Monday 27 December 2021

हँसता खिलखिलाता घर मरघट बन गया

*हँसता खिलखिता घर बना मरघट सा*

श्यामानंद झा जी हाई स्कूल के ख्याति प्राप्त साइंस शिक्षक थे ।बहुत ही निश्छल और हँसमुख स्वभाव के
थे वो ।उनको एक पुत्र और तीन पुत्रियाँ है । बेटा सबसे
बडा और क्रमशः तीन बेटियाँ।
वो एक मामूली घर से होने के बावजूद अपनी पढाई पूरी करके एक योग्य शिक्षक बने थे। पढाई के दरम्यान में उनको कितनी मुश्किलें उठानी पडी वो यदा कदा हम बच्चों को सुनाया करते थे। श्यामानंद जी हमारे पडोसी थे ।कभी कभी कोई सवाल पूछने उनके पास सहेली के साथ चली जाती थी। इसलिए हम सबों को प्रेरित करने के लिए पढाई के अतिरिक्त भी ज्ञान वर्धक बातें बताया करते थे। उनके बारे में थोड़ीसी जानकारी उन्हीं के मुख से सुनी ।पढने में उन्हें बहन ने मदद की थी ।
अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए और बच्चों को हर सुविधा मुहैया कराने के लिए श्यामानंद जी खाली समय में ट्यूशन करते थे । चूँकि वो शहर के माने हुए शिक्षक थे इसलिए ट्यूशन के कई बैच उनके चलते थे।
जल्दी ही किराये के मकान से अपने स्वनिर्मित घर में
चले गए । बेटा - बेटी भी पढ लिख गए ।चमचमाती
कार भी एक दिन दरवाजे का शोभा बढाने लगी ।
बेटा और दो बेटियों की शादी भी उन्होंने समय पर कर दी ।अब एक बेटी की जिम्मेदारी थी और रिटायरमेंट का
समय दो साल बाकी था । इसलिए किसी भी तरह की
परेशानी से मुक्त थे । वैसे भी मैंने चिन्तित उन्हें कभी
नहीं देखा ।उनके चेहरे की मीठी मुस्कान देख सब मुग्ध
हो जाते थे ।उनकी पत्नी का स्वभाव थोडा झक्की था ।
वो कभी झल्लाती तो श्यामानंद जी की मीठी मीठी बातें
सुनकर तुरंत ही शांत हो जाती थी ।
श्यामानंद जी की ड्यूटी चुनाव में लगाई गई थी चूँकि दो- चार दिन पहले उन्हें पेचिस हुआ था सो कमजोरी आ गई थी,इसलिए अपने बेटा को ड्यूटी पर अपने संग ले गए । उनके जाने के दूसरे ही दिन उनकी मौत की खबर से पूरा शहर सन्न रह गया । सहसा किसी को विश्वास ही नहीं हुआ ।उड़ती खबर आई कि बेरोजगार बेटा नौकरी पाने की लालच में खाने में कुछ मिला दिया ।
खैर मैं तो इन बातों को झूठ मानती रही । पर इस घटना
के बाद श्यामानंद झा जी के घर की स्थिति को देखते हुए मन में संदेह भी होने लगा था। आए दिन माँ बेटा में कहा सूनी होती थी ।बेटा बाप के पूरे पैसे को हड़पना चाहता था ।पर माँ अपनी कुँवारी बेटी के लिए पैसे
जमा रखना चाहती थी ।खैर दो आदमी के अनबन में
तीसरा फायदा उठा लिया ।उनके बड़े दामाद जो उनके
घर के पास ही रहते थे , अपने सास और साली को सपोर्ट करने के नाम पर उन्हीं के मकान के पीछे वाले हिस्से में शिफ्ट हो गए । सास सारे पैसे बेटी दामाद के नाम पर जमा करवायी ताकि , छोटी बेटी की शादी में दिक्कत न हो ।धीरे धीरे वह बहुत विश्वास पात्र बन गए
और पूरे घर को मुट्ठी में कर ली ,और बेटा घर का खलनायक बन गया ।जाने किस गम में , अपने कुकर्म या
पापा के खोने के गम या , माँ के रवैये के कारण वह
सिजोफ्रेनिया का शिकार हो गया । एक दूसरा कारण उस
लड़के की बीवी भी थी , जो कभी ससुराल में बस ही नहीं
पाई , आती भी तो सास बहू के खटपट शुरू हो जाते ।
उसपर पति भी निकम्मा, आजिज होकर बहू मायका लौट जाती थी। बहरहाल जो भी कारण हो पर सबके नजर में बेटा संदिग्ध व्यक्ति बन गया था ।
साल भर आते आते श्यामानंद जी का हँसता खिलखिलाता परिवार बिखर गया । घर कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया था । रिश्ते नाते पड़ोसी सब दूर दूर रहने
लगे । निकटवर्ती पडोसी होने के नाते हमें सब कुछ पता
चल जाता था।
वार्षिक कर्म के बाद बेटी के विवाह के लिए श्यामानंद जी की बीवी बडे दामाद पर दवाब डालना शुरू कर दी , क्योंकि बेटा तो पहले ही दिल से दूर हो गया था , दामाद ही वफादार दिखते थे ।जब जब लडका ढूढने की बात चलती दामाद कल परसो कह कर बात को टाल जाते थे।
दो तीन महीना ऐसे ही बीत गए ।जब सास का धैर्य
जवाब दे गया तो कुछ कडक स्वर में दामाद को आगाह कराई कि मुझे इसी वर्ष शादी करानी है , इसलिए कहीं न कहीं इसी माह में रिश्ता तय कर लो ।
उसी रात के दूसरे दिन कहीं रिश्ते देखने दामाद गए ।
सास शांत हो गई ।पर तीसरे दिन सबह सुबह चीख पुकार सुन मेरे मम्मी पापा और अन्य पडोसी श्यामानंद जी के घर दौड़ पड़े ।वहाँ के दृश्य देख सभी अचंभित रह गए । छोटी बेटी माधवी के गले में फंदा लटका हुआ था । आँखे खुली थी ।वह इस दुनिया को छोड परलोक सिधार
चुकी थी । पुलिस आई पोस्टमार्ट के लिए बाॅडी ले गए ।रिपोर्ट में आत्महत्या नहीं हत्या करार दिया गया।
किसी ने हत्या करके उसे लटका दिया था ।इस बार शक
कि सूई दामाद की और थी ।सुनने में आया वो सारे पैसे
हजम कर लिया, जिस गम में श्यामानंद झा जी की पत्नी
विक्षिप्त दशा में चली गई और कुछ महीने के बाद गुजर गई । वह घर अब भी है , वहाँ मरघट सा सन्नाटा है ।
पिता के रिटायर होने से पूर्व दिवंगत होने के आधार पर
बेटा कलर्क बन गया था और खुद को घर से अलग कर लिया था , अब वह अकेले यहाँ रहता है ।दामाद उसी समय अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर चले गये थे।
कहने को श्यामानंद जी के दो पोते भी हैं पर वो नानी घर
पले बढे तो वहीं के होकर रह गये क्योकि बहू तो ससुराल
में बस ही नहीं पाई ।पति ही पत्नी के पास यदा कदा चला जाता था जिस कारण कुल के दो चिराग प्रज्वलित है....... ।

