहब्बत है किसी को      3.
रब की मर्जी से मिले,मुहब्बत है सभी को
रूह की रौशनी से, सजदा सच्ची मुहब्बत
मन में बसाकर मूरत , पूजता मन है तुझीको

प्यार तो व्यापार होता , ठगता सब किसी से  4.
प्यार का दिखावा करे,  दे घात पीछे से
नेह लुटा के पता चले, सुकून मिले कितना
दुख में जो साथ निभा दे, मिलता है प्यार उसे

लाड़ली

विधा-नवगीत

सुन लो ऐ जग वालों
हूँ तेरे आंगन की कली
बगिया की खुशबू हूँ
मुझसे महकती धरा है
मेरे बिन बेनूर चमन

तेरे गुलशन की हूँ तितली
छूके पंख न कर घायल
मुट्ठियों में कैद न करना
देख के कर ले मुग्ध नयन
मैं हूँ सबकी मुस्कान

स्नेह की धारा मुझसे निकली
मैं ही हूँ झरणों की कल कल
संगीत की धुन मुझसे निकली
हूँ सबकी दिलों की धड़कन
मेरे संग प्रेम अंतहीन

हूँ मैं तेरेकोख की लाड़ली
मुझसे ही है घरों की लाली
करो न मुझको कोई भी नष्ट
वर्ना खत्म हो जाएगी सृष्टि
मेरे दम से दुनिया रौशन

परवाना शमां पे निसार

विधा- सरसी छंद आधारित गीत

शमां न जाने तू क्यों जलती , किसे कर रही याद  
तिल तिल कर तू मरती रहती, है किसका अवसाद

तन मन अपना जला रही है  , क्यों हो गम में बोल
हिया में तेरे कौन दुख है ,  राज जिया की खोल

रंक के घर व राजमहल करे , रौशन एक समान
तिमिर हटाकर रैना की तुम , देती हो वरदान

प्रतिक्षा में अभिसार की करो , न तुम वक्त  बरवाद
शमां न जाने तू क्यों जलती, कर रही किसे याद        1.

हूँ परवाना पागल, बरसों,,,   किया है इन्तजार
घायल हुआ सुधी बिसराया, दिल तुझ पे गया हार

मिट जाए हस्ती फिर भी टुटे , न मिलन की अब आस
 दिवाना हूँ दीदार के लिए, मिल लो तू बस काश

तेरे बिना व्यर्थ है जीवन ,,,,,  हूँ तेरा दिलशाद
शमां न जाने तू क्यों जलती, कर रही किसे याद   2.

रुप सुहाना देख के तेरा,,,,    गवां लिया है होश
आलिंगन को मन लुभाया जब , आ गया बहुत जोश

चाहे जल जाए मेरे पंख,,,,   करूँगा तुम्हें प्यार
सदियों से हूँ  दिवाना, तुझ  ,,,पे जान न्योछावर

हम तुम हैं जन्मों के साथी, अद्भुत है ये प्रमाद
शमां न जाने तू क्यों जलती, कर रही किसे याद      3.

अगन पीर की

विधा- रूपमाला छंद
14 / 10 के भार मात्रा

भँवरा लगा रहा फेरा ,कलियों का देखो    ।
प्रेम रस पान को छुपा है ,पंखुड़ी में देखो    ।
रूप निखरा गुलशन का,चटक गई कलियाँ  ।
अलि पुष्प का मिलन अद्भुत,बिखर गई पंखुड़ियाँ

नयन की भाषा है मौन , चुभता मन कटार   ।
बिन बोले ही कर देता, झंकृत दिल के तार
मन से मन का डोर बंधा, जन्मों का बन्धन ।
प्रियतम संग रहे हरदम  ,टुटे न प्रेम बंधन ।

हृदय के प्रेम भावों से  ,  जले छंद के अलाव
सद्य पी को समर्पित मेरे, अब हर लय व भाव
 रहूँ न विलग तुझसे कभी ,हर क्षण संग बिताए
 लफ्ज भी सिर्फ तेरे गजल , व नज्म गुणगुनाए

