Saturday 29 May 2021

जब बिसराया गाँव को

शहर की चका चौंध भायी, गाँव को छोड़ गए सारे ।
ऐश में गेह भूल जाते ,मातु पितु पंथ बस निहारे।।

जहाँ ने घाव दिया गहरा,उसे कण कण को तरसाया ।
दुखी वह रोटी कपड़ा से, मिली ठोकर घर को आया ।।
मलिन मुख आँख धँसी उनकी ,चेहरे बन गए छुहारे ।
शहर की चका चौंध भायी , गाँव को छोड़ गए सारे ।।

जिन्दगी भीख माँग कटती, आपदा लील गई खुशियाँ ।
रोग परिणाम भयावह है, हुई गम में घायल दुनिया।।
विकल बेमोल जिन्दगी है, झरे नैन से नित्य धारे ।
ऐश में गेह भूल जाते , मातु पितु पंथ बस निहारे ।।

घड़ी मनहूस जगत आई, छीन कर साँस दिल दुखाते ।
क्षुब्ध मन आशंकित रहता , डोर अपनों से छुट जाते।।
फँसे जब लोग आपदा में , छा रहे नैन अंधियारे ।।
शहर की चका चौंध भायी , गाँव को छोड़ गए सारे ।।

विवश एकांत वास को जग, हर्ष अरु विषाद वो भूले ।
मौन स्तब्ध जिन्दगी ठहरी , नहीं वो सावन के झूले ।
आह आई न जगत में इस, बार वो मृदुल सी बहारे।
ऐश में गाँव भूल जाते , मातु पितु पंथ बस निहारे ।।

खत्म प्रभु अब ये दौर करो,आस के बीज धरा बो दो
रोग महामारी से आतप मन, रोग बीज को ईश रों दो ।
द्वार पर अतिथि सत्कार हो,प्रेम से नित चरण पखारें
ऐश में गाँव भूल जाते , मातु पितु पंथ बस निहारे ।।



प्रो उषा झा देणु
देहरादून

Thursday 27 May 2021

पीर नदी की


सागर से मिलने को बीहड़, डगर नदी बलखाती ।
सच करने को सपने वह तो, दर दर ठोकर खाती

राह कठिन संकल्प नदी हिय,उदधि मिलन बस मन में ।
पर्वत की बेटी शूल लिए ,बहती निर्जन वन में ।
बाँटे राही दुख सुख गर तो, खुश हो प्यास बुझाती ।।
सागर से मिलने को बीहड़ , डगर नदी बलखाती ।।

चोट शिला से जब जब खाती, शोर बहुत ही करती ।
पीर भरे उर गीत सुनाती,कल कल करती बहती ।।
सागर से मिलने के खातिर , हर दुख वह सह जाती ।
सच करने को सपने वह तो ,दर दर ठोकर खाती ।।

सींच खेत खलिहान मुदित वह , बिन नीर नदी रोती।
क्षुब्ध नदी दोहन से अपने ,अस्तित्व नित्य खोती ।।
प्रदुषित जल जलयान चलाया, बंधन बस तरसाती ।।
सच करने को सपने वह तो , दर- दर ठोकर खाती ।

अपने संग बहा ले जाती , पाप सभी के गंगा ।
घायल उर मल मूत्र डाल के ,लेते मानव पंगा ।
पन बिजली से सूखी नदिया, बूँद बूँद ललचाती ।
सागर से मिलने को बीहड़ , डगर नदी बलखाती

बाँध पोटली हिम्मत वाली, तटिनी चलती राहों में ।
बढ जाती परमार्थ कर पियु , सपन सजे बाँहों में ।।
ढोती संग जडी बूटी वह, सींच खेत हर्षाती।
सागर से मिलने को बीहड़ ,डगर नदी बलखाती ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून उत्तराखंड

