Tuesday 25 February 2020

शिव उमा विवाह

तप में उमा, मिले त्रिपुरारी  ।
 त्याग अन्न जल दी कोमारी ।।

 इकलौती थी सुता पार्वती ।
 हठी अति, मन की बस ठानती ।।
  लाडली वो पर्वत राज की ।
 वन में रहती, राज त्याग की ।।
 पुत्री गौरी  थी   सुकुमारी ।
 तप में उमा, मिले त्रिपुरारी ।।

  तप में बरसों जब बीत गए ।
  शंभू उमा पर  प्रसन्न  हुए ।।
  बोले वर मांग लो बालिके ।
  गौरी तो आपकी साधिके ।
  बनूँ संगिनी, चाह तुम्हारी ।
  सदियों से आपकी पुजारी
  तप में उमा, मिले त्रिपुरारी ।।

 मान गए महादेव कहना  ।
 शिव दुल्हा बन उतरे अँगना  ।।
 भूत पिशाच व संग देव थे ,
सर्प माल तन भस्म रमे थे ।।
 लगते अद्भुत त्रिनेत्र धारी ।
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।

मैना वर को देख डराई ।
नहीं चाहिए शंभु जमाई ।
मात पिता  फूट फूट रोये
बेटी उमा ने भाग्य खोये ।
शंभु पिया जन्मों के मेरे,
करो ब्याह की माँ तैयारी
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।

तीनों लोकों के स्वामी की,
हो रही अलौकिक विवाह थी  ।।
भाँति भाँति रूप लिए गण थे।
गौरी   शिव  प्रेम में  लीन थे  ।।
अद्भुत दृश्य नहीं  संसारी ।।
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।
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भरा आंगन जिया रोता

विषय :- विरह गीत
रस :- श्रृंगार ( वियोग )
छंद/बहर :- विजात छंद

भरा आंगन,  जिया रोता
हृदय प्रीतम बसा होता

मलय अब प्राण दहकाये
पिया की याद तड़पाये
सभी से चुप लगा देता
नहीं खत में बता देता

विरह का बीज ही बोता
भरा आंगन, जिया रोता

सजा कर रूप मत वाला
रहा  फिर भी बदन काला
सभी से पीर बस पाऊँ
पिया तुम बिन न मर जाऊँ

सजन अब सेज ना सोता
भरा आंगन, जिया रोता ।।

खनकती चूड़िया देखो
बजे  शहनाइयाँ देखो
जले हैं तन बदन देखो
लगी है मन में अगन देखो ।

 तमस में मारती गोता  ।
भरा आंगन,जिया रोता।।

बिना साथी तरस जाता
अकेले कौन जी पाता
सजन अब बोझ ये जीवन
तुम्हीं को ढूंढता है मन

गगन पर मन धरा होता  ।
भरा आंगन, जिया रोता ।।
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पिय बिन हृदय करे क्रन्दन

बहर का नाम :- बहरे - हजज मुसद्दस महजूफ
वज़्न :- 1222”1222”122
आर्कन :- तीन अरकान ( मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन )
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विषय :- विरह गीत
रस :- श्रृंगार ( वियोग )
छंद/बहर :- विजात छंद

भरा आँगन जिया रोता,
हृदय प्रीतम बसा होता।

मलय अब तन जलाता है,
नयन भी जल बहाता है।
सभी से पीर बस पाऊँ,
पिया तुम बिन न मर जाऊँ।

नयन कजरा धुला होता,
भरा आँगन, जिया रोता।

सखी गजरा सजाती है,
अधर लाली लगाती है।
सजाया रूप मत वाला,
रहा फिर भी बदन काला।

सजन अब सेज ना सोता
भरा आँगन जिया रोता ।

जले है तन बदन देखो,
लगी मन में अगन देखो।
सजन सावन रुलाता है,
नहीं मन चैन पाता है।

सजन अब सेज ना सोता ,
भरा आँगन,जिया रोता।

बिना साथी तरस जाता,
अकेले कौन जी पाता।
सजन ये बोझ जीवन है,
ह्रदय में सिर्फ क्रन्दन है।