*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून













स्वार्थ में पगे रिश्ते (कहानी)

मेरे पड़ोस में एक पंजाबी परिवार रहता है।उनकी तीन बेटियाँ और एक बेटा है। मीनू, पिहू, गीत और परमिन्दर क्रमशः इनके नाम हैं । स्वभाव से पंजाबी दम्पत्ति सरल व मितभाषी हैं। शायद तेज तर्रार नहीं थे तभी इनका बिजनेस भी न के बराबर ही था ।बस दो गड्डी(ट्रक) खड़ी
है माल ढ़ुलाई ( रेत, बजरी) के लिए । घर की माली स्थिति दयनीय देख बड़ी बेटी बी .एस .सी .के बाद घर से ही होम ट्यूशन चलाने लगी ।देखते ही देखते बच्चों की भीड़ मीनू के दरवाजे पर दिखने लगी ।मीनू ने अपने घर को संभाल लिया ।वो अपने पिता के मजबूत कंधे बन गई थी। घर ,भाई बहनों के केरियर सँवारने में खुद को उसने झोंक दिया ।इधर परिवार तो संभलता जा रहा था पर दूसरी तरफ उसकी शादी की उम्र भी निकली जा रही थी ।कोई न कोई अक्सर उसे पूछ ही डालते ...
" अरे मीनू तुम कब शादी करोगी ? आखिर हर लड़की को अपना घर तो बसाना ही पड़ता है ..! "
" तुम्हें भी अब शादी के बारे में सोचना चाहिए .. ?"
इस पर मीनू ने कहा - "अभी तो मुझको बहुत सारे काम करने हैं । घर भी नहीं बना है , भाई बहनों की पढाई
अधूरी है । ऐसे में कैसे शादी कर लूँ ? "
तीनो बहनें कमसीन और खूबसूरत थी, हर किसी के मुँह से उनके लिए तारीफ ही निकलती थी । हर किसी को उनकी शादी की फिकर हो रही थी पर ,उसके माता पिता
तो आँखें ही मूँद रखे थे । काॅलोनी में सब उनके लिए स्वार्थी, बेटी की कमाई खाने वाले ,मक्कार माँ बाप जाने
क्या क्या बोला करते ? इन बातों में कुछ तो सच्चाई थी और कुछ फालतू भी ।कारण दोमंजिला खड़ा हो गया था, बड़ी सी कार आ गई ,बच्चे पढ लिख भी गए थे ।
अब तो उन्हें मीनू की शादी कर ही देनी चाहिए थी , पर जब पूछो तो कहते ,"रब जाने उनके बगैर तो कुछ होता ही नहीं । जब होने को होगी, हो जाएगी ।"
खैर इसी बीच ,सबसे छोटी बेटी घर से भागकर शादी कर ली ।सुनने में आया वो एक अधेड़ से शादी कर ली है।
उसके बाद मीनू ने भी अपने लिए लड़के खुद तलाशने शुरू कर दिए ।उड़ती उड़ती खबरे सुनाई दी कि , अपने ही शुरूआती दिनों के ट्यूशन वाले छात्र, जो मर्जन्ट नेवी में इन्जिनियर था, उसी से शादी तय हो गई ।
मुझे याद है जिस दिन मीनू की शादी थी , उस दिन सारी
काॅलोनी ही खुश थे ।हम सभी सज धज के मीनू की हल्दी , मेंहदी और शादी के सभी फंक्सनअटेन्ड किए थे।शादी भी शानदार फार्महाऊस में हुई थी ।सुनते हैं लड़के वाले ने ही अधिकतर इन्तजाम करवाए थे ।
मीनू भी उस दिन बेहद खूबसूरत लग रही थी । छत्तीस की मीनू को उम्र छू तक नहीं पाई थी ।
मैं अपने सखियों के संग मीनू को देखने के लिए मैरिज हाॅल के दुल्हन वाले कक्ष में गई थी ।कारण जयमाल तक रूकना मुश्किल था । उसे देखकर हम विभोर हो गए..
मेरी सरदारन सखी ने कहा ,
" मीनू अब तो हमारी काॅलोनी उदास कर चली जाओगी ।""अब बच्चे किससे पढने जाएँगे ...?"
मीनू मुस्कुराकर रह गई थी... ।
सभी के बच्चे मीनू से ही पढते थे इसलिए सबको उससे विशेष लगाव था ।
मीनू के शादी होने के बाद हमारी काॅलोनी सचमुच सूनी
दिखने लगी ।अक्सर आते जाते पंजाबन के घर पर नजरें
अटक जाया करती थी। मीनू के जाने के थोड़े ही दिनों के
बाद , दूसरे नम्बर की बहन पीहू ने ट्यूसन पढाना शुरू कर दिया।कारण छोटी बहन भाग कर शादी कर ली और
बड़ी बहन की भी शादी हो गई थी ।वोअकेलेपन के उदासी से निकलने की राह ढूँढ ली। वैसे भी अब घर खुशहाल हो गया है । छोटा भाई परमिन्दर अच्छे से बिजनेस चला रहा है । माल ढ़ुलाई के अतिरिक्त भी कई सारे धंधे करता है ।इसी साल के शुरुआत में परमिन्दर की शादी हो गई थी।पंजाबन मियाँ बीवी प्रसन्न मुद्रा में कार्ड बाँटने आए थे ।और सारे फंक्सन में सबको आमंत्रित किए।अब भी सबके मुख पर एक सवाल था ,
"अरे भाभी जी , भाई साहब आपने पीहू से पहले परमिन्दर की शादी कर दी ...!"
"कायदे से तो, पहले बड़ी बहन की शादी होनी चाहिए थी।"
पंजाबन तो मुस्कुराकर सबको कहते, "बहन को भी तो
शौक होता उसकी शादी में भाभी हो ....।"
खैर बेटे की शादी कर मियाँ बीवी खुश थे ,तो लोगों को
कोई हक नहीं बनता ज्ञान बाँचने का ... !
पीहू भी ट्यूशन में मशगूल थी ।सब कुछ ठीक चल रहा था । अचानक एक दिन मेरे पड़ोसन ने कहा ,
"अरे मिसेज झा आपने सुना , वो पीहू ने फाँसी का फंदा
लगा लिया .... ? रात में ही झूल गई थी ।सवेरे अपने कमरे मरी पाई गई है ।
मैं तो अपने मूड़ेर पर खड़ी स्तब्ध रह गई ।बार बार उसकी शकल आँखों के सामने नाचने लगी ।
बाद में पता चला भाई की बीवी से कहा सूनी हो गई थी ।
शायद ऐसी चूभने वाली बातें सुना दी, जिसे सुनकर पीहू
बरदास्त नहीं कर सकी थी..।
सबके जुबाँ पर अब एक ही बात है , "जिस घर की नींव बेटियों ने डाला ,उसी को नाते दार बोझ समझने लगे ।"
*प्रो उषा झा रेणु*
मौलिक (देहरादून)
सर्वाधिकार सुरक्षित






