मिसरा - हद तो ये कि हक अदा न हुआ।
काफिया - आ
रदीफ - न हुआ
मापनी - 2122 1212 22
रैन क्यों खुशनुमाँ बता न हुआ ?
यार का प्यार भी दवा न हुआ
आस के दीप बुझ नहीं जाए ।
मरहवा दिल कभी हवा न हुआ ।।
नफ़्स प्यासा तरस रहा देखो ।
अंजुमन प्यार जो ,जवाँ न हुआ।।
यूँ मुहब्बत खलिश बढा देता,।
अब तलक दिल सनम खफा न हुआ ।।
आरजू सिर्फ थी मिटे दूरी ।
ख्वाब पूरा कभी मिरा न हुआ ।
जीस्त तन्हा भटक रही बरसों ।
इक मुलाकात पर फिदा न हुआ।
तिश्नगी बढ गई दिलों में है ।
जुस्तजूँ नैन आशना न हुआ।।
दिल तडपता सदा मिले दिलबर ।
हद तो ये कि हक अदा न हुआ।
दिल उषा का मुरीद है तुम पर ।
बज़म में ईश्क रूसवाँ न हुआ ।।
मरहवा - प्रसन्नता
उषा झा देहरादून
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