रोम।रोम में राम विद्यमान हो

विथा - गीत

🌷रोम रोम में राम बस विद्यमान हो🌷

राम राज्य की कल्पना साकार हो,इस जगत में राम नाम का गुण गान हो ।
रोम रोम में राम बस विद्यमान हो, मेरे संग हर घडी कृपा निधान हो।।

राम सार्वभौम सृष्टि के वरदान है ।
राम अभिमान है महि के सम्मान है ।।
राम पुनीत प्रीति के बस आधार है ।
हर युग रघुकुल दिप्ति दीप दिनमान है ।
भक्ति निस्काम करूँ कर्म अपना करूँ ।
राम विनती सुनो उर शुचि भावना हो ।

रोम रोम में राम बस विद्यमान हो , मेरे संग हर घडी कृपा
निधान हो ....।

राम से सिर्फ आस और विश्वास है ।
दुखियों के भक्त वत्सल सदा दास है ।
राम नाम की महिमा अपरम्पार है ।
भक्तों पर नेह राम का कुछ खास है ।।
राम संस्कार में आचार अरु विचार में ।
हृदय में है आस्था पूर्ण साधना हो ।।

रोम रोम में राम बस विद्यमान हो , मेरे संग हर घड़ी कृपा निधान हो ।

राम सुर संगीत है मन के राग है ।
सबके उर में बसे प्रेम अनुराग है ।
राम नाम से ही पावन संसार है ।
राम जग बाग के मृदु पुष्प पराग है ।
उर उमंग उल्लास अरु अमृत धार है ।
नाम रटते रहो अधर पर मुस्कान हो ।

रोम रोम में राम बस विद्यमान हो , मेरे संग हर घडी कृपा
निधान हो ।

जग ज्योतिर्गमय राम दिव्य प्रकाश है ।
राम से समग्र वसुधा पर विलाश है।
विरक्त मोह से वह वैराग व त्याग है ।
पतझड जीवन में खिले गुल पलाश है ।।
राम कण कण में क्षण क्षण में व्याप्त दिखे ।
अधर पर सदैव राम शुभकामना हो

रोम रोम में राम बस विद्वमान हो , मेरे संग हर घडी कृपा
निधान हो ।

सत्य निष्ठा मर्यादा के प्रतिमान हैं ।
राम सद्भाव है सिर्फ क्षमादान है ।
जग जानते राम ईश के अवतार हैं ।।
सदियों से उर की बस यही याचना है।
राम राज्य की कल्पना साकार हो , राम का नित्य ही गुण गान हो ।

प्रो उषा झा रेणु
देहरादून 

सतरंगी सपने

विधा -छंद मुक्त
18/13
 दिवस पखेरू उड़ने को आतुर , देख मैं तो वहीं खड़ी ।
सोलह बरस की बाली उमर में, चितचोर से आँख लड़ी ।।

राग अनुराग हिय, प्रीत नयन में, सतरंगी सपने सजे ।
पोर पोर उमंग, लगी बहकने, मुदित निशि पियु देख लजे ।
चढा झील से नैनों का जादू ,धड़कन फिर बढ़ने लगी ।
छोड़ किताबें सजन पथ हेरती ,प्रेम अगन जलने लगी ।
तुम कहते पढ लिख बालिके चढो,उत्तुंग गिरि थाम छड़ी।
सोलह बरस की बाली उमर में, चितचोर से आँख लडी।

दिल का लगाना बड़ी बात नहीं, थाम कर जीवन भर ले,
हर प्रेमी को ये सामर्थ्य नहीं, शत प्रीत के पुष्प खिले ।
अधर मुस्कान मृदु सजन सजाये,सोच कर नयन गुलाबी ,
नैनों में वो मद भरी ख्वाहिशें, मुदित उर हुस्न शबाबी।
चाहत के रंग भरे जो उर में , लगी प्रीत की मृदु झड़ी ।।
सोलह बरस की बाली उमर में , चितचोर से आँख लड़ी ।