विरह के बीज ही बोता,
भरा आँगन जिया रोता।
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Monday 24 February 2020

शिव पार्वती विवाह

पार्वती विवाह

विधा- गीतिका छंद
2122     2122    2122   212
मात मैना रो रही बेटी चुनी जोगी पिया ।
हार दी क्यों पार्वती इस शिव भिखारी ही जिया।।

माँ कुँआरी मैं रहूँ शिव पति नहीं पाँऊ अगर ।
साथ मेरा सात जन्मों का वही मेरे प्राण उर ।

नाथ शंकर हैं जगत के भूल को करते क्षमा ।
भू गरल पीकर सदाशिव भष्म में रहते रमा ।

 राजकन्या को पिया जोगी मिला है देखकर।
 मात मैना का कलेजा भी हिला है देखकर ।।

 फिर रही मैया बिलखती बाप का दिल रो रहा
इक भँगेड़ी संग में बेटी का परिणय हो रहा

 देव भी समझा रहे माँ ब्याह को राजी नहीं
घूमते वन-वन भिखारी को सुता देनी नहीं

 साँप बिच्छू, सोहें तन पर भूत साथी क्या बचा
मस्त गाँजे में है दूल्हा हे विधाता क्या रचा।

भार बेटी है नहीं ये शब्द माँ ने जब कहा ।
प्राण में शिव ही बसे हैं ये रमा ने तब कहा।।

 माँ कुँआरी ही रहूँगी या वरूँ शिवनाथ को।।
मम ह्रदय में वो बसे हैं नित झुकाती माथ को ।।

मान माँ पितु फिर गये बारात सज-धज कर चढ़ी।
देवता  सँग सँग चलें ये क्या सुहानी है घड़ी।।

है अलौकिक दृश्य नंदी पर जो दूल्हा मस्त है।
चाँद तारे नाचते हर देवता भी व्यस्त है  ।।


उषा झा (स्वरचित )
देहरादून (उत्तराखंड

Monday 17 February 2020

उन बिन नहीं नैनों की ज्योति

1222,    1222,  1222,    1222
 कभी हँसती नहीं होती कभी रोती नहीं होती ।
न पलता प्यार जो दिल में तो यूँ खोती नहीं होती।

तुम्हीं बोलो तुम्हारे बिन जिया जाए पिया कैसै।
नयन में ख्वाब  कोई भी बोती  नहीं  होती ।

विना तेरे अधूरी हूँ  जो पूरी मैं  होती  तो इस।
जुदाई में मिलन का हार यूँ पो ती नहीं होती।

 जो मेरा प्यार जानेमन अगर सच्चा नहीं होता।
बिछुड़कर इस तरह तन्हा सफ़र ढोती नहीं होती।

 समन्दर जैसी गहराई मुहब्बत में न होती जो।
तो फिर ये बूँद आँसू की कभी मोती नहीं होती।

 तुम्हीं को ढूँढ़ने जोगन बनी फिरती न गलियों में।
अगर इस मन के मन्दिर में जली जोती नहीं होती।

 हरिक शब तेरे विन मैने गुज़ारी तारे गिन गिन कर।
 कहाँ तब नींद आती संग जब सो ती नहीं होती ।

 कहीं मधुमास आये औ सजन यूँ ही चला जाये।
जो मन प्यासा नहीं होता धरा धो ती नहीं होती।

 नजर पथरा गई  है आस  में  तेरे  लिए  साजन ।
 अमामस को कभी पिय चाँद से दोस्ती नहीं होती।

Sunday 16 February 2020

प्रणय मिलन


विधा - गीतिका    छंद
2122   2122   2122   212
लाज की चुनरी नहीं अब मैं हटाऊँ औ पिया ।
खुल न जाए भेद, पट से मुख छुपाऊँ औ पिया ।।

छेड़ जाते  तार उर के   दो  नयन  तेरे  सजन ।
स्वप्न नित नव नव सजाती क्या बताऊँ औ पिया।।

जुल्फ जब मुख चूमता एक टक फिर देखती ।
प्रीत मुखरित हो रही कैसे ,जताऊँ औ पिया ।।

तोड़ दो तट बंध  सारे  चाह दिल  में  है  यही ।
वार दूँ तन मन, नहीं तुमको सताऊँ औ पिया ।