रश्मि उषा की जब बिखरी , रुपहले हुए व्योम
शब्दों के अंकुर प्रस्फुटित, हृदय भी हुए मोम
निज  स्वप्न भरे जीवन को, करे सब साकार
दिल का चमन महक उठता,मीत हो दिलदार

महि पे विकल प्रेम में, उर, में मिलन की पीर
प्रीत की अभिव्यंजना में , बहाए  नयन  नीर
अद्य हिय की अगन बुझे ,हो सजन संग प्रीत
मृदु नेह की झड़ी उर में, प्रेम  की हो जीत

 

Sunday 18 November 2018

यात्रा वृतांत चार धाम की

विधा - संस्मरण

यूँ तो मैं देहरादून में रहती हूँ परन्तु पतिदेव की वर्तमान पोस्टिंग रूद्रप्रयाग आना जाना लगा रहता है । पहाड़ों की सुन्दर वादियों से हमेशा ही रूबरू होती रहती हूँ । प्रकृति के गोद में बसा ये शहर बहुत विख्यात है। यहीं से केदारनाथ और बद्रीनाथ के रास्ते अलग होते हैं ।
रूद्रप्रयाग जनपद में  केदारनाथ, तुंगनाथ,मद महेश्वर ,
शिव और पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण साथ ही अनेक सिद्धि पीठ के लिए प्रसिद्ध हैं । कहते हैं रूद्रप्रयाग संगम (अलक नंदा और मन्दाकिनी) पर नारदमुनि बरसों तप किए थे ।
हमारी यात्रा तड़के सुबह रूद्रप्रयाग संगम नगरी से आरंभ हुई...।हम अलकनंदा के किनारे होते हुए माँ धारी देवी सिद्धि पीठ के बगल से होते हुए श्रीनगर पहुँचे ।श्रीनगर में कुछ देर ठहरने के बाद पहाड़ों से गुजरते हुए विश्व प्रसिद्ध टिहरी डेम पहुँचे ।
इतनी ऊँचाई पर विशाल झील को देखकर मंत्रमुग्ध सी रह गई ।वहां बोटिंग का आनंद लेने के बाद झील के
किनारे किनारे खूबसूरत वादियों, हरे भरे सीढ़ी दार खेतों एवं अनगिनत झरणों के पास से गुजरते हुए चिन्यालीसौंड़ पहुँचे । भागिरथी नदी के किनारे बेहद सुंदर शहर देख अचंभित रह गई । भागिरथी नदी पे बना खूबसूरत पुल भ्रम दिला रहा था कहीं हम विदेश में तो नहीं आ गए ।चूँकि हम अपनी गाड़ी से सफर कर रहे थे तो कहीं भी
सुन्दर दृश्य को देखकर अपने कैमरे में कैद कर लेते थे
चिन्यालीसौंड़ में झील को छोड़कर हम भागिरथी के किनारे होते हुए धरासूँ बैण्ड और राडी टाप होते हुए गंगा वैली से गुजर कर यमुना वैली पहुँचे ।राडी टाप सात हजार  फीट से भी अधिक ऊँचाई पर है ।दिन में भी शाम होने का अहसास हो रहा था ।चीड़ और बुरांश से आच्छादित पर्वत श्रृंखला और जंगली जानवरों को देखकर मन रोमांचित हो रहा था ।मौसम इतना खुशगवार था लग रहा था सचमुच हमलोग स्वर्ग में विचरण कर रहे हैं ।
अब हम बडकोट पहुँचे । वहां पर पतिदेव के सहकर्मी मित्र स्वागत के लिए खड़े थे ।
फिर हमने उनके साथ भोजन किया ।
अब बड़कोट से आगे जानकीचट्टी के लिए निकल पड़े ।हमारे साथ वहाँ का एक स्टॉफ भी मार्ग दर्शन के लिए साथ हो लिए ।यमुना नदी के किनारे उबड़ खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए हम जानकी चट्टी पहुँच गए। रात्रि विश्राम वहीं के गेस्ट हाउस में था । यमुना की कल कल धुन मन को लुभा रहा था । हल्की बारिश व ठंडी हवाओं के करण मौसम भी काफी सर्द हो रहा था ।
सुबह हमारे घोड़े तैयार थे । हमलोग छै बजे यमुनोत्री धाम के लिए निकले । छै किलोमीटर की कठिन चढ़ाई, सीढ़ीदार संकरे दुर्गम रास्तों से होते हुए आठ बजे पहँचे यमुनोत्री धाम ।