शनैः शनैः गुजर गए वक्त मृदुल,शुचित प्रेम हमारा है ।
देख मेंहदी कर में गाढ़ी है , सत्य प्यार तुम्हारा है।
स्मित स्नेहिल स्पर्श मुग्ध रोम रोम, सुरभित गात मेरा है।
युग युग से मिलने आती धरती, मन में आस तेरा है।
ख्वाबों की ताबीर लिए सूनी , सेज गुमसुम आज पड़ी ।
सोलह बरस की बाली उमर में , चितचोर से आँख लड़ी ।
प्रो उषा झा रेणु
देहरादून

Wednesday 26 May 2021

सावन अगिन लगाए

हृदय प्रीत से भरा सखी री, मेरे प्रिय परदेश सिधाए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

दमके दामिनी विकल निशीथ,मनुवा मोरा धड़क रहा है ।
आई कैसी रात सुहानी ,अंग अंग बस फड़क रहा है ।।
आओ सजन पास आ जाओ , कारी रैना मुझे डराए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

बागों में कोयलिया कूके , जियरा सजन प्रणय में भूले ।
सखियाँ मिलके कजरी गावे, पिया संग सब पींगे झूले ।।
मिलन पिपासा नदिया बाढ़े, नैनन बरबस नीर बहाए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

गोरे कर मेंहदी रची है, शुचि शृंगार पिय को रिझावे ।
खो गया चैन मोर हिया के,तुम बिन मुझको नींद न आवे।
आस चकोरी मिलन सखी री,आकुल नैना भर भर आए।
घनन घनन घन मेघा बरसे,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

जा रे बदरा अब जिय न जला,विरहा दंश लगे बहु भारी
ओ री पवन पियु को बुलाओ,किछु न भावे विरह की मारी।
आस हृदय के टूट रही है , मोर पिया घुरि देश न आए।
घनन घनन घन मेघा बरसे बैरी सावन अगिन लगाए

ज्यूँ ही पधारे पियु सखी री,मन आंगन में खुशियाँ बरसे ।।
सच हो सारे मोर सपनवां, प्रीत सुहावन उर में सरसे ।।
आलिंगन में सजन झुलाए ,उर के सारे दुख बिसराए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

*प्रो उषा झा रेणु*
मौलिक ( प्रकाशित )ऑ
देहरादून

Tuesday 25 May 2021

सबरी उर रघुनंदन

विधा - मोदक छंद
विधान - 4 ×भगन
गणावली  211 /4
211   211   211  211

व्याकुल नैन करे नित बंदन।
थे शबरी उर में रघुनंदन ।।

राम सिया मुख दर्शन हो कब।
पंथ निहार रही शबरी  अब ।।
जीवन श्री चरणों पर अर्पित ।
हो तप पूरण वो नित सोचत ।।
जन्म सुपावन हो हरि दर्शन ।
व्याकुल नैन करे नित बंदन ..।

राम सिया दृग देख पधारत।
आस भरे उर हर्षित नाचत।
भाव भरे हिय बैर चखावत  ।
प्रेम अनूप लगे मन गावत ।।
पाप मिटे करते मुख दर्शन ।
व्याकुल नैन करे नित बंदन..।

राम सिया भव बंधन काटत ।
मुग्ध जिया बस आज निहारत।।  
मोदित है मन  नैन जुड़ावत ।
हर्ष भरे, मन नीर  छिपावत ।
 राह दिखावत हैं दुखभंजन ।।
व्याकुल नैन करे नित बंदन.. ।

श्यामल रूप लगे मन भावन ।
ईश धरे पग शबरी घर पावन ।।
राम सिया जप के कटते दिन ।।
जन्म सुकारथ है अब भीलन ।
ज्यूँ रघुवीर बसे दृग अंजन ।।
व्याकुल नैन करे नित बंदन ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून उत्तराखं