गुल्लू और बिल्लू(बाल कहानी)

बिल्लू और गुल्लू दो जुड़वे भाई थे । एक माँ के कोख से
पैदा होने के बावजूद दोनों विपरीत स्वभाव के थे ।
गुल्लू भोला -भाला और बिल्लू लोमड़ी के तरह लालची
और चालाक ।इस बात को माँ पिता और बहनें समझती
थी ।इसलिए सभी गुल्लू को बहुत प्यार करते थे और
बिल्लू को सभीं से झिड़की मिलती थी ,कभी - कभी
थप्पड़ भी खा जाता था ।
एक दिन बिल्लू ने कहा..." अरे ओ गुल्लू इधर आओ
तुम्हें कुछ दिखाना चाह रहा हूँ !
गुल्लू ने कहा बिल्लू मैं समझ रहा,"तुम मुझे छका रहो हो.. हरदम मुझे फुसलाते रहते हो।"
पर बिल्लू हाथ पकड़ कर खींचते हुए गुल्लू को ले गया,
और गुल्लक दिखाते हुए बोला ..."देखो तुम्हारा गुल्लक
भर गया है...।"
"जरा इसको फोड़कर देखो तो , कितने रूपये जमा हो गए ", बिल्लू ने गुल्लू से कहा ।
गुल्लू के भी मन में उत्सुकता हुई ,और वह गुल्लक को
को हिलाकर देखा तो , वह भर भी गया था ।
उसने आव- देखा- न ताव देखा खट से जोर से जमीन पर पटक दिया ।इतने सारे पैसे देख बिल्लू के मन उथल पुथल मच रहा था । फिर उसने गुल्लू से कहा ,
"मैं भी पैसे गिनने में तेरी मदद कर दूँ....।"
"गुल्लू ने कहा हाँ -हाँ भाई जरूर , तुम मदद कर दो ।"
इधर ढेरों पैसे देख बिल्लू के मन लालच आ गया था ।
वो तरकीब लगा रहा था कैसे ,गुल्लू से पैसे ठगे जाए ।
पैसे गिनते- गिनते बिल्लू ने कहा ,"देखो गुल्लू तुम्हारे
कितने सारे पैसे काले पड़ गए हैं।"
देखो भाई ये पैसे तो भदवा पैसे ( बेकार) माने जाएँगें।"
"भाई इसे फेंक दो , इससे तो कुछ नहीं आएगा ।"
गुल्लू ये सुनकर मायूस हो गया ।फिर बोला ,
"ठीक है इन पैसों को नाली में फेंक देते हैं ..।"
बिल्लू ने बड़ी चालाकी से कहा , अरे मैं फेंक आता हूँ
गड्ढे में इसको ।"
"गुल्लू ने कहा मैं भी चलता हूँ तेरे साथ ।" पर बिल्लू ने
होशियारी दिखाई फिर कहने लगा , "तू बाकि पैसे तब
तक सँभाल ले ।" नहीं तो ये पैसे कोई उठा लेंगे ।
"तब तक मैं भदवा (बेकार ) पैसे को फेंक आता हूँ।"
और बात पूरी करते करते वह तेजी से उड़ गया ।
सारे पैसे को किसी नल के पानी से चमकाया और जाने उस पैसे से क्या क्या खरीदा... ।
चहकते हुए वह घर जब लौटा तो बिल्लू के हाथ खिलौने
खाने के सामान से भरे थे । गुल्लू ललचाई नजर से भाई को देख रहा था । कहने लगा मुझे भी दे दो । पर वह तो एक दाना भी देने को तैयार नहीं था । उसने कहा ,
"ये मैंने अपने पैसे से खरीदा है ।तुम्हें कैसे दे सकता हूँ ।"
।गुल्लू के आँखों में आँसू भरे थे । पर वह चुपचाप घर के अन्दर चला गया । माँ ने जब गुल्लू को उदास देखा तो पूछने लगी ," कहो गुल्लू क्या बात है क्यों रोनी सूरत बना रखे हो।"
उसने बिल्लू के तरफ इशारा किया कहा "भाई मुझे नहीं दे रहा चीजी खाने को ।"
माँ पापा ने फिर कड़क कर कहा कहाँ से लाए पैसे बताओ ?तुम्हारा गुल्लक तो भरा है ।हमने पैसे दिए नहीं , सच -सच बता कहाँ से पैसे लाया ।माँ -पापा के डर दिखाने पर बिल्लू सच उगल दिया ।उस दिन उसकी खूब धुनाई हुई । फिर बिल्लू को मुर्गा बनाकर कसम खिलाई गई कि कभी किसी के साथ धोखा नहीं करेगा ? न कभी
झूठ बोलेगा वह ?
उस दिन के बाद से बिल्लू में बहुत परिवर्तन आ गया था ।
धीरे धीरे वह अच्छे बच्चे बन गए थे ।

*उषा की कलम से*
उत्तराखंड देहरादून
यह मेरी स्वरचित मौलिक रचना है ।साथ ही अप्रकाशित
अप्रेशित रचना है ।


Saturday 31 July 2021

क्रोधित जाह्नवी

2122    2122  2122    212
देखती कूड़ा बहाते नित्य क्रोधित जाह्नवी ।।
धीर खोती जब कहर ढाती बनी वो कालवी ।

बेबसी कैसी, नदी क्यों राह भूली बावरी ।
पाट पे अट्टालिका है शूल झूली सांवरी ।।
अश्रु नैना में भरे ,दूषित करें जल पावनी ।
धीर खोती जब कहर ढाती बनी वो कालवी

नीर  सबको शुद्ध मिले, गंगा जभी निर्मल करें ।
आज सोचो क्यों नहीं हम, सोच को उज्वल करें ।।
भूल की मिलती सजा जीवन नहीं फिर सालवी ।
देखती कूड़ा बहाते नित्य क्रोधित जाह्नवी ।

खेत को सोना बनाती भर रही भंडार है ।
प्यास मानव का बुझा कर नीर में ठहराव है ।।
क्षोभ गंगा उर मनुज जब चाल चलते दानवी ।
देखती कूड़ा बहाते नित्य क्रोधित जाह्नवी ।।

नैन पट्टी बाँध कर क्यों स्वार्थ में डूबे सभी ।
शूल गंगा दिल लिए ही राह में बहती अभी ।।
हो हिया में स्वार्थ तो उर दुखी महि मानवी ।।
धीर खोती जब कहर ढाती बनी वो कालवी ।
 
प्रो उषा झा रेणु

Wednesday 30 June 2021

विरह राधा

राधा विकल, मन हो चली।
तिल तिल विरह, में वो जली।।

चितचोर ले, कर दिल गया ।
धेनू सखा, बिसरा गया ।।
टूटे सभी सपने सखा ।
छलिया छुपे नेहा दिखा।।
सूनी हुई गोकुल की गली।
राधा विकल मन हो चली ।