वहाँ का प्राकृतिक दृश्य ,हिमालय से साक्षात हिम नद यमुना को देखकर मंत्रमुग्ध हो गई ।वहां गर्मकुन्ड में स्नान व पूजा के बाद हमलोगों ने नास्ता किया ।कुछ घंटे गुजारने के बाद हमलोग वापस जानकी चट्टी आ गए ।फिर खरशाली (माँ यमुना की शीतकालीन निवास) घूमने गए। बेहद खूबसूरत गाँव खरशाली लगी, जहाँ मंदिर ही मंदिर थे। सागवान लकड़ी से बने मंदिर कास्टकला का अद्भुत मिशाल था। शनि मंदिर भी थुनेर लकड़ी से बना है
जाने कितने बरसों से ये खड़ा है।
लोगों ने बताया थुनेर लकड़ी में कीड़े नहीं लगते अत्यधिक मजबूत होता है ।इनके बारे में विभिन्न धारणाएँ प्रचलित हैं ।
यहाँ जो मन्नत मांगते हैं पूरी हो जाती है ।अमावस के रात रखे दो घड़े अपने आप जगह की अदला बदली कर लेते हैं ।
पर्वतीय महिलाओं से गप शप कर हम वापस बडकोट धरासूँ बैण्ड होते हुए हम उत्तरकाशी के लिए चल पड़े।वापसी पे उत्तरकाशी तक एक डॉ साथ आए थे ।बातों ही बातों में उसने का यमुना वैली गंगा वैली से अधिक संपन्न है ।उनके खेत अधिक उपजाऊ है।इसलिए अधिक संपन्न हैं परन्तु गंगा वैली वाले शिक्षित और सरकारी सर्विस वाले हैं ।यमुना वैली वाले गंगा वैली वाले को गंगाडी कहके बुलाते हैं ।वो हमें बहुत चलाक मानते हैं ....।बातों ही बातों में शाम तक हम उत्तरकाशी पहुँच गए जहाँ मेरे पतिे देव के मित्रगण अगवानी के
के लिए आ गए । फिर रात्रि में हमने उत्तरकाशी में ही विश्राम किया ।
तड़के सुबह हम गंगोत्री के लिए निकल पड़े ।मंदाकिनी के किनारे बसे खूबसूरत शहर उत्तरकाशी को निहारते 
हुए हम भटवाड़ी और गंगनानी पहुँचे ।अधिक ऊँचाई से पर्वत के वृक्ष बदल चुके थे ।चीड़ के हरे भरे पड़ो से देवदार से आच्छादित पर्वत श्रृंखला से हम सब गुजर रहे थे।
तीन चार घंटे के उपरांत हम गंगोत्री पहुँचे । उस समय सुबह के नौ बज रहे थे ।भागिरथी नदी के दिव्य दर्शन से हम सब अभिभूत हो गए ।फिर आचमन के बाद जल भर कर हम दोनों ने वहां के पुरोहित से पूजा पाठ कराई। गंगोत्री धाम के पावन भूमि के चरण स्पर्श से एक दिव्य अनुभूति महसूस हो रही थी ।सचमुच ये एक अविस्मरणीय पल था ।जिसका वर्णन शब्दों से परे है ।कोई माने न माने आध्यात्मिक शक्ति हमें सम्मोहित कर देती है । मन निष्कपट ,निस्काम, माया मोह से परे अलग ही भाव भर देते हैं ।
वहाँ भी हास्पिटल के स्टाफ डॉ परिवार आ गए ।सबने लंच ली ।फिर विदा हो गए अगले पड़ाव की ओर ...
अब धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा पूरे करने के बाद रमणिक और प्राकृतिक स्थलों की ओर चल पड़े ।
हम अब हर्षिल आ गए ।हर्षिल की खूबसूरत वादियों में आकर लगा कि हमलोग कल्पना की दुनिया में विचरण
कर रहे हैं । चारों ओर बर्फ से आच्छादित पर्वत श्रृंखला, कस्बे के बीचो बीच भागिरथी की कल कल धारा, सेब
से लदे फदे पेड़, देवदार के खूबसूरत वृक्षों की कतारें और चारों तरफ गिरते कल छल झरणों और खुशनुमा  वातावरण दिल लुभा रहा था । सचमुच हमारे ख्बावों की दुनिया हकीकत बन गई थी ।भेड़ों के झुण्डो में खड़े होकर फोटो खिंचवाने से खुद को न रोक पाए थे हम।