चेतना भी लुप्त मन की गात अब निस्तेज है ।
कामना दिल में मिलन की तन सजाऊँ औ पिया ।

प्रेम से यह जग बना है देव भी   हारे   हृदय ।
चिर मिलन बिन हम अधूरे क्या सुनाऊँ औ पिया।।

मद भरी यह शाम आई गात पुलकित हो रहा ।
खोल मन के द्वार सिमटी सी लजाऊँ औ पिया ।

होश क्यों गुम हो रहा है अधखुले मेरे पलक ।
श्याम पर राधा दिवानी दिल लुटाऊँ औ पिया ।।

प्रीति की ये रीति से गढ़ नव जगत आधार तुम ।
बाँध लो भुज बंध में सज धज लुभाऊँ औ पिया ।।

प्रेम तब परिपूर्ण होता जब मिलन की बात हो।
रागिनी मृदु बैन निशि दिन फिर सुनाऊँ औ पिया।

प्रीत तो उपहार, जीवन को मिला जग जीत लो ।
आस से पुष्पित हृदय, कितना दिखाऊँ औ पिया ।।

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मैं उषा झा देहरादून 

प्रणय निवेदन


विधा-गीत -लावणी छंद
 16 /14 पर यति चरणांत 2 


नैनों में तेरे ही सपने , दे दी दिल तुमको सजना ।
जीवन डगर संग ही चलना, नहीं दूर तुमसे रहना ।।

दिवस खास देखो आये हैं, प्रेम निवेदन मैं करती ।
चलें दूर हो जहाँ सितारे,तुम से ही धड़कन चलती।।
नीले अंबर के नीचे मन,भर बातें करनी तुमसे ।
तेरी ही दुल्हन बनना है, कसमे खाती हूँ तुमसे ।। 
सजन निभाना रीति प्रीति की, नहीं किसी से तुम डरना ।
जीवन डगर संग ही चलना, नहीं दूर तुमसे रहना ।।

मिले जिन्दगी में लोग कई, रही उदासीन प्रीत से ।
तुम्हें देखते ही दिल धड़का, तुम जुड़े हुए अतीत से ।
स्वप्न नैन में तैर रहे हैं , तुम चढ़ कर घोड़ी आए ।
अनुबंध करो जुदा न होंगे , बस सच सपने हो जाए।।
मिले सनम गम या खुशी हमें,अब तो मिलकर है सहना।
जीवन डगर संग ही चलना , नहीं दूर तुमसे रहना ।।

सार्थकता तब प्रेम दिवस की , प्रीत स्वार्थ से परे रहे ।
जग में अपना प्यार अमर हो , सत्य प्रेम बस टिके रहे ।
इतिहास रचे हम दीवाने , प्रेम कहानी याद करे ।
कायनात में रुह की दांस्ता,इक इबारत लिखा करे ।
मन मीत एक विनती सुन लो , सदैव दिल में ही रखना ।

नैनों में तेरे ही सपने ,दे दी दिल तुझको सजना ।
जीवन डगर संग ही चलना,नहीं दूर तुमसे रहना ।।
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मैं उषा झा देहरादून 

Sunday 9 February 2020

अधीर मन प्रीत की राहों में

साधना 

विधा- मुक्तक 
कब निकल पड़ी जाने कैसे , सजन प्रीत की राहों में ।
सही लौट कर आना मुश्किल, मिले खार ही राहों में।
पिया विलय अस्तित्व किया है, जब से तुमसे नैन लड़े 
भंग नहीं हो प्रेम तपस्या,,पीर भरे दिल आहों में ।।

लगन तुम्हें पाने की दिल में ,मैं  करूँ अर्चना तेरी ।
मिले नेहिल प्रसाद तुम्हारा ,अब करूँ साधना तेरी ।
बनी प्रेम में मीरा जोगन, बिन प्रिय जग सूना सूना ।।
बूँद अमृत की छलका दो अब , बस सुनों प्रार्थना मेरी।