कान्हा छुपा, मथुरा नगर ।
दिल को चुरा, कर बेखबर  ।।
प्रीतम कहीं , बिसरा गए ।
नेहा लगा, बहला गए ।।
मुरझा गई मन की कली ।
राधा विकल मन हो चली ।
   
छलिया खुशी,भी ले गया ।
घनश्याम क्यों रूला  गया ।।
माधव कहाँ, किस का हुआ ।
सहना विरह, भारी हुआ ।।
आँखिया लड़ाई क्यों भली ?
राधा विकल मन हो चली ।।

कैसे जिए अब सांवरी ।
कितनी दुखी , है बावरी ।।
बंसी बजा ,अब मोहना ।
तुम क्यों भुला, हरि बोलना।।
केशव छले गोकुल लली ।
राधा विकल मन हो चली ।।

जीवन व्यर्थ, अब हो गए ।
मन संग वो ,लेकर गए ।।
दरशन नहीं, देते मुझे ।
तड़पा रहे , गिरधर मेरे ।।
 सत प्रीत में पीड़ा मिली ।
राधा विकल मन हो चली ।

ब्रजभूमि भी, सूना पड़ा ।
मायूस सब, कोई खड़ा ।
माधव हृदय , क्यों न पढ़ा ।
छल दोष सब,  ने ही मढा ।।
बस दंश पाई मनचली ।।
राथा विकल मन हो चली ।।

बेकार मन, माया में पड़ा ।
पट्टी खुली , दृग था पड़ा ।।
जा उद्धव अब ,तू ना सिखा।
झूठी नहीं ,आशा दिखा ।।
चाहत सदा सबको छली ।
राधा विकल मन हो चली ।।

उषा झा  

Sunday 27 June 2021

नैनन सजना के सपने

 


नैनों में तेरे ही सपने , दे दी दिल तुमको सजना ।
जीवन डगर संग ही चलना, तुम से दूर नहीं रहना ।।

दिवस खास देखो आये हैं, प्रणय निवेदन मैं करती ।
चलें दूर हो जहाँ सितारे,तुम से ही धड़कन चलती।।
नीले अंबर के नीचे मन,भर बातें करनी तुमसे ।
भार्या सजन बनी हूँ तेरी , जाने कितने युग युग से ।। 
सजन निभाना रीति प्रीति की, नहीं किसी से तुम डरना ।
जीवन डगर संग ही चलना, तुम से दूर नहीं रहना ।।

दिल के कोरे कागज पर अंकित, नाम वही सुमीत से ।
तुम्हें देखते ही दिल धड़का, तुम जुड़े हुए अतीत से  ।
सपने में एक सौम्य गंधर्व  , पुष्पक विमान पर आए ।
अनुबंध हमारा बरसों का , तभी एक दूजे को पाए।।
 मिले सनम गम या खुशी हमें,अब तो मिलकर है सहना।
जीवन डगर संग ही चलना , तुम से दूर नहीं रहना ।।

सौभाग्य फले फूले निशि दिन , स्वार्थ प्रीत से परे रहे ।
जग में अपना प्यार अमर हो , सत्य प्रेम बस टिके रहे ।
इतिहास रचे हम दीवाने , प्रेम अमित सब पढा करे ।
कायनात में रुह की दांस्ता,एक इबारत लिखा करे ।
मन मीत एक विनती सुन लो , भूल माफ सदैव करना ।

नैनों  में  तेरे  ही  सपने ,दे दी दिल तुझको सजना ।
जीवन डगर संग ही चलना,तुमसे दूर नहीं रहना ।।
_____________________________________
 प्रो उषा झा रेणु
  देहरादून 

Tuesday 22 June 2021

सरदार वल्लभ भाई पटेल

वल्लभ भाई पटेल सचमुच , जन जन के उर बसते हैं
साहस के पुतले जन्म लिए, गर्वित भारत सुत पे है।

धन्य गुजरात अंचल नाडियाड, लौह पुरुष अवतरित हुए ।
मातु लाडबा पितु झवेर के , महामानव संतति हुए।
वर्ष अठारह सौ पछत्तर व,अक्टूबर इकत्तीस गाये।
दिवस गौरवान्वित आज तलक, देखो खुद पर इतराए।।
आज तलक माला उनके ही , नाम के सभी जपते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल.....

जन्म हुआ भारत के भू पर , कर्मठ सुत अति उत्साही ।
दृढनिश्चयी सरदार पटेल , अदम्य केसरी साहसी ।।
देश भक्त वल्लभ भाई के , नीति अनोखी चर्चित है ।
बिखरी रियासतें जोड दिए ,हर भारतीय हर्षित है ।।
नीति नव राष्ट्र खडा इसलिए, नतमस्तक रहते हैं ।।
वल्लभ भाई पटेल.....।

सत्याग्रह आंदोलन में वो, गाँधी संग पग बढाए ।
स्वतंत्रता के दीप जलाए , वो लौह पुरूष कहलाए।।
वुद्धि विलक्षण के कारण ही, गृह मंत्री बने देश के।
चाल कुटनीति जब चली चित्त , हुए पेशवा भारत के।।
दृढ संकंल्प फौलादी जिगर , को शूर वीर कहते हैं।
वल्लभ भाई पटेल ...

कुरीति अन्यायों पर सदैव, कुठाराघात पटेल की ।
लड़े दीन दुखियों के वास्ते ,उर में फिकर सदा सबकी।।
गौरव गान कभी पटेल की , कम नहीं हिन्द में होगी ।
ऐसे वीर सेनानी पाकर , सबकी माता खुश होगी ।।
ऐसे महापुरुष युग युग तक, अमर कर्म से रहते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल ....

लिए क्रांति मशाल पटेल तब , दिखाए मग बन प्रणेता।
शौर्य कीर्ति फैलाए देश के , ऐसे धीरवान नेता ।।
राष्ट्र हीत सर्वोपरी यही , आदर्श मार्ग दिखलाए ।
सदचरित्र सत्कर्मो से यश, पताखा जग में लहराए।।
उस शूर वीर को भारतीय ,नमन हृदय से करते हैं ।
वल्लभ भाई पटेल सचमुच, जन जन के उर बसते हैं।


*उषा की कलम से*
देहरादून उत्तराखंड

बीता यौवन



इस यौवन की यही कहानी 
मन में आग नयन में पानी ।।

प्रणय भाव में नयन निमज्जित
लगता सब कुछ हुआ विसर्जित 
जीवन में ज्यूँ मौज रवानी 
इस यौवन की यही कहानी 
मन में आग नयन में ...।।

भीगे मन में प्रेम भरा है ।
मानस उपवन हरा भरा है ।
प्रिय की है यह चूनर धानी ।
मन में आग नयन में पानी ।।

जो है दूर याद आया है ।
इन्द्र धनुष मन में छाया है ।
साँस साँस में प्रिय की वाणी ।
इस यौवन की यही कहानी ।।

शलभ जले जब दीपक जलता  ।
प्रेम अग्नि से जीवन मिलता ।
प्रणय याण में घूमूँ क्षण क्षण ।
अर्पित प्रिय को मेरा कण कण ।

