2122 1212 112/22
काफिया - अर
रदीफ - नहीं आती
नींद आठो पहर नहीं आती ।
याद तुझको मगर नहीं आती ।।
बावरा मन सजन, बना जोगन ।
दूर दिलबर, खबर नहीं आती ।।
रोज आँगन बुहारती हूँ मैं ।
प्रीत की धूप दर नहीं आती ।।
चाँद रूठा मिरा, जहाँ सूना ।
चाँदनी की लहर नहीं आती ।।
नैन प्यासे तरस रहे कब से ।
प्रीत मेहर नज़र नहीं आती ।।
बूँद सावन की बरसती देखो
भूल कर इस डगर नहीं आती ।।
धार अविरल बही युगों से हूँ ।
तुम तलक पर भँवर नहीं आती।।
प्रेम दरिया उतर गई प्रियतम ।
पार कैसे करूँ नहर नहीं आती ।।
जख्म पीती उषा विरह की है।
ठूँठ जीवन सहर नहीं आती ।
उषा झा देहरादून
सादर समीक्षार्थ 🌹🌹