विथा- मुक्तक
बताकर धर्म का पैगम्बर,
क्यो दुखा रहे तुम दिल उनके ।
बनाकर खिलौना नारी को,
क्यो खेल रहे जीवन उनके ।
किसी कौम का नहीं दस्तूर
,बता ग्रंथ में लिखा कहाँ है?
बीच राह में छोड़ अकेले
क्यो तोड रहे अब दिल उनके ।
आड धर्म की में जो छुप के,
वार मनुजता पर करते हो।
निहत्थे लाचार के सिर वो
पत्थर से फोड़ा करते हो ।
नापाक इन्सानियत को,क्यों
अब शर्मसार करते दुष्टों ।
बंदगी खुदा की करते कैसी
शोणित से होली करते हो।
अंधविश्वास की आड़ धर्म ,
को बना दिए हथियार सभी ।
ज्यादा रखते ,स्त्री पर, हद से
बंदिश के पहरेदार सभी ।
कठपुतली नहीं औरते हैं
इंसान जागती जीती वो
अवसर उनको दो फैलाओ,
तुम भरो ज्ञान उजियार सभी।।
बाहर निकालें रूढ़िवादी,
धर्मो के ख्यालात पुराने ।
है बेटी ही जल दाता, सुन लो ,
तज दो मानसिकता पुराने ।
जानो जग वालो! बिटिया ही
अंत करेगी वह ही सेवा ।
गौरवान्वित करेगी तुमको,
पूर्ण करेगी सपन सुहाने ।।
उषा झा
देहरादून
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