मैं भिक्षुक सी प्रिय है दानी ।
इस यौवन की यही कहानी ।।

*प्रो उषा झा रेणु*
  देहरादून

Saturday 12 June 2021

आस सजे श्रमजीवी के

विधा- ताटंक छंद
16 / 14 अंत तीन गुरु

आशाओं का संदेश लिए, नव प्रभात जब आएगा ।।
भर जाएगी झोली उनकी, सौगात शुभ्र लाएगा ।।

उषा काल धरणीधर देखो,मुदित खड़े वह रेतों में।
साँझ सवेरे धूल सने तन, श्वेद बहाते खेतों में ।।
करे परिश्रम सच हो सपने, नित गगन निहारे वो ।
दो बूँद बरस जा री मेघा ,नित भविष्य सँवारे वो ।।
खेतो में फसले लद जाए ,हृदय कमल खिल जाएगा ।
आशाओं का संदेश लिए , नव प्रभात जब आएगा ।।

कृषक दुखी है, व्यापारी, स्वार्थी भाव गिराता है ।
झूठे सपने भरे नयन में,क्यों मन को भरमाता है।।
सेठ, सरकार जब छल करता,श्रमजीवी बस रोता है ।
गुदड़ी सीकर वस्त्र पहनता,बीज खुशी का बोता है ।।
मोल परिश्रम का मिल जाए, गीत खुशी के गाएगा ।
आशाओं का संदेश लिए , नव प्रभात जब आएगा ।।

पूँजी नहीं यकीं हाथों पर , फिर भी खेत लहलहाते ।
अपना पीठ जलाते हलधर , मरु में सोना उपजाते ।।
फल फूल लदे हैं पेड़ो पर ,पशु पंछी भी मुस्काते ।।
मायूस मन दृग कोर भींगे, जग प्रतिपालक नीर बहाते ।।
लाभ योजनाओं के पहुँचे , नेहिल दीप जलाएगा ।।
भर जाएगी झोली उनकी , सौगात शुभ्र लाएगा ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून

जग प्रतिपालक नीर बहाते


Saturday 5 June 2021

नम चदरिया एहसासों की

विथा गीत - 16/ 14

 एहसासों से नम चदरिया ,चाँदनी रैन उदास है ।
बावरे नैन अब बिना पिया, बिखर  रहे सभी आस है।

कानन पुष्पित ऋतु राज खड़े , कामदेव को संग लिए।
धड़क रही है जवां धड़कनें, नूतन सपना नैन दिए।
फूली सरसों जब आशा की,  पोर पोर में नेह भरी ।
बासंती तन मन अरुणाई, सुरभित वसुधा हरी भरी ।।
बाट जोहती मैं विरहन बन, फीका लगे मधुमास है ।
एहसासों से नम...।।

पीले श्वेत वसन पहने हैं, निकल रही सभी छोरियाँ ।
कोकिल कंठ सुधा बरसे हैं, मंजीरा लिए टोलियाँ  ।।
 राग अनुराग पले  हृदय में , बसंत उतरे हैं अँगना । 
 लगे सुहावन दृश्य सभी तब, उन्मादित सजनी सजना ।
संग पिया अहो भाग उनके,मन में हास परिहास है ।।
एहसासों से नम चदरिया....

सुरम्य गगन इन्द्रधनु छाया ,चहके हृदय खग वृन्द का ।
मन आंगन है अब खिला खिला, चला बाण कामदेव का ।
रंग बिरंगे स्वप्न नयन है ,कब प्रियतम के भाग जगे ।
मधुरिम मधुमास द्वार आए ,प्यास प्रीत की हृदय पगे ।।
नित दिन नैना अब बहते हैं,  प्रीतम नहीं बहुपास हैं ।
एहसासों से नम ....

छटा निराली चहूँ ओर है, शुचि सौरभ से पुहुप लदे।
घायल उर है मदन चाप से, तोड़ दिए फिर भ्रमर हदें।
रंग उमंग पिय भरमाये ,  आकुल मन संताप भरे ।
आना जल्दी तुम  परदेशी , बसंत तब उल्लास भरे ।।
बैरी प्रीतम भूल गए जब, हृदय बहुत ही निराश है।

एहसासों से नम चदरिया, चाँदनी रैन उदास है।
बावरे नैन अब पिया बिना ,बिखर रहे सभी आस हैं।
प्रो उषा झा रेणु
देहरादून 

Saturday 29 May 2021

जब बिसराया गाँव को

शहर की चका चौंध भायी, गाँव को छोड़ गए सारे ।
ऐश में गेह भूल जाते ,मातु पितु पंथ बस निहारे।।

जहाँ ने घाव दिया गहरा,उसे कण कण को तरसाया ।
दुखी वह रोटी कपड़ा से, मिली ठोकर घर को आया ।।
मलिन मुख आँख धँसी उनकी ,चेहरे बन गए छुहारे ।
शहर की चका चौंध भायी , गाँव को छोड़ गए सारे ।।

जिन्दगी भीख माँग कटती, आपदा लील गई खुशियाँ ।
रोग परिणाम भयावह है, हुई गम में घायल दुनिया।।
विकल बेमोल जिन्दगी है, झरे नैन से नित्य धारे ।
ऐश में गेह भूल जाते , मातु पितु पंथ बस निहारे ।।

घड़ी मनहूस जगत आई, छीन कर साँस दिल दुखाते ।
क्षुब्ध मन आशंकित रहता , डोर अपनों से छुट जाते।।
फँसे जब लोग आपदा में , छा रहे नैन अंधियारे ।।
शहर की चका चौंध भायी , गाँव को छोड़ गए सारे ।।

विवश एकांत वास को जग, हर्ष अरु विषाद वो भूले ।
मौन स्तब्ध जिन्दगी ठहरी , नहीं वो सावन के झूले ।
आह आई न जगत में इस, बार वो मृदुल सी बहारे।
ऐश में गाँव भूल जाते , मातु पितु पंथ बस निहारे ।।

खत्म प्रभु अब ये दौर करो,आस के बीज धरा बो दो
रोग महामारी से आतप मन, रोग बीज को ईश रों दो ।
द्वार पर अतिथि सत्कार हो,प्रेम से नित चरण पखारें
ऐश में गाँव भूल जाते , मातु पितु पंथ बस निहारे ।।



प्रो उषा झा देणु
देहरादून

Thursday 27 May 2021

पीर नदी की


सागर से मिलने को बीहड़, डगर नदी बलखाती ।
सच करने को सपने वह तो, दर दर ठोकर खाती

राह कठिन संकल्प नदी हिय,उदधि मिलन बस मन में ।
पर्वत की बेटी शूल लिए ,बहती निर्जन वन में ।
बाँटे राही दुख सुख गर तो, खुश हो प्यास बुझाती ।।
सागर से मिलने को बीहड़ , डगर नदी बलखाती ।।

चोट शिला से जब जब खाती, शोर बहुत ही करती ।
पीर भरे उर गीत सुनाती,कल कल करती बहती ।।
सागर से मिलने के खातिर , हर दुख वह सह जाती ।
सच करने को सपने वह तो ,दर दर ठोकर खाती ।।