यादें सुनहरी

गीत

स्मृति पट पर है याद घनेरी
बीत गए वो वक्त सुनहरी ।।

श्वासों के सरगम महकाते ।।
ओ पलछीन कौन भुला पाते ।
क्षण में मुस्कान सजा जाते ।
सपनों में उर सहला जाते ।।
डर डर जीती निशा अँधेरी ।
स्मृति पट पर है याद घनेरी ।।

विरहा के दिन गिन गिन कटते ।
तुम बिन प्रियवर रैन न सजते ।।
भूल बता दो तुम हरजाई ।।
मेरे हिस्से क्यों तन्हाई ।।
धड़कन की बजती रण भेरी ।

देख रही हूँ राह तुम्हारी ।
देखो आकर दशा हमारी ।।
छुपकर बैठे कहाँ बिहारी ।
नैन बहे हैं नित गिरिधारी ।
विरह वेदना क्षण क्षण घेरी।

ख्वाबों सा वो दिन था अपना।
जीवन लगता हर पल सपना ।।
मनुहार बिना उदास रैना ।
भूल गए हो क्यों कर मैना ।।
विकल जिन्दगी तुम बिन मेरी

स्मृति पटल पर है याद घनेरी
बीत गए वो वक्त सुनहरी ।।


*उषा की कलम से*
देहरादून

Monday 24 May 2021

बिन पिय विरही मन

गीत

स्मृति पट पर है याद घनेरी
बीत गए वो वक्त सुनहरी ।।

श्वासों के सरगम महकाते ।।
ओ पलछीन कौन भुला पाते ।
क्षण में मुस्कान सजा जाते ।
सपनों में उर सहला जाते ।।
डर डर जीती निशा अँधेरी ।
स्मृति पट पर है याद घनेरी ।।

विरहा के दिन गिन गिन कटते ।
तुम बिन प्रियवर रैन न सजते ।।
भूल बता दो तुम हरजाई ।।
मेरे हिस्से क्यों तन्हाई ।।
धड़कन की बजती रण भेरी ।

देख रही हूँ राह तुम्हारी ।
देखो आकर दशा हमारी ।।
छुपकर बैठे कहाँ बिहारी ।
नैन बहे हैं नित गिरिधारी ।
विरह वेदना क्षण क्षण घेरी।

ख्वाबों सा वो दिन था अपना।
जीवन लगता हर पल सपना ।।
मनुहार बिना उदास रैना ।
भूल गए हो क्यों कर मैना ।।
विकल जिन्दगी तुम बिन मेरी

स्मृति पटल पर है याद घनेरी
बीत गए वो वक्त सुनहरी ।।


*उषा की कलम से*
देहरादून

तीज मनभावन

विधा - रजनी छंद

2122  2122   2122  2
तीज में साजन नहीं आए हिया खोये ।
बाग में झूले सखी पलपल हिया रोये।

मेंहदी चूड़ी पुकारे देख पिय तुझको ।
नैन से कजरा बहे सुध-बुध नहीं  मुझको  ।
माँ भवानी पूर्ण कर वर, माथ लाली हो । 
माँ खुशी देना, नहीं इक रैन काली हो ।
फूल दामन में खिले उर प्रीत संजोये ।।
  तीज में साजन .....

पग महावर ,आलता मैंने रचाया है ।
माथ बिन्दी नाक पे नथुनी सजाया  है।
ओढ़ ली हूँ प्रीत की  चुनरी पिया देखो ।
बूँद छमछम गात पुलकित जिया देखो।
भानु पा दमके उषा सपना नया बोये  ।।
बाग में झूले सखी .....

