विधा - *वीर/आल्हा* *छंद* (गीत)
आओ भोले भंडारी अब, शूल हरो जल्दी संसार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।
बूँढी अँखियाँ बाँट जोहती, अस्पताल जबसे गया पूत ।
अर्धांगिनी अमर सुहाग को , बाँध रही पति रक्षा सूत।
दुख की छाई घनघोर घटा ,स्तब्ध हृदय नित हाहाकार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।
छीन गई है साँसे अनगिन,कौन बँधाए किसको धीर ?
जब छुट रहे साथ अपनों के ,घायल वक्ष पर चुभे तीर ।।
मूक मनुज इस त्राहिमाम से,लावारिस लाशें अंबार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।
आशा की अब बाँध पोटली,बाँटो हर घर में मुस्कान।
देकर नवल दिलाशा साथी,मानवता का रख दो शान ।।
चाहे प्रकृति चोट दे कितनी,नहीं मानना कोई हार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।
कहर महामारी ढाता है , समय बड़ा ही प्रतिकूल ।
हिम्मत को हथियार बनाना, फिर आ रहा वक्त अनुकूल ।।
जीवन जंग जीत साहस से , बुजदिल पार करे मझधार ।
घर -घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।
आओ भोले भंडारी अब, शूल हरो जल्दी संसार ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
सर्वाथिकार सुरक्षित
देहरादून
No comments:
Post a Comment