Tuesday 30 January 2018

दारोगा

उस दिन बृजमोहन के घर में बहुत ही खुशी का माहौल था ।
घर के इकलौता चिराग दरोगा जी बन के गाँव आ रहा था ।
परिवार के सभी लोग बहुत खुश दिख रहे थे ,हो भी क्यों न !!
बृजमोहन चार भाई थे पर किसी ने दसवीं तक की पढ़ाई नहीं की थी ।बृजमोहन की पत्नी गायत्री ने बड़े मनोयोग से अपने
 पुत्र वासु को पाला ।बचपन से ही अपने बेटे के पढ़ाई पर अच्छे से निगरानी रख रही थी ,क्योंकि उसे डर था वासु भी अपने पिता और चाचा के तरह अनपढ़ न रह जाए ।गायत्री काली की भक्त थी, हमेशा अपने बेटे के लिए पूजा पाठ करती ।उसकी एक ही हसरत थी वासु को अच्छे ओहदे पे देखने की ।वासु बहुत होनहार बच्चा था । एक आज्ञाकारी बच्चे के तरह अपने माँ  बाप का हर कहा मानता था ।उसने खूब मेहनत की और आखिर दरोगा बन ही गया । बृजमोहन के पाँव तो जमीन पे पड़ ही नहीं रहा था । धीरे धीरे समय व्यतीत होने लगा सब
अपने होनहार बेटा के गुणगाण करते नहीं थकते ..
वासु था भी बहुत ईमानदार, जहाँ भी उसका तबादला होता वहाँ के सभी चोर उच्चके संट हो जाता ..
इतने कम दिन के नौकरी में न जाने कितने पुरूष्कार उसे मिला ..जल्दी ही उसकी पद्दोन्नति भी हो गई .. बेटा का ब्याह
करने के लिए परिवार के लोगों का दबाव भी बढ़ने लगा ..
अब वासु की माँ सुन्दर बहू की तलाश में रिश्तों की पड़ताल में जुट गई ..
वो खुशियों भरे दिन भी आ ही गए ..जब वासु के सिर सेहरा सज गया ..
हँसी खुशी के साथ विवाह संपन्न हुआ ..नई दुल्हन के आने से गायत्री बेहद खुश रहने लगी ..
  कुछ दिन बाद बेटा बहू अपने पोस्टिंग पे लौट गए ..

  छुट्टियों में जब भी बेटा बहू आते तो न जाने गायत्री कितने व्यंजन बनाती ..जब तक वे लोग रहते तो उसके पसंद के हर एक चीज बना ड़ालती ..बच्चों के लिए जाने माँ क्या क्या करती!!

 धीरे धीरे वक्त बीत गया ... गायत्री अब कमजोर होने लगी ..हमेशा बीमार ही रहती ..आँखों में रोशनी भी कम होने लगी ..
गायत्री के पति अय्यासी में डूब गया और बेटा अपने परिवार में
सिमट गया ..उसका सुधी सब बिसरा गया ..
वासु ने जब पिता के बारे में सुना तो माँ को अपने साथ रखने ले आया पर उसकी बीबी अड़ गई ।किसी कीमत में वो सास को रखने के लिए तैयार नहीं हुई ..
आज गायत्री अपने बेटी के साथ रह रही है और बेटा उसके सारे खर्चे उठा रहा है ..पर साथ रखने से मजबूर है ...
परंतु गायत्री बहू और पति के रवैये से विक्षिप्त  हो गई...

Saturday 27 January 2018

गणतंत्र दिवस

इस सुखद अनुभूति के पल
वीरों ने अपनी जान लुटा के दी
देश को मिल गई आजादी 
क्रान्तिकारी के बलिदानों से ..
हो समानता सभी के साथ,
अन्याय न हो किसी के साथ
मजहब की दीवार न हो
हर धर्म और पंथ का सम्मान हो
तभी है गणतंत्र दिवस सफल..