जिन्दगी की राह साजन नित कटे हँसके ।।
प्यार अरु विश्वास से जीवन सदा महके
गोद में नव चाँद से जगमग सितारे हो ।
भूल हो सब माफ पियु प्यारे हमारे हो ।।
भावना निश्छल रहे उर सोम शुचि धोये ।

उषा झा देहरादून
सादर समीक्षार्थ 🌼🌺

नमन सृष्टि की निर्मात्री को

🔹 *विधान गोपी छंद*🔹
🍙 यह मात्रिक छन्द है।
🍙 चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
🍙 प्रति चरण १५ मात्रा।
🍙 आदि में त्रिकल, अन्त गुरु /वाचिक
🍙 चरणान्त गुरु गुरु श्रेष्ठ
           
3+ 2 3 + 3 4
नेह शुचि शीतल है माता ।
रूप निर्मल मन को भाता ।।

गर्भ में नव अंकुर बोती ।
नींद गहरी माँ कब सोती ?
देख सुत मुख सुध बुध खोती ।।
भूल अस्तित्व सुखी होती ।
देव महिमा माँ की गाता ।
नेह शुचि शीतल है माता ।।

दौड़ ती सुन क्रदंन मेरा ।
प्रथम तुमको बंदन मेरा ।।
हृदय माँ चंदन है तेरा ।
मोद आँचल मातु बसेरा ।।
छाँव में सुत हर सुख पाता ।
नेह शुचि शीतल है माता ।।

पुत्र माँ पितु कहना मानो ।
मोल ममता जग पहचानो ।।
जिन्दगी जो नित्य सँवारी ।।
जिन्दगी उसकी अँधियारी ।
आस टूटी भाग्य विधाता ।।
नेह शुचि शीतल है माता ।

कर्म संतान नहीं सच्चे ।
फेर लेते मुख क्यों बच्चे ?
नीर नित अखियाँ भींगोती ।
सृष्टि की निर्मात्री रोती ।।
तीर उर पर पूत चलाता ।।
नेह शुचि शीतल है माता ।।
रूप निर्मल मन को भाता ।

कुक्षि में जग को पनपाती ।
कर्म से माँ सृष्टि सजाती ।।
देव की माँ बन मुस्काती ।
कोख में है अक्षुण थाती ।
पीर पर दृग कोर भिगाता ।।
रूप निर्मल मन को भाता ।

प्रो उषा झा रेणु

Sunday 16 May 2021

जानकी संग राम मंदिर बसे

विधा - शुद्ध गीता

गालगागा गालगागा गालगागा गालगाल
2122  2122  2122  2121

राम मंदिर बन गया है ,पावनी कर मंत्र जाप ।
धर्म की ही जीत होती, प्रभु कृपा से नष्ट पाप ।।


राम जी है जानकी के ,संग मंदिर में विराज ।
देख कर सब मुग्ध नैना, साधना जो पूर्ण आज ।।
घात का बदला लिए हैं, देख लो रघुनाथ आप ।
राम मंदिर बन गया है , पावनी कर मंत्र जाप ।।

संत हर्षित स्वप्न पूरे ,आ गए हैं गेह राम ।
जीत भक्तों की हुई सच ,कर्म के ये दिव्य दाम।।
भक्त आनन पे परम सुख, शांति राघव के प्रताप ।
राम मंदिर बन गया है , पावनी कर मंत्र जाप ।

सत्य पथ काँटे मिले रख, मत हिया में आज दाह ।
रैन चाहे हो घनेरी,  राम से या शूल राह ,
धीर राघव सा हिया में, वो नहीं करते प्रलाप ।
राम मंदिर बन गया है , पावनी कर मंत्र जाप ।।

दुष्ट को मिलती सजा है , मूढ सुन यह बात सत्य ।
द्वेष में मत लिप्त होना , अंत दुर्गत सच मान कथ्य ।।
यूँ सुधा वसुधा झरे हर , कंठ मधुरिम हो अलाप ।।
राम मंदिर बन गया है , पावनी कर मंत्र  जाप...