वहां से  दो किलोमीटर ऊपर मुखवा गाँव भी गए ।जहाँ माँ गंगोत्री की पूजन शीतकाल में होती है ।वहां अच्छे किस्म की हमने सेब की पेटी ली ।हर्षिल का सेब बहुत प्रसिद्ध है ।वैसे राजमां और आलू भी स्वादिष्ट होते हैं ...
फिर नीचे आ कर लंच लेने के बाद हमलोग हर्षिल के ही बगोरी गाँव घुमने गए । भोटिया समुदाय के गाँव में जाकर हमने भेड़ के ऊन से बने स्वनिर्मत (हस्तनिर्मित) ऊन के मौजे दस्ताने टोपी ली ।
सचमुच हर्षिल की खूबसूरती शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।इसे मिनि स्वीटजरलैंड भी कहते हैं ।
यहाँ राम तेरी गंगा मैली फिल्म की शूटिंग हुई थी ।हमने उस डाकघर का क्लिक लिया ।सुन साहिबां सुन के गीत जिस कैम्पस में हुआ था उसी गेस्ट हाउस में रात्रि विश्राम हमने किया ।हर्षिल की ठंडी हवा याद कर आज भी मन झूमने लगता है ।सुबह हम वापसी के लिए तैयार हो गए ।हम बूढा केदार का दर्शन करते हुए घनसाली चिरबिटिया होते हुए रूद्रप्रयाग आ गए ।सचमुच ये हमारे अविस्मरणीय क्षण थे ।उन यात्राओं की समृति आजीवन भूलना मुश्किल है ।
अगला गन्तव्य हमारा केदारनाथ था। यूँ तो मैं बीस वर्ष पहले गयी थी परंतु आपदा के बाद आए बदलाव को
देखने के लिए बाबा केदार नगरी के लिए मन व्यग्र हो
रहा था । उस आपदा के समय टीवी से चिपक गई थी ।
कैसे पल में हजारों लोग बह गए थे पूरी नगरी उजड़ गई थी परंतु मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ था ये जानकर केदारनाथ जाने की मेरी उत्कंठा बढ़ गई थी ।
चूँकि रामबाड़ा का नामोनिशान मिट चुका है सो गौरीकुण्ड से सीधे केदार धाम 21 किलोमीटर होने के कारण हमने गुप्त काशी से हेली से ही केदारनाथ जाने का फैसला लिया । हेली के लिए हम मंदाकिनी के किनारे किनारे अगस्त मुनि होते हुए गुप्त काशी पहुँचे
गुप्त काशी से हमारा हेली था ।
सचमुच आज के केदार धाम बेहद खूबसूरत और सुनियोजित तरीके से बसाया गया है लोगों के जाने आने रहने खाने और स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा इन्तजाम किया गया है ।रात्रि विश्राम के लिए पूर्ण सुसज्जित रहने के कमरे बनाए गए हैं ।
मंदिर के ठीक बगल वो विशालकाय पत्थर जिसने मंदिर को आपदा से बचाया उनकी भी पूजा की ।
अक्टूबर महीने में यात्रा कम होने पर बाबा केदार की पूजा पुरोहित ने हमें  बहुत सुंदर से कराया । शिवलिंग पे अंकित पार्वती माँ का छवि है ।हमने घी और मधु के लेप लगाया । कहते हैं भीम के गदा से मारने के चोट कम करने के लिए ही घी मधु लगाया जाता है ।
चूँकि यहाँ केदारनाथ में आक्सीजन की कमी हो जाती है इसलिए सेहत को ध्यान में रखकर हाॅस्पिटल में डॉ दवा आदि का बहुत अच्छा इन्तजाम रहता है ।
मंदाकिनी और सरस्वती नदी के संगम पर बसे केदार बाबा के अलौकिक दर्शन से मेरा जीवन सफल हो गया।
संगम घाट भी बहुत सुंदर से बनाया गया है।वहां हमने
सुंदर सुंदर फोटो खिंचवाया ।
केदार नगरी को सुन्दर बनाने के लिए रात दिन लगातार
मिस्री, मजदूर कर्मचारी वअधिकारी लगातार काम कर रहे हैं । सरकार का पूरा ध्यान है इस नगरी को खूबसूरत
बनाने का .....।वहां तक पहुंचने के लिए चौड़े रास्ते बनाए जा रहे हैं ।