देश हीत हो सर्वोपरी
करे न कोई भी गद्दारी
किसानों और मजदूरों के
 मुस्कुराहट रहे बरकरार,
 कोई भी उसका हक न छीने
 स्वार्थ में नेता अंधे न बने
 सात पुस्तों के इंतजाम में
भरते न रहे वो अपने लाॅकर ..
तभी है गणतंत्र दिवस सफल ..

देश के प्रहरी वीर सैनिकों की
कुर्बानी न हो व्यर्थ कभी
सब कोई करें ऐसे जतन,
शान में माँ भारती की 
आँच न आने पाए कभी
देश की अखंडता पे न हो सवाल
बेनकाब हो दुश्मनों के हर चाल
तभी है गणतंत्र दिवस सफल ..

Friday 26 January 2018

ऐसा हो गणतंत्र हमारा

काश ऐसा हो गणतंत्र हमारा
जब न हो अबलाओं का चीरहरण 
भ्रष्टाचारी हो जेल के अंदर
भय मुक्त हो समाज हमारा
तब औचित्य गणतंत्र दिवस ..
आओ मनाओ मिल जुलकर ..

देश का भी सम्मान इसी से
जब न हो किसी का अपमान
कोई वंचित न हो अधिकारों से
सबको मिले सुरक्षा कानूनी
तब है औचित्य गणतंत्र दिवस
आओ मनाओ मिल जुलकर ..

उँच नीच और जाति पाति का
गर भेद भाव न हो किसी से
गले लगा ले सब नेह स्नेह से
वंचित न हो कोई दो जून की रोटी से
तब है औचित्य गणतंत्र दिवस
आओ मनाओ मिल जुलकर ..

नेताओं की न चले मनमानी
झूठे सब्ज बाग दिखाकर
अपनी झोली वोट बैंक से भरकर
भोले भाले जनताओं के न चूसे खून
तब है औचित्य गणतंत्र दिवस
आओ मनाओ मिल जुलकर ..

देश के आन बान शान पर
हर कोई अपनी जान बिछा दे
विद्रोहियों का हिम्मत न हो
 भंग न करे देश की मर्यादा ..
 तब है औचित्य गणतंत्र दिवस
आओ मनाओ मिल जुलकर ...
 
 

Thursday 25 January 2018

गुमशुदा

नाम के बिना किसी की
  कोई पहचान नहीं
  नाम ही इंसान को
 श्रेष्ठता की गिनती
  में ला खड़ा करता ..
  सब कोई जीवन में
 अच्छे कार्य कर अपने को
  दुनिया के सामने लाने की
  चेष्टा में लगे रहते दिन रात
  जीवन में सक्रियता भी
   इसी से ही बनी रहती ..
   चाहे कितने ही गुणी हो कोई
   गर लेवल न लगा हो नाम का
   तो सम्मान न देते कोई भी ..
  बिना नाम के लोगों को
  इज्जत न देते अपने भी..
 कभी कभी लोग एक
 मौके की तलाश में
 उम्र गुजार देते पर
 सही मौके के अभाव में
 छटपटाहट कर रह जाते ..
 बिना नाम का
गुमशुदा बनकर
रह जाते बेचारे ...
 

Monday 22 January 2018

माँ शारदे

माँ विद्या दायिनी
अज्ञानी मन को
बुद्धि,विनय, ज्ञान
की नव ज्योति से
बना दे तू प्रकाशवान ..

हे माँ वीणा वादिनी     
भर दे नव ऊर्जा उर में 
शारदे छेड़ दे तू रागिनी
सुमधुर तान दे कंठ में
झंकृत हो तार हृदय के   

हंसवाहिनी माँ
उज्ज्वल धवल
परिधान मनोहर
खिला खिला है रूप
तू ही तो धो देती
हर दिलों से मैल ..

हे माँ सरस्वती
पुस्तक धारिणी
तेरी कृपा जब
किसी पे बरसती
तो भर जाते हैं
ज्ञान की भंडार ..
उपनिषद वेद भी
जिह्वा पे बसती ...