सींच खेत खलिहान मुदित वह , बिन नीर नदी रोती।
क्षुब्ध नदी दोहन से अपने ,अस्तित्व नित्य खोती ।।
प्रदुषित जल जलयान चलाया, बंधन बस तरसाती ।।
सच करने को सपने वह तो , दर- दर ठोकर खाती ।

अपने संग बहा ले जाती , पाप सभी के गंगा ।
घायल उर मल मूत्र डाल के ,लेते मानव पंगा ।
पन बिजली से सूखी नदिया, बूँद बूँद ललचाती ।
सागर से मिलने को बीहड़ , डगर नदी बलखाती

बाँध पोटली हिम्मत वाली, तटिनी चलती राहों में ।
बढ जाती परमार्थ कर पियु , सपन सजे बाँहों में ।।
ढोती संग जडी बूटी वह, सींच खेत हर्षाती।
सागर से मिलने को बीहड़ ,डगर नदी बलखाती ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून उत्तराखंड

रोम।रोम में राम विद्यमान हो

विथा - गीत

🌷रोम रोम में राम बस विद्यमान हो🌷

राम राज्य की कल्पना साकार हो,इस जगत में राम नाम का गुण गान हो ।
रोम रोम में राम बस विद्यमान हो, मेरे संग हर घडी कृपा निधान हो।।

राम सार्वभौम सृष्टि के वरदान है ।
राम अभिमान है महि के सम्मान है ।।
राम पुनीत प्रीति के बस आधार है ।
हर युग रघुकुल दिप्ति दीप दिनमान है ।
भक्ति निस्काम करूँ कर्म अपना करूँ ।
राम विनती सुनो उर शुचि भावना हो ।

रोम रोम में राम बस विद्यमान हो , मेरे संग हर घडी कृपा
निधान हो ....।

राम से सिर्फ आस और विश्वास है ।
दुखियों के भक्त वत्सल सदा दास है ।
राम नाम की महिमा अपरम्पार है ।
भक्तों पर नेह राम का कुछ खास है ।।
राम संस्कार में आचार अरु विचार में ।
हृदय में है आस्था पूर्ण साधना हो ।।

रोम रोम में राम बस विद्यमान हो , मेरे संग हर घड़ी कृपा निधान हो ।

राम सुर संगीत है मन के राग है ।
सबके उर में बसे प्रेम अनुराग है ।
राम नाम से ही पावन संसार है ।
राम जग बाग के मृदु पुष्प पराग है ।
उर उमंग उल्लास अरु अमृत धार है ।
नाम रटते रहो अधर पर मुस्कान हो ।

रोम रोम में राम बस विद्यमान हो , मेरे संग हर घडी कृपा
निधान हो ।

जग ज्योतिर्गमय राम दिव्य प्रकाश है ।
राम से समग्र वसुधा पर विलाश है।
विरक्त मोह से वह वैराग व त्याग है ।
पतझड जीवन में खिले गुल पलाश है ।।
राम कण कण में क्षण क्षण में व्याप्त दिखे ।
अधर पर सदैव राम शुभकामना हो

रोम रोम में राम बस विद्वमान हो , मेरे संग हर घडी कृपा
निधान हो ।

सत्य निष्ठा मर्यादा के प्रतिमान हैं ।
राम सद्भाव है सिर्फ क्षमादान है ।
जग जानते राम ईश के अवतार हैं ।।
सदियों से उर की बस यही याचना है।
राम राज्य की कल्पना साकार हो , राम का नित्य ही गुण गान हो ।

प्रो उषा झा रेणु
देहरादून 

सतरंगी सपने

विधा -छंद मुक्त
18/13
 दिवस पखेरू उड़ने को आतुर , देख मैं तो वहीं खड़ी ।
सोलह बरस की बाली उमर में, चितचोर से आँख लड़ी ।।

राग अनुराग हिय, प्रीत नयन में, सतरंगी सपने सजे ।
पोर पोर उमंग, लगी बहकने, मुदित निशि पियु देख लजे ।
चढा झील से नैनों का जादू ,धड़कन फिर बढ़ने लगी ।
छोड़ किताबें सजन पथ हेरती ,प्रेम अगन जलने लगी ।
तुम कहते पढ लिख बालिके चढो,उत्तुंग गिरि थाम छड़ी।
सोलह बरस की बाली उमर में, चितचोर से आँख लडी।

दिल का लगाना बड़ी बात नहीं, थाम कर जीवन भर ले,
हर प्रेमी को ये सामर्थ्य नहीं, शत प्रीत के पुष्प खिले ।
अधर मुस्कान मृदु सजन सजाये,सोच कर नयन गुलाबी ,
नैनों में वो मद भरी ख्वाहिशें, मुदित उर हुस्न शबाबी।
चाहत के रंग भरे जो उर में , लगी प्रीत की मृदु झड़ी ।।
सोलह बरस की बाली उमर में , चितचोर से आँख लड़ी ।

शनैः शनैः गुजर गए वक्त मृदुल,शुचित प्रेम हमारा है ।
देख मेंहदी कर में गाढ़ी है , सत्य प्यार तुम्हारा है।
स्मित स्नेहिल स्पर्श मुग्ध रोम रोम, सुरभित गात मेरा है।
युग युग से मिलने आती धरती, मन में आस तेरा है।
ख्वाबों की ताबीर लिए सूनी , सेज गुमसुम आज पड़ी ।
सोलह बरस की बाली उमर में , चितचोर से आँख लड़ी ।
प्रो उषा झा रेणु
देहरादून

Wednesday 26 May 2021

सावन अगिन लगाए

हृदय प्रीत से भरा सखी री, मेरे प्रिय परदेश सिधाए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

दमके दामिनी विकल निशीथ,मनुवा मोरा धड़क रहा है ।
आई कैसी रात सुहानी ,अंग अंग बस फड़क रहा है ।।
आओ सजन पास आ जाओ , कारी रैना मुझे डराए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

बागों में कोयलिया कूके , जियरा सजन प्रणय में भूले ।
सखियाँ मिलके कजरी गावे, पिया संग सब पींगे झूले ।।
मिलन पिपासा नदिया बाढ़े, नैनन बरबस नीर बहाए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

गोरे कर मेंहदी रची है, शुचि शृंगार पिय को रिझावे ।
खो गया चैन मोर हिया के,तुम बिन मुझको नींद न आवे।
आस चकोरी मिलन सखी री,आकुल नैना भर भर आए।
घनन घनन घन मेघा बरसे,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

जा रे बदरा अब जिय न जला,विरहा दंश लगे बहु भारी
ओ री पवन पियु को बुलाओ,किछु न भावे विरह की मारी।
आस हृदय के टूट रही है , मोर पिया घुरि देश न आए।
घनन घनन घन मेघा बरसे बैरी सावन अगिन लगाए

ज्यूँ ही पधारे पियु सखी री,मन आंगन में खुशियाँ बरसे ।।
सच हो सारे मोर सपनवां, प्रीत सुहावन उर में सरसे ।।
आलिंगन में सजन झुलाए ,उर के सारे दुख बिसराए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