बर्फ से आच्छादित  पर्वत के नीचे विराजमान केदार बाबा के दर्शन नसीबों से मिलता है ।बाबा की आज्ञा न हो तो संभव नहीं दर्शन ।
नयनाभिराम दृश्य को आँखों में बसाकर लंच लेने के बाद हेली से हम वापस आ गए ।
अब बारी थी बद्रीविशाल के दर्शन के लिए विदा होने की। अगले सुबह हमने नौ बजे बद्रीनाथ धाम की यात्रा
आरंभ की ।कर्णप्रयाग गोचर होते हुए जोशीमठ पहुँच गए वहाँ नरसिंग अवतार का दर्शन करने के बाद हमलोगों ने लंच लिया
जोशीमठ की ऊँचाई से कई सौ फीट सीधे उतरायी फिर
हजारों फीट की चढ़ाई बहुत ही रोमांचक लगता है ।
जगह जगह सुंदर झरणों पे मेरी बेटी और मैंने फोटो ग्राफी की । अब हम उँचे उँचे पर्वतों से गुजर कर बद्रीनाथ धाम पहुँच चुके थे । वहां की ठिठुराने वाले ठंड की परवाह किए बगैर समान गेस्ट हाउस में रखकर
हमने माँ को संभालते हुए सीधे आरती में सम्मिलित होने के लिए मंदिर की ओर चल पड़े । मंदिर के गर्भ गृह में बद्रीविशाल के दिव्य दर्शन और आरती कर हमलोगों की यात्रा सफल हो गई ।सचमुच ये जीवन के अनमोल
पल थे ।रात्रि में हमने प्रसाद और दूसरे के लिए गिफ्ट
खरीद कर अपने विश्राम गृह चले आये।
रात के तीन बजे फिर हम लोग अभिशेषक और बद्री  नारायण के श्रृंगार पूजा को चल पड़े मंदिर के प्रांगण ।बिजली कटने के वजह से माँ को लेकर जाने में परेशानी
हो रही थी परंतु मंदिर में चहल पहल के कारण पता ही नही चल रहा था कि साढ़े तीन बज रहे हैं । हमने गर्म कुण्ड में स्नान के बाद श्रृंगार दर्शन करने को प्रसाद की थाली लेकर लाइन में लग गए । साढ़े तीन घंटे की श्रृंगार पूजा इतनी सुंदर थी जिसका वर्णन करना बेहद मुश्किल है । जिसने देखा ये पूजा वो कृतार्थ हो गए....
ऐसा मेरा मानना है।उस पूजा के साथ साथ ही आचार्यों के द्वारा यजूर्वेदों का कंठस्थ पाठ देख अचंभित और
आश्चर्यचकित थी...।
रावल जी के चार घंटे नंगे पाँव से भगवान के स्नान पूजन आरती फिर अनेकानेक जेवर से श्रृंगार पूजन में
तन्मयता देख मन उन्हें पूजने को कर रहा था । हम भी इस तरह खो गए पता ही नहीं चला भयानक ठंड के हम
चपेट में आ चुके हैं ।आरती के बाद बाहर हम जब आए तो स्नो फाॅल हो रहे थे ।खैर हमारी ये हसरतें भी पूरी हो गई । चारों तरफ रूई जैसे बर्फ उड़ रहे थे ।पहाड़, पेड़ घर सब कुछ बर्फ से लक दक हो गए थे ।ऐसा लग रहा था प्रकृति ने सफेद चादर ओढ़ ली हो....।
हमने स्नोफाॅल में खूब सारी फोटो खिंचवाई ।थोड़ी मस्ती भी हो गई  बेटी कुछ ज्यादा ही खुश हुई।माँ कहीं
बीमार न हो जाए हमने भीमपुल माणा गाँव की यात्रा स्थगित कर वापसी के लिए ड्राइवर को बुला लिया  ।
बर्फवारी के कारण रास्ते खतरनाक हो गए थे।
हमने एक दो घंटे में खतरनाक रास्ते पार कर ली थी ।
फिर अलकनंदा के किनारे होते हुए हम लोग
बाबा बद्रीविशाल की दिव्य आरती और अद्भुत श्रृंगार पूजन को दिल में  बसाते हुए ...हम सभी पहुँच गए रूद्रप्रयाग  । ये अलौकिक चार धाम की यात्रा ताउम्र नहीं भूल पाएँगे....!!
जीवन के रोज मर्रे की उलझनों से निकल कर कुछ दिन के लिए सुकून का पल जीना हो और आध्यात्मिक , धार्मिक व प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना हो तो एक बार यात्रा पर सबको जरूर निकलना चाहिए ..!!