माँ कमल आसनी
शुभ फल दायिनी
तू जहाँ भी रहती
दुख दारिद्र दूर रहता
लक्ष्मी वहीं विराजती

 

Thursday 18 January 2018

आरजुएं

प्रियतम के आस
आज हुए साकार
बरसों के बिछुड़े
सजन आए जो पास ..
धड़कनें मचाए शोर
  हजारों घंटियां
कानों में बजने लगी
दिल बहकने लगे
आरजुएं मचलने लगी
खुद से बगावत करने लगी
अब न चले दिल पे जोर ..
मिलन की बेला
आई गई जो पास ..

बहारों के मौसम
साजन के साथ
लगे कुछ खास
मन के मयूर झूमें
एक दूजे में खोये
मिल रहे हों जैसे
धरती और गगन
सदियों की प्यास
बुझने लगी आज ..
अतृप्त आत्मा
को मिल गया जैसे चैन ..

अजब ही रिश्ते
में बंधे दो प्रेमी
दोनों के बिना
वो होते अधूरे ..
एक दूजे के संग
सुख और दुख
सपने व खुशियाँ
 मिल के ही बाँटते
जीवन के धूप-छाँव
  साथ ही साथ 
   करते व्यतीत  ...

 

Sunday 14 January 2018

अहं की खिचड़ी

दिल के कड़ुवेपन को चलो सभी भूला लें
गुड़ की चाशनी में द्वेष तार तार कर डालें

मकर संक्रांति में उत्तरायण से रवि
ले कर आता नई उष्मा नई तीव्रता
जीवन पथ हो जाता आलोकित
भर देता वो तन मन में नव स्फूर्ति  ..
घुल मिल जाते सभी एक दूजे में

आज अपनी अहं की खिचड़ी ही बना ले
दिल के कडुवेपन को चलो सभी भूला लें

बरसों से सोये हैं मेरे भी अरमान
खुले आसमां में विचरण को तृषित 
उर आजादी का जश्न मनाने को
बनकर पतंग उड़े बादलों के पार
चिड़ियों के संग जी भरकर खेले ..
पवन  संग लहरा के चुमें चाँद को

बरसों की जमी कोफ्त तिल तिल कर डालें
दिल के कड़ुवेपन को चलो सभी भूला लें

रोज रोज के जद्दोजहद से निकल लूँ
खुद की हस्ती को ही भूल जाऊँ
नीले आसमां में स्वच्छंद घुम लूँ
गर भटकने लगूँ अपनी मंजिलें
तू मांजा बन खींच लेना पहलूँ में
ख्वाहिशों की झोली मेरी भरना
करना निहाल रख अपने पनाह में

हम सब नेह के बीज दिलों में ही जमा लें
दिल के कड़ुवेपन को चलो सभी भूला लें

Friday 12 January 2018

दोहरे चरित्र

यहाॅ मैं मनुष्य के दोहरे मापदंड की चर्चा करना चाहती हूॅ।बात उन दिनों की है जब मैं अपने परिवार के साथ सरकारी आवास में रह रही थी ।सुबह उठकर बेधडक फूल तोड़ कर अपने सहकर्मी के घर से ले आती ।यहीआदत मैं अपने निज काॅलोनी में आकर अपनायी ।मेरे घर के सामने एक भाई साहब हैं उनके घर चली गई दो फूल तोड़ने ।उन्होंने धीरे से कहा तोड़ लीजिए ।पर उनका मुॅह लटक गया ।मुझे आश्चर्य हुआ कि जो हमेशा सहयोग और उदारता की बात करते हैं, वो भगवान के नाम पर दो फूल पर ही बिदक गये ।फिर बड़े बड़े गप्पें हाॅकना कहाँ तक उचित है ।
 ये तो एक छोटा सा उदाहरण भर है, इस घटना से इतर ..
मेरा मकसद उस ओर इशारा करना है कि लोग जैसे दिखते हैं वैसे होते नहीं हैं दरअसल में ..
आदर्शवादी का स्वांग रचना या अपने संपूर्ण जीवन मानवता के लिए समर्पित कर देना सबके बस की बात नहीं ।
बहुत से लोग कहते कुछ हैं ओर करते कुछ ओर..कथनी करनी दोनों में कोई मेल नहीं ..
किसी को उपदेश देना आसान है पर खुद से पालन करना मुश्किल है । खुद मिसाल बने तब दूसरे को सलाह दे ।केवल गप्पों से काम न चलता ।अक्सर लोग दूसरे के नुक्स निकाला करते पर जब अपनी बारी आती तो पीछे हट जाते हैं । दोहरे चरित्र का आचरण व्यक्ति को हास्यास्पद स्थिति में खड़े कर देते हैं  ....