*प्रो उषा झा रेणु*
मौलिक ( प्रकाशित )ऑ
देहरादून

Tuesday 25 May 2021

सबरी उर रघुनंदन

विधा - मोदक छंद
विधान - 4 ×भगन
गणावली  211 /4
211   211   211  211

व्याकुल नैन करे नित बंदन।
थे शबरी उर में रघुनंदन ।।

राम सिया मुख दर्शन हो कब।
पंथ निहार रही शबरी  अब ।।
जीवन श्री चरणों पर अर्पित ।
हो तप पूरण वो नित सोचत ।।
जन्म सुपावन हो हरि दर्शन ।
व्याकुल नैन करे नित बंदन ..।

राम सिया दृग देख पधारत।
आस भरे उर हर्षित नाचत।
भाव भरे हिय बैर चखावत  ।
प्रेम अनूप लगे मन गावत ।।
पाप मिटे करते मुख दर्शन ।
व्याकुल नैन करे नित बंदन..।

राम सिया भव बंधन काटत ।
मुग्ध जिया बस आज निहारत।।  
मोदित है मन  नैन जुड़ावत ।
हर्ष भरे, मन नीर  छिपावत ।
 राह दिखावत हैं दुखभंजन ।।
व्याकुल नैन करे नित बंदन.. ।

श्यामल रूप लगे मन भावन ।
ईश धरे पग शबरी घर पावन ।।
राम सिया जप के कटते दिन ।।
जन्म सुकारथ है अब भीलन ।
ज्यूँ रघुवीर बसे दृग अंजन ।।
व्याकुल नैन करे नित बंदन ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून उत्तराखं

यादें सुनहरी

गीत

स्मृति पट पर है याद घनेरी
बीत गए वो वक्त सुनहरी ।।

श्वासों के सरगम महकाते ।।
ओ पलछीन कौन भुला पाते ।
क्षण में मुस्कान सजा जाते ।
सपनों में उर सहला जाते ।।
डर डर जीती निशा अँधेरी ।
स्मृति पट पर है याद घनेरी ।।

विरहा के दिन गिन गिन कटते ।
तुम बिन प्रियवर रैन न सजते ।।
भूल बता दो तुम हरजाई ।।
मेरे हिस्से क्यों तन्हाई ।।
धड़कन की बजती रण भेरी ।

देख रही हूँ राह तुम्हारी ।
देखो आकर दशा हमारी ।।
छुपकर बैठे कहाँ बिहारी ।
नैन बहे हैं नित गिरिधारी ।
विरह वेदना क्षण क्षण घेरी।

ख्वाबों सा वो दिन था अपना।
जीवन लगता हर पल सपना ।।
मनुहार बिना उदास रैना ।
भूल गए हो क्यों कर मैना ।।
विकल जिन्दगी तुम बिन मेरी

स्मृति पटल पर है याद घनेरी
बीत गए वो वक्त सुनहरी ।।


*उषा की कलम से*
देहरादून

Monday 24 May 2021

बिन पिय विरही मन

गीत

स्मृति पट पर है याद घनेरी
बीत गए वो वक्त सुनहरी ।।

श्वासों के सरगम महकाते ।।
ओ पलछीन कौन भुला पाते ।
क्षण में मुस्कान सजा जाते ।
सपनों में उर सहला जाते ।।
डर डर जीती निशा अँधेरी ।
स्मृति पट पर है याद घनेरी ।।

विरहा के दिन गिन गिन कटते ।
तुम बिन प्रियवर रैन न सजते ।।
भूल बता दो तुम हरजाई ।।
मेरे हिस्से क्यों तन्हाई ।।
धड़कन की बजती रण भेरी ।

देख रही हूँ राह तुम्हारी ।
देखो आकर दशा हमारी ।।
छुपकर बैठे कहाँ बिहारी ।
नैन बहे हैं नित गिरिधारी ।
विरह वेदना क्षण क्षण घेरी।

ख्वाबों सा वो दिन था अपना।
जीवन लगता हर पल सपना ।।
मनुहार बिना उदास रैना ।
भूल गए हो क्यों कर मैना ।।
विकल जिन्दगी तुम बिन मेरी

स्मृति पटल पर है याद घनेरी
बीत गए वो वक्त सुनहरी ।।


*उषा की कलम से*
देहरादून

तीज मनभावन

विधा - रजनी छंद

2122  2122   2122  2
तीज में साजन नहीं आए हिया खोये ।
बाग में झूले सखी पलपल हिया रोये।

मेंहदी चूड़ी पुकारे देख पिय तुझको ।
नैन से कजरा बहे सुध-बुध नहीं  मुझको  ।
माँ भवानी पूर्ण कर वर, माथ लाली हो । 
माँ खुशी देना, नहीं इक रैन काली हो ।
फूल दामन में खिले उर प्रीत संजोये ।।
  तीज में साजन .....

पग महावर ,आलता मैंने रचाया है ।
माथ बिन्दी नाक पे नथुनी सजाया  है।
ओढ़ ली हूँ प्रीत की  चुनरी पिया देखो ।
बूँद छमछम गात पुलकित जिया देखो।
भानु पा दमके उषा सपना नया बोये  ।।
बाग में झूले सखी .....

जिन्दगी की राह साजन नित कटे हँसके ।।
प्यार अरु विश्वास से जीवन सदा महके
गोद में नव चाँद से जगमग सितारे हो ।
भूल हो सब माफ पियु प्यारे हमारे हो ।।
भावना निश्छल रहे उर सोम शुचि धोये ।

उषा झा देहरादून
सादर समीक्षार्थ 🌼🌺

नमन सृष्टि की निर्मात्री को

🔹 *विधान गोपी छंद*🔹
🍙 यह मात्रिक छन्द है।
🍙 चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
🍙 प्रति चरण १५ मात्रा।
🍙 आदि में त्रिकल, अन्त गुरु /वाचिक
🍙 चरणान्त गुरु गुरु श्रेष्ठ
           
3+ 2 3 + 3 4
नेह शुचि शीतल है माता ।
रूप निर्मल मन को भाता ।।

गर्भ में नव अंकुर बोती ।
नींद गहरी माँ कब सोती ?
देख सुत मुख सुध बुध खोती ।।
भूल अस्तित्व सुखी होती ।
देव महिमा माँ की गाता ।
नेह शुचि शीतल है माता ।।

दौड़ ती सुन क्रदंन मेरा ।
प्रथम तुमको बंदन मेरा ।।
हृदय माँ चंदन है तेरा ।
मोद आँचल मातु बसेरा ।।
छाँव में सुत हर सुख पाता ।
नेह शुचि शीतल है माता ।।

पुत्र माँ पितु कहना मानो ।
मोल ममता जग पहचानो ।।
जिन्दगी जो नित्य सँवारी ।।
जिन्दगी उसकी अँधियारी ।
आस टूटी भाग्य विधाता ।।
नेह शुचि शीतल है माता ।

कर्म संतान नहीं सच्चे ।
फेर लेते मुख क्यों बच्चे ?
नीर नित अखियाँ भींगोती ।
सृष्टि की निर्मात्री रोती ।।
तीर उर पर पूत चलाता ।।
नेह शुचि शीतल है माता ।।
रूप निर्मल मन को भाता ।