Friday 16 November 2018

पोटली चाहतों की

चाहतों की पोटली लिए फिरते हैं हम
अनगिनत ख्वाहिशों तले दब जाते हम

जीवन भर  उम्मीद की आस छुटती नहीं
चाहतें एक के बाद एक बढ़ती ही जाती

बस में नहीं सभी के मखमली गलीचे
बार बार ख्वाब पर क्यों दिल सजाते

दिन रैन सुकून के दो पल की चाहतें
हर कोई जीवन भर आस लिए जीते 

खुशियों के पल हम  समेटते समेटते
जीवन में जाने कितने दूर निकल जाते

रह जाती सब कही अनकही चाहतें अधूरी
टूट ही जाती कभी न कभी साँसों की डोरी

छूट जाएगी मोह माया की बंधने सारी
चाहतों की लोलुपता छुटती नहीं कभी 

सच्ची लगन हो चाँद पर चढ़ने की तेरी
तो अधूरी ख्वाहिशें भी हो जाती पूरी

हो  रब की इनायतें तो आती है खुशियाली
भर ही जाती है असीम चाहतों की पोटली

कान्हा चितचोर

विधा-  दोहा

मनमोहन की बाँसुरी,,, बहुत हृदय को  भाय  
कर्ण प्रिय धुन सुन कामिनी,,सुध बुध सब बिसराय

देख छवि चितचोर की ,  मुदित हृद गए  हार
रूप अद्भुत चकित किये  , मोहित हुई अपार

अनुपम छँटा वृन्दावन ,की, छलक रहे नेह
कान्हा रास रचा रहे , आह्लादित सब गेह

चित उन्माद गोपी के, छोड़ दिए घर द्वार
बीती रैन चाँद छुपे ,  बिखरे सब श्रृंगार

दिखाकर रूप मोहनी , वो कर गए अनाथ 
विरह में  डूबे  गोपी, श्याम छुड़ा गए हाथ

राधा विरह में अधीर , सुन कृष्ण समाचार
दूत उद्धव को भेजा,, जिद्द करे न बेकार

बोले उद्धव गोप से ,  बहा न तुम अश्रु धार
मिलना बिछुड़ना सबको, जीवन का यह सार

धरो ध्यान घनश्याम के, करते  उर  उजियार  
विराजमान हिय में हैं  , झांक हृदय के पार