रोम-रोम में वो बसते हैं  , हिया लगी साँवरिया से।
ढूँढ रहें है नयना तुझको, दूरी क्यों बावरिया से ।।
लक्ष्य तुम्हीं  जीवन के मेरे ,तन मन अर्पण सजना को ।
दर -दर भटक रही हूँ निशि दिन ,रसना बहे गुजरिया से।

झर झर बहते नयन बावरे, धीर खो रहे हैं प्यारे ।
भटक रहे मन सघन विटप में , गिन रहे नैन हैं तारे।।
पिंजरें तोड़ उड़ी है मैना, तुम्हें  ढूँढने को निकली।
कहीं साँवरे जब नहीं मिले, मन अधीर भी हैं हारे  ।।

उषा झा देहरादून

नकली रिश्ते

हृदय के भाव पढ़े न कोई , आहत मन इन बातों से ।
रिश्ते नकली यूँ  फिसल रहे,  बूँद कमल के पातों से ।

राजदार जो भी बनते है ,वही हमें  घायल करते ।
हृदय विहीन समाज  बेदर्द, दर्द देकर मन न भरते ।
कोमल मन और व्यथित नहीं हो,भेद छुपाते हम सबसे ।
 छुपे तम जीवन के अपने , इन अंधेरी रातों से ।
हृदय की बात पढ़े न कोई, आहत मन इन बातों से ।।

 नयनों में उसके  स्वप्न सजे , चाहत के जो पंख लगे ।
मन भर कुँलाचे भरी वितान में, दिए दर्द बन कौन सगे?
टूट पंख उसके गए, उठी,, विश्वास  हर  इसांनो से  ।।
मन विहग निशि दिन किलोल करे,दुखी बहुत वह घातों से ।
हृदय की बात पढ़े न कोई,  आहत मन इन बातों से  ।।

सुनो #सुजाता  कहना मानो, बंधन उर के तुम खोलो ।
छोड़ परवाह अब लोगों की ,क्यों तुम लफ्जों को  तोलो ।
झाँसी की रानी बन जाओ,खुद को अब तो पहचानों ।
मेधा से स्त्री परिपूर्ण सभी , पन्ने इतिहास के  खोलो ।
अपने चश्मे से देखा कर , हो गर्वित स्त्री जातों से ।।

हृदय की बात पढ़ ले चाहे ,आहत क्यों इन बातों से ?
रिश्ते नकली यूँ  फिसल रहे,बूँद कमल के पातों से ।।



 


Saturday 8 February 2020

ऋतु बासंती उदास


विधा : कीर्ति छंद(वर्णिक)
दशाक्षर
(सगण)×3 + गुरु
112 112 112 2
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112   112   112   2
मधुमास पिया बिन फीका ।
मन घायल है दिन फीका ।।
पलकें बस भींग रही है ।
तुमको दृग ढूंढ रही है ।।

जब से तुम दूर गये हो ।
तबसे मन पीर भरे हो ।।
हर रैन उदास लगे हैं ।
सब रंग उमंग भगे हैं ।।

बिन साजन आँगन सूनी ।
विरहा डँसती अब दूनी ।।
खुशियाँ तुम संग गई है ।
यह जीवन व्यर्थ हुई है ।।

उर प्रेम करे तुझको है ।
यह रोग लगे मुझको है ।।
मनभावन ये ऋतु आई ।
वह तो उर प्यास बढाई ।।

रजनी सजती सजना से ।
खिलती कलियाँ भँवरा से ।।
सुन लो मन मीत तुम्हीं हो ।
मन के सुख शान्ति तुम्हीं हो ।।

लगती यह मौसम गाली ।
बिन साजन के सब खाली।।
बिन प्रीतम वर्ष अधूरे ।
कर दो सपने सब पूरे ।।

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उषा झा देहरादून

Tuesday 4 February 2020

करें नष्ट आड़म्बर

विथा-  मुक्तक 

बताकर धर्म का पैगम्बर,
क्यो दुखा रहे तुम  दिल उनके ।
बनाकर खिलौना नारी को, 
क्यो खेल रहे जीवन उनके ।
 किसी कौम का नहीं दस्तूर
 ,बता ग्रंथ में  लिखा कहाँ  है?
बीच राह में छोड़  अकेले
क्यो तोड  रहे अब दिल उनके ।

