Friday 3 July 2020

आस की लौ

काफिया- अम
रदीफ - न जाने किस लिए

2122    2 122   2122    212
रूठ जाता वो, मुहब्बत का गम न जाने किस लिए ।
प्यार नकली देख निकले हैं दम जाने किस लिए।

खार जीवन में भरा हो फिर मिले कैसे खुशी।
आस की लौ अब हुई मध्यम न जाने किस लिए ।

स्वार्थ में जो अंगुली टेढी करे वह ही सफल ।
सत्य की है चाह सबको कम न जाने किस लिए ।

ताक पर रखके वचन , खेती हुई जो झूठ की ।
हाल अपना देख आँखे नम न जाने किस लिए ।।

हौसले की ढाल लेकर तुम सदा बढते चलो ।
वो लगाते पीर के मरहम न जाने किस लिए ।।

ज़ीस्त तो रोटी नमक मे यूँ उलझते ही गयी।
आज ये ईमान भी बेदम न जाने किस लिए ।

चाँद तारे संग दुख सुख बाँटती निश्चछल उषा ।
नैन आशा नित ढली, हमदम! न जाने किस लिए ।

उषा झा देहरादून 

 सादर समीझार्थ 🌹🌹😊

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