Wednesday 21 November 2018

मुखौटा

विधा-कविता

चेहरे पे ओढ़े रहते मुखौटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं
                                            
मुखौटे में अपनी पहचान
छुपा के घुमते  हैं शैतान
दूषित इनके हैं आचरण
मानते लोग इन्हें भगवान ।।

भोले भालों को ये लूटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

सफेद लिहाफ ओढ़े इंसान
लगे है स्वच्छ निर्मल  पावन
स्याह चेहरा से सब अंजान
जाने न हैं कितने बेईमान ।।

 होते बड़े मक्कार व झूठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

मिश्री जैसे होते इनके वचन
देते रहते हैं सबको प्रलोभन
पर इनके चक्कर में न आना
होशियारी जल्दी पकड़ लेना ।।

बोलते ये बड़े ही मिट्ठे मिट्ठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

ईमानदारी का ये है दुश्मन
चाहे हो कितने ही धनवान
काम इनका लोगों को ठगना
कभी इनपे भरोसा न करना ।

ये तो एक उल्लू के पट्ठे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं
 
मुखौटे की पोल जब खुलती
चेहरा सबसे छुपाते फिरते
मियाद जब पूरी हो जाती
सूद के संग मूल वापस होते ।।

लोभ लालच में सबको लूटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

दौलत की चमक फीकी पड़ती
रूपये पैसा कभी काम न आते
सच्चाई और नेकी ही साथ देती
 कपटियों से सभी दूर ही भागते ।।

अकल के बड़े होते मोटे हैं
दिल के ये बहुत ही खोटे हैं

 

No comments:

Post a Comment