कुक्षि में जग को पनपाती ।
कर्म से माँ सृष्टि सजाती ।।
देव की माँ बन मुस्काती ।
कोख में है अक्षुण थाती ।
पीर पर दृग कोर भिगाता ।।
रूप निर्मल मन को भाता ।

प्रो उषा झा रेणु

Sunday 16 May 2021

जानकी संग राम मंदिर बसे

विधा - शुद्ध गीता

गालगागा गालगागा गालगागा गालगाल
2122  2122  2122  2121

राम मंदिर बन गया है ,पावनी कर मंत्र जाप ।
धर्म की ही जीत होती, प्रभु कृपा से नष्ट पाप ।।


राम जी है जानकी के ,संग मंदिर में विराज ।
देख कर सब मुग्ध नैना, साधना जो पूर्ण आज ।।
घात का बदला लिए हैं, देख लो रघुनाथ आप ।
राम मंदिर बन गया है , पावनी कर मंत्र जाप ।।

संत हर्षित स्वप्न पूरे ,आ गए हैं गेह राम ।
जीत भक्तों की हुई सच ,कर्म के ये दिव्य दाम।।
भक्त आनन पे परम सुख, शांति राघव के प्रताप ।
राम मंदिर बन गया है , पावनी कर मंत्र जाप ।

सत्य पथ काँटे मिले रख, मत हिया में आज दाह ।
रैन चाहे हो घनेरी,  राम से या शूल राह ,
धीर राघव सा हिया में, वो नहीं करते प्रलाप ।
राम मंदिर बन गया है , पावनी कर मंत्र जाप ।।

दुष्ट को मिलती सजा है , मूढ सुन यह बात सत्य ।
द्वेष में मत लिप्त होना , अंत दुर्गत सच मान कथ्य ।।
यूँ सुधा वसुधा झरे हर , कंठ मधुरिम हो अलाप ।।
राम मंदिर बन गया है , पावनी कर मंत्र  जाप...

उषा झा देहरादून

Saturday 15 May 2021

हमनवा हूँ मैं

मिसरा - नहीं पूछो कहाँ हूँ मैं जहाँ तुम हो वहाँ हूँ मैं 
पूजा रानी सिंह 

काफिया - आ 
रदीफ - हूँ मैं
1222 / 4
मतला 

बनी हर जन्म महबूबा सनम सुन हमनवा हूँ मैं ।।
भुला दो तुम मुझे बेशक सुनो तेरी बला हूँ मैं ।।

बड़ी आशा भरी नजरे निहारे राह अब तेरी ।
चले आओ सनम अब तो बता क्या बेवफा हूँ मैं ।
       
हमारे  संग जब हो तुम  खिलेंगे फूल गुलशन में
बडी नेमत खुदा बख्शी  सुनो मैं  मरहवा हूँ मैं।।

बता क्यों होश गुम तेरा लुभाया रूप क्या मेरा
यही समझो  सनम सबसे  बडी ही अलहदा हूँ मैं  ।।

मुह्ब्बत जब छुपाते तुम बडी मासूम लगते हो  ।
सुनो हर राज से पर्दा हटाती जलजला हूँ मैं  ।।

 बडी अरमान से घर को सजाया टूट गया रिश्ता ।
 नहीं शिकवा किसी से आज किस्मत से खफा हूँ मैं ।

 फिसल सब वक्त जाता जब तलक हमको समझ आता ।
  उषा डर ये लगे अब इस जहाँ में इक सजा हूँ मैं   ।।

*प्रो उषा झा रेणु*
   देहरादून

Sunday 9 May 2021

सीता हरण

212/ 6
धुन जिन्दगी की लड़ी

भाग्य क्यों बाम मेरे हुए, नित्य ही जानकी सोचती।
दुष्ट लंकेश क्यों हर लिए, जिन्दगी अब नहीं मोहती ।

बिन पिया के नहीं जी लगे,अब विरह रैन कैसे कटे।
दिन महीने हुए खत्म पिय, राम के नाम नित उर रटे ।।
स्वप्न में आह मनवा भरे, रागिनी भी तृखा घोलती ।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए, नित्य ही जानकी सोचती ।।

खो गए वो मिलन के दिवस कब कमल नैन दर्शनकरे।
चाँद से बात कितनी करें चाँदनी भी नहीं दुख हरे ।।
बस तड़पती विरहणी नहीं मुख सिया शूल से खोलती ।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

पुष्प के वाटिका में बहे नैन मन धीर सीता नहीं ।
पति विरह दंड भारी मिले आज संदेश मीता सही।।
कौन विधि राम लंका पधारे विरह दंश बस भोगती।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

घुल रही पीर से बावरी, ओह क्या काल के खेल है ?
कौन निर्जन विटप दे सहारा नहीं, आस उर ढेल है ?
रात काली डराती नहीं नींद दृग, दुख किसे बोलती।
भाग्य क्यों बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

शूल उर में सदा राह प्रिय राम के नित निहारे सिया ।
धीर भी हो गये खत्म बस सोचती क्यों भुलाये पिया।
वाटिका रो रही मातु, हनुमान दी अंगुठी राम की ।
राम के दूत हनुमंत आए हरे पीर माँ जानकी ।।

सोच प्रभु दूत सीता बँधी आस, पिय याद में डोलती ।
भाग्य क्यो बाम मेरे हुए नित्य ही जानकी सोचती ।।

*उषा की कलम से*
देहरादून

Friday 7 May 2021

शूल हरो भोले भंडारी

विधा - *वीर/आल्हा* *छंद* (गीत)

आओ भोले भंडारी अब, शूल हरो जल्दी संसार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।

बूँढी अँखियाँ बाँट जोहती, अस्पताल जबसे गया पूत ।
अर्धांगिनी अमर सुहाग को , बाँध रही पति रक्षा सूत।
दुख की छाई घनघोर घटा ,स्तब्ध हृदय नित हाहाकार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।

छीन गई है साँसे अनगिन,कौन बँधाए किसको धीर ?
जब छुट रहे साथ अपनों के ,घायल वक्ष पर चुभे तीर ।।
मूक मनुज इस त्राहिमाम से,लावारिस लाशें अंबार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।।

आशा की अब बाँध पोटली,बाँटो हर घर में मुस्कान।
देकर नवल दिलाशा साथी,मानवता का रख दो शान ।।
चाहे प्रकृति चोट दे कितनी,नहीं मानना कोई हार।
घर घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।

कहर महामारी ढाता है , समय बड़ा ही प्रतिकूल ।
हिम्मत को हथियार बनाना, फिर आ रहा वक्त अनुकूल ।।
जीवन जंग जीत साहस से , बुजदिल पार करे मझधार ।
घर -घर व्याकुल आभास हृदय,आलय के प्रियजन बीमार।

आओ भोले भंडारी अब, शूल हरो जल्दी संसार ।।

*प्रो उषा झा रेणु*
सर्वाथिकार सुरक्षित
देहरादून

मनभावन उपहार

विधