काफिया- अम
रदीफ - न जाने किस लिए
2122 2 122 2122 212
रूठ जाता वो, मुहब्बत का गम न जाने किस लिए ।
प्यार नकली देख निकले हैं दम जाने किस लिए।
खार जीवन में भरा हो फिर मिले कैसे खुशी।
आस की लौ अब हुई मध्यम न जाने किस लिए ।
स्वार्थ में जो अंगुली टेढी करे वह ही सफल ।
सत्य की है चाह सबको कम न जाने किस लिए ।
ताक पर रखके वचन , खेती हुई जो झूठ की ।
हाल अपना देख आँखे नम न जाने किस लिए ।।
हौसले की ढाल लेकर तुम सदा बढते चलो ।
वो लगाते पीर के मरहम न जाने किस लिए ।।
ज़ीस्त तो रोटी नमक मे यूँ उलझते ही गयी।
आज ये ईमान भी बेदम न जाने किस लिए ।
चाँद तारे संग दुख सुख बाँटती निश्चछल उषा ।
नैन आशा नित ढली, हमदम! न जाने किस लिए ।
उषा झा देहरादून
सादर समीझार्थ 🌹🌹😊
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