Wednesday 10 January 2018

प्रीत के बिना

विरहन बन गई
पिया से बिछुड़ के 
आए न परदेशी
सुधि लेने उनकी ..
याद में सुख के
काँटे बन गई
कैसे कटे दिन
बिन सजन के
बैरन बन गई
मौसम सर्दी की ..

आस सजाए
पिया मिलन की
रह रहके नैन
बाट निहारे
लगे न जियरा
पिया के बिना ..
देख के सूना
घर आंगन
कटे न रैना
मन लगे बैचेन ..

जिनके सजन
बसे परदेश
विरह की अग्नि
में वो जल जल मरे ..
कुछ न सुहाए
मन को न भाए
साज श्रृंगार ..
मन की अगन
अब सहा न जाए
 बन गए निष्ठुर
बैरी जमाना ..

अकेलेपन का दंश
कठिन जीवन
विष के समान
निकलती ही जाए
दम घुट घुट के साँस ..
कोई पीछे न आगे
भीड़ भरे जग लगे
जैसे मानव विहिन
वैसे ही ये जीवन
प्रीत के बिना ..

 

Tuesday 9 January 2018

मोहरा

मोहक अदा पे लट्टू हो
बड़ी आसानी से मोहरा
बन जाना और ताउम्र
इस्तेमाल होते रहना ही
कुछ लोगों का नसीब है
कभी कभी वो अंजाने में ही
बन जाते किसी के शिकार
कर लेते वो जिन्दगी खराब...

समझ भी न पाते फंस जाते
किसी के मतलबी जाल में
स्वार्थ में अंधे बना लेते गुलाम
जल्दी ही सीधे सच्चे लोग
विश्वास कर लेते दूसरे पर
जब तक समझ में आता है
लुटीया ही अपनी डूबो लेते हैं ..

बहुत से लोग जानबूझकर
आसक्ति में जकड़ बंध जाते
किसी के मोहपास में और वे
हमेशा के लिए बन जाते मोहरा ..
ऐसो की मुर्खता पर हँसीआती
करते जो जग हँसाई अपना

उसकी अक्ल पे तरस आता
जाने क्यों बर्बादी के पथ चलता
लगता बुद्धि गई घास चरने को ..
जब वक्त बदलता समझ आता
हाथ मलने के शिवा कुछ न मिलता

Sunday 7 January 2018

कसाई पुत्र

कहाँ गए वो राम सा बेटा
जिसने पूछे बिना सवाल
चले गए चौदह साल वनवास
पिता के आज्ञा मान सब सुख
छोड़ त्याग दिया राजमहल ..
माँ की ममता से बगैर पिघले
तनिक भी उफ किए बिना
हँसते हँसते गए वन को प्रस्थान  ..

वो श्रवणकुमार जो काँधे पे टांग
कराया मात पिता को हर तीर्थाटन ,
दिन रात सेवा करते नहीं थके
वो आखिर कैसे पुत्र थे महान !!
आखेट पे लगे तीर की न थी उसे फिकर,
प्यासे माँ पिता की चिंता में घुलकर
विनती पानी पिलाने की करते करते
राजा से, दे दी उन्होंने अपनी जान ..
 