उषा झा देहरादून

Saturday 15 May 2021

हमनवा हूँ मैं

मिसरा - नहीं पूछो कहाँ हूँ मैं जहाँ तुम हो वहाँ हूँ मैं 
पूजा रानी सिंह 

काफिया - आ 
रदीफ - हूँ मैं
1222 / 4
मतला 

बनी हर जन्म महबूबा सनम सुन हमनवा हूँ मैं ।।
भुला दो तुम मुझे बेशक सुनो तेरी बला हूँ मैं ।।

बड़ी आशा भरी नजरे निहारे राह अब तेरी ।
चले आओ सनम अब तो बता क्या बेवफा हूँ मैं ।
       
हमारे  संग जब हो तुम  खिलेंगे फूल गुलशन में
बडी नेमत खुदा बख्शी  सुनो मैं  मरहवा हूँ मैं।।

बता क्यों होश गुम तेरा लुभाया रूप क्या मेरा
यही समझो  सनम सबसे  बडी ही अलहदा हूँ मैं  ।।

मुह्ब्बत जब छुपाते तुम बडी मासूम लगते हो  ।
सुनो हर राज से पर्दा हटाती जलजला हूँ मैं  ।।

 बडी अरमान से घर को सजाया टूट गया रिश्ता ।
 नहीं शिकवा किसी से आज किस्मत से खफा हूँ मैं ।

 फिसल सब वक्त जाता जब तलक हमको समझ आता ।
  उषा डर ये लगे अब इस जहाँ में इक सजा हूँ मैं   ।।

*प्रो उषा झा रेणु*
   देहरादून

Sunday 9 May 2021

सीता हरण

212/ 6
धुन जिन्दगी की लड़ी

भाग्य क्यों बाम मेरे हुए, नित्य ही जानकी सोचती।
दुष्ट लंकेश क्यों हर लिए, जिन्दगी अब नहीं मोहती ।

बिन पिया के नहीं जी लगे,अब विरह रैन कैसे कटे।
दिन महीने हुए खत्म पिय, राम के नाम नित उर रटे ।।
स्वप्न में आह मनवा भरे, रागिनी भी तृखा घोलती ।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए, नित्य ही जानकी सोचती ।।

खो गए वो मिलन के दिवस कब कमल नैन दर्शनकरे।
चाँद से बात कितनी करें चाँदनी भी नहीं दुख हरे ।।
बस तड़पती विरहणी नहीं मुख सिया शूल से खोलती ।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

पुष्प के वाटिका में बहे नैन मन धीर सीता नहीं ।
पति विरह दंड भारी मिले आज संदेश मीता सही।।
कौन विधि राम लंका पधारे विरह दंश बस भोगती।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

घुल रही पीर से बावरी, ओह क्या काल के खेल है ?
कौन निर्जन विटप दे सहारा नहीं, आस उर ढेल है ?
रात काली डराती नहीं नींद दृग, दुख किसे बोलती।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

शूल उर में सदा राह प्रिय राम के नित निहारे सिया ।
धीर भी हो गये खत्म बस सोचती क्यों भुलाये पिया।
वाटिका रो रही मातु, हनुमान दी अंगुठी राम की ।
राम के दूत हनुमंत आए हरे पीर माँ जानकी ।।

सोच प्रभु दूत सीता बँधी आस, पिय याद में डोलती ।
भाग्य क्यो बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

*उषा की कलम से*
देहरादून

Friday 7 May 2021

शूल हरो भोले भंडारी

विधा - *वीर/आल्हा* *छंद* (गीत)

आओ भोले भंडारी अब, शूल हरो जल्दी संसार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।

बूँढी अँखियाँ बाँट जोहती, अस्पताल जबसे गया पूत ।
अर्धांगिनी अमर सुहाग को , बाँध रही पति रक्षा सूत।
दुख की छाई घनघोर घटा ,स्तब्ध हृदय नित हाहाकार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।

छीन गई है साँसे अनगिन,कौन बँधाए किसको धीर ?
जब छुट रहे साथ अपनों के ,घायल वक्ष पर चुभे तीर ।।
मूक मनुज इस त्राहिमाम से,लावारिस लाशें अंबार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।

आशा की अब बाँध पोटली,बाँटो हर घर में मुस्कान।
देकर नवल दिलाशा साथी,मानवता का रख दो शान ।।
चाहे प्रकृति चोट दे कितनी,नहीं मानना कोई हार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।

कहर महामारी ढाता है , समय बड़ा ही प्रतिकूल ।
हिम्मत को हथियार बनाना, फिर आ रहा वक्त अनुकूल ।।
जीवन जंग जीत साहस से , बुजदिल पार करे मझधार ।
घर -घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।

आओ भोले भंडारी अब, शूल हरो जल्दी संसार ।।

*प्रो उषा झा रेणु*
सर्वाथिकार सुरक्षित
देहरादून

मनभावन उपहार

विधा - हंसगति छंद ( मात्रिक)
20 मात्रा
 11/9 पर यति

➖यति से पहले 21 यति के बाद
त्रिकल ।

मन भावन उपहार ,शुचि मिलन सजना ।
सावन आये द्वार, विलग मत रखना ।।
       
जीवन तुमको सौंप ,मुदित उर मेरा  ।
आनंदित है गेह , लगे पियु फेरा ।।
पावन अपना प्रीत, युगो उर डेरा ।
 साजन सच्चा मीत , स्वप्न दृग घेरा ।
बरसे छम छम मेह, तुम्हीं पर मरना
सावन आये द्वार , विलग मत रखना ।

मुश्किल में भी साथ ,सदा तुम देना ।
नैया हो मझधार , थाम कर लेना ।।
भोली हूँ मैं भूल , माफ तुम करना ।
 प्रियवर मेरे आप , हृदय में रहना ।।
  सूना लगता गेह , कहाँ हो ललना ।
मन भावन उपहार,शुचि मिलन सजना ।।

आज तलक उर याद , प्रणय की रैना ।
कम्पित है मम गात , जाग ते नैना ।
शुचित वरदान प्रेम , पुनीत हमारा ।।
रख ली हूँ संभाल , सौगात प्यारा ।।
पुलकित जीवन शाम , हर्ष नित भरना ।।
मन भावन उपहार , शुचि मिलन सजना ।।

लाली मेरी माँग , सदा सजी रहे ।
पायल बिछुआ पाँव , मधुर प्रीत गहे ।।
अंजन अलकित नैन , नेह रस छलके ।
कुंतल कजरा डाल , हृदय कुँज महके ।।
प्रीतम भर लो बाँह , मोद मृदु बहना ।।
मन भावन उपहार , शुचि मिलन सजना ।



प्रो उषा झा रेणु
देहरादून

यादें गाँव की


 खोयी *मैं* भूली बिसरी यादों में ।
  दादी दिख जाती पूजा करती   ,
 तुलसी वृक्ष शुचि उस आंगन में ।।
दीये की कतारें झिल मिल करती,
नित दिन तुलसी चौरा संध्या में ।

  दलान पर मंदिर के प्रांगन खड़ा,
  बूढ़ा बरगद ममत्व लुटाये बरसों से।
  चलती गाँव की चौपाल वहीं ।
 आपस में बच्चे बूढे गपियाते ।
  चुपके से लेट जाते पशु वहीं  ।।
 भाँति भाँति के पंछी आश्रय पाते,
शीतल शुद्ध छाँव बरगद लुटाते ।
शुचित वायु सबके प्राण बचाते ।।
खेलते लुका छुपी हम बच्चे वहीं।।

बाड़ में  नीम के पौधे लगे थे ।
दादा जी कहते देख डाॅ पौधे  ।।
होते अंग अंग इनके गुणकारी ।
 करो नमन सब कोई अब इनको ,
 छाँव में इनके तनिक सुस्ता लो ।।
 
कट गए वृक्ष,अब चौपाल कहाँ !
कमरों में हुए बंद सब ए सी में ।।
 भटक रहे पंछी लगाए नीड कहाँ
 तिनका ले घुमे कंक्रीट के भीड में।
  तृषित मन लौट रहे अंजान देश में

  प्रो उषा झा रेणु
   देहरादून उत्तराखंड़