आड धर्म की में जो छुप के, 
वार मनुजता  पर करते हो।
निहत्थे लाचार के सिर वो
पत्थर से फोड़ा करते हो  ।
नापाक इन्सानियत को,क्यों  
अब शर्मसार करते दुष्टों  ।
बंदगी खुदा की करते कैसी 
शोणित से होली  करते हो।

अंधविश्वास की आड़ धर्म , 
को बना दिए हथियार सभी ।
ज्यादा रखते ,स्त्री पर, हद से
 बंदिश के पहरेदार सभी ।
कठपुतली नहीं  औरते हैं
इंसान जागती  जीती वो
अवसर उनको दो फैलाओ, 
तुम भरो ज्ञान उजियार सभी।।

बाहर निकालें रूढ़िवादी, 
धर्मो  के ख्यालात पुराने ।
है बेटी ही  जल दाता, सुन लो , 
तज दो मानसिकता पुराने ।
जानो जग वालो! बिटिया ही 
अंत करेगी  वह ही  सेवा ।
गौरवान्वित करेगी तुमको, 
पूर्ण करेगी सपन सुहाने ।।

उषा झा 
देहरादून

Monday 3 February 2020

कलियाँ चटकी गुलशन में

जब यौवन की कलियाँ चटकीं,अलि मकरंद की चाह में।
मलय- पवन भी होश उड़ाता , छाता नशा निंगाह में ।
आवारा बादल घूम रहा , नेह बूँद जो बरस रही ।
मचल दिवाने गये रूप के, बैचेन दिल है आह में ।

गुलशन की है शोभा न्यारी, मन मुस्काया मेरा है ।
पुष्प खिले हैं रंग- बिरंगे, मधुप जमाया डेरा है ।।
सांकल उर की खोल,मधुमास, सहसा भीतर घुस आया ।
प्रीति- रीति तज स्वप्न लोक में, हर दिन नया सवेरा है ।

पलें ख्वाहिशें, नयनों में अब , जीवन भर पी संग रहे ।
तृषित- हृदय तब,तृप्ति मिले जब ,भरे प्रेम मन रंग रहे ।।
भागी तृष्णा, गया हृदय मरु, सुवासित!देह परदेशी ।
पुलकित रोम-रोम , फूट गए, कोंपल रसना अंग रहे ।।
 
जाने कैसे कब निकल पड़ी,सजन प्रीत की राहों  में ।
लौट कर आना मुश्किल सही ,मिले खार ही  राहों में ।
किया विलय अस्तित्व पिया है, जभी नैन तुम संग मिले ।
 भंग न हो प्रेम तपस्या दम,,  तो  छुटे  नहीं  आहों  में  ।।
   
उषा झा देहरादून

शूल यौवन के पथ

विधा-  मुक्तक 

 देखते ही उनको मेरा बुरा  हाल हुआ।
मन घबराया मेरा ,दिल भी बेहाल हुआ ।
अब कहाँ धड़कनें भी,कहना मेरा माने।
साँसों की तेज गति से बैचेन हाल  हुआ ।।

यौवन की दहलीज चढ़ कर करते सब भूल ।
रूप यौवन के जाल में नष्ट जीवन फूल ।
धड़क धड़क कर धड़कनें  ,छीने जीवन मूल।
बहकते कदम ऐसे बिछें  हों पथ पर शूल ।।

कब मांगने से मिलती मुहब्बत है किसी को ।
रब की मर्जी से मिले मुहब्बत है सभी को ।।
रूह की रौशनी से सजदा सच्ची मुहब्बत ।
मन में बसाकर मूरत पूजता है तुझी को ।।

प्यार व्यापार बन गया, ठगते सब किसी को ।
प्यार का दिखावा करे, दे घात हर किसी को ।।
नेह लुटा के पता चले ,कितना सुकून मिले ।
दुख में जो साथ निभा दे, मिले प्यार उसी को ।।

उषा झा देहरादून