सुन उपदेश भड़क गई ,,ये कैसा संदेश
भूखी हैं हम प्रेम की ,, छलिया उनका भेष   

खिले प्यार के गुल

नयन तेरे लगे हैं पुष्प कमल 
देख कर मन में बजे पायल

मखमली बोल छूते हृदय तल
मद भरी आवाज की हूँ कायल

बिखरे जब जब रेशमी जुल्फें
लगे घिर आए हैं घने बादल

तेरा उन्नत मस्तक जैसे चंदा
दिवाना दिल भी गया मचल

अब मेरी दुनियां तुम्हीं से है
हूँ मैं तो तेरे प्यार में पागल

तुम्हारे संग मैं तो निखर गई
तुझे पाके झुमे खुशी से दिल

लबों पे देखकर तेरी मुस्कान
मैंने खोया चैन मन है घायल

मुझे जबसे तुम तन्हां कर गए
करती रहती मैं याद पल पल

कोई तुझसा नहीं लगे जग में
जाए दम तेरे बाँहों में निकल

मेरा जीवन हो तेरे पनाहों में
यूँ ही खिलते रहे प्यार के गुल

तुझसे जुदा मैं न रह पाऊंगी
बिन तेरे होगा जीना मुश्किल 

Thursday 15 November 2018

रुसवा ममता

विषय- व्यंग्य

वृद्धाश्रम में अभिभावक , बहा रहे अश्रु रोज ।
कलेजे के टुकड़े को, हर पल करते खोज ।

डग मग चले थाम जिसे ,छोड़ा उनका हाथ  ।
जीवन के इस मोड़ पे ,छोड़ दिया सुत साथ ।

पाल पोस बड़ा करते , गम से रखते दूर     ।
बुढ़ापे का लाठी बन, प्रेम करे भरपूर       ।

ममता रूसवा हो गई,,किया ऐसा करतूत  ।
ऐसे संतान से भला, रहे सभी बिन पूत ।
 
 भूखा रह पाला जिसे ,रोटी दे वो भीख   ।
 नेह इतने दिए फिर भी ,याद न रही सीख ।

जीवन की सभी खुशियाँ ,देकर, सूनी है आँख ।
किया न परवाह उनका,गम दे दिए हजार लाख ।

सुत उनके सेवा करे  , करते हैं सब आस ।
स्वार्थी संतान के रहे , माँ बाप न अब खास  ।

पौध लगा कर आस की, देगा वो फल मूल  ।
ले गया कोई ओर फल , एहसास हुआ भूल ।

घर के  मालिक बदल गए  , हुए बेघर माँ बाप ।
सीढ़ी पे सीढ़ी लगी  ,कर्म फल मिलते आप ।

कुन्डलियां

अ.
छठ* पूजा कहे सबसे , हिम्मत न कभी हार  ।       1.
हुआ अस्त उदय निश्चित , *जीवन का ये सार* ।

*जीवन का ये सार*, रखना खुद पे एतवार  ।
प्रतिकुल समय हो तो  ,धीरज होता आधार ।

समय चक्र के फेर, पर हारकर न तुम बैठ ।
दुख के बाद सुख है,कहे सबसे माता *छठ*।

*अछूता* छठ प्रपंच से  , आडंबर का न भार ।  2.
बिन पंडित का पूजन  ,  *अद्भुत ये  त्योहार*  ।

*अद्भुत ये त्योहार*, होता न मूर्ति पूजन  ।
दिनकर को अरघ दे , मन वचन करते अर्पण ।

अमीर गरीब सभी  , एक ही प्रसाद चढ़ाता  ।
हर्ष उल्लास का पर्व , आड़ंबर से *अछूता*।

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ब.
सबरी होके मगन मन , करे अश्रु से वंदन    1.
चित्रकुट में पधार रहे, सिया राम व लझ्मण

सिया राम व लक्ष्मण , के पग पखारे सबरी
सुध बुध भूला दिया ,हर्ष में खुद को बिसरी

जब होश आई उसे ,कंद मूंद लाई बावरी
फल देती हरि को,नेह से चख कर सबरी

प्रेम का प्रकाष्ठा, अद्भुत रूप ईश के      2.
मन से उन्हें भजते, छाँव में रखे नेह के

छाँव में रखे नेह के, हैं वश में वो प्रेम के
भूल अगर मान लो, क्षमा देते भक्तों के

बैर खा के झूठे  ,भी हरि रखे हृदयंगम
शरणागत वत्सल, वात्सल्य मय वो प्रेम

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