जब यौवन की कलियाँ चटकीं,अलि मकरंद की चाह में।
मलय- पवन भी होश उड़ाता , छाता नशा निंगाह में ।
आवारा बादल घूम रहा , नेह बूँद जो बरस रही ।
मचल दिवाने गये रूप के, बैचेन दिल है आह में ।
गुलशन की है शोभा न्यारी, मन मुस्काया मेरा है ।
पुष्प खिले हैं रंग- बिरंगे, मधुप जमाया डेरा है ।।
सांकल उर की खोल,मधुमास, सहसा भीतर घुस आया ।
प्रीति- रीति तज स्वप्न लोक में, हर दिन नया सवेरा है ।
पलें ख्वाहिशें, नयनों में अब , जीवन भर पी संग रहे ।
तृषित- हृदय तब,तृप्ति मिले जब ,भरे प्रेम मन रंग रहे ।।
भागी तृष्णा, गया हृदय मरु, सुवासित!देह परदेशी ।
पुलकित रोम-रोम , फूट गए, कोंपल रसना अंग रहे ।।
जाने कैसे कब निकल पड़ी,सजन प्रीत की राहों में ।
लौट कर आना मुश्किल सही ,मिले खार ही राहों में ।
किया विलय अस्तित्व पिया है, जभी नैन तुम संग मिले ।
भंग न हो प्रेम तपस्या दम,, तो छुटे नहीं आहों में ।।
लौट कर आना मुश्किल सही ,मिले खार ही राहों में ।
किया विलय अस्तित्व पिया है, जभी नैन तुम संग मिले ।
भंग न हो प्रेम तपस्या दम,, तो छुटे नहीं आहों में ।।
उषा झा देहरादून
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