कल टीवी पे समाचार देखके
हुआ व्यथित जाने कितना मेरा मन
राम के धरती पर ये कैसा कसाई पुत्र
बीमार माँ को घसीट घसीट के टैरेस पे
ले जा लिया जान, चुपचाप देके धक्का
आत्महत्याका नाम दे, उल्लू बनाया सबको

 माँ पिता अपने बच्चों के खातिर
दिन रात मेहनत कर जोड़ पाई पाई
करते सुंदर उसके भविष्य निर्वाण
बच्चों की खुशियों से बढ़कर
चाहत न होती उसे कोई ओर ..
फिर कहाँ होती आखिर चूक
जो बच्चे हो जाते इतने निर्मम निर्दयी ..

 

 

Saturday 6 January 2018

बेटा

मेरे जीवन के अनोखे सौगात हो
तुमसे ही हमारी हर खुशियाँ
तू पाना जिन्दगी के हर मुकाम
तेरा जीवन फूलों सा महकता रहे ..

कभी कोई काँटे न चुभे तेरे पाँव को
तू डरना न जमाने के मुश्किलें देखके
मेरे परवरिश को गौरवान्वित बना
मेरे ममता को तू अर्थपूर्ण बनाना ..

तू ऐसा मिशाल बनकर दिखाना
लगे सबको तू जग में नायाब रत्न
तुझे शिखर तक पहँचकर अपने
मम्मी पापा का जिया जुड़ाना है..

तू सूरज सा हमेशा चमकता रहे
पाने को नित नई मंजिलें निरंतर
दरिया के तरह बिना रूके चलते रहो
तेरा उज्ज्वल भविष्य जगमगाते रहे ..

मेरा बेटा तू रखना सदा हमारा मान
बनना तू बुढ़ापे में हम दोनों का संबल
भेदभाव रहित मानवता का धर्म निभाना
बस इतनी ही मेरे दिल में है कामना ..

Wednesday 3 January 2018

बेबसी

वो आदमी कितना
बौना बन जाता खुद
अपनी ही नजरों में
 दिनहीन जाने कितने
बन जाता जब
बेबस बन किसी के
आगे हाथ फैलाने जाता ..
किसी के आँखों में
हिकारत भरी नजरें
देख वो खुद कितना
जलील समझता ..
अपनी बेबसी का
मजाक बनता देख
अपनी ही नजरों में गिर जाता ..
मजबूरियाँ अच्छे अच्छों का
हौसले पस्त कर देता
रास्ते का भिखारी बना ड़ालते ..
बेबसी से बेबस इंसान
परिस्थिति के आगे
नतमस्तक होके
घुटने टेक ही देते
वक्त के कुठाराघात
लाचार और निःसहाय
बना ड़ालते लोगों को..
कितना ही हाथ पाँव
चला लो परिस्थिति के
सभी दास होते हैं ..









Monday 1 January 2018

तमन्ना

गुजर जाती हैं सालें 
देके कई अनुठी यादें
जाने कितने मिलकर
जीवन के राहों में बिछुड़
बढ़ जाते किसी और ड़गर ..
कई यादों की छाप छोड़
मन आंगन में बना लेते हैं घर ..
कुछ ऐसे भी ख्वाब होते पूरे
जिसका यकीं न रहता दिल को
जीवन के अनोखे पल देके
 और एक वर्ष तजुर्बे देककर
 बीत गया ये साल भी धीरे धीरे ..
 नए पैगामों के साथ नए साल
 लेके आए बेसुमार खुशियाँ
आपस में करो सब मेलमिलाप
नयी शुरूआत नए साल में
प्रेम की बरसात में
धोएँ दिलों के सारे मैल
बस दुवाओं से झोली भरते रहें
है यही तमन्ना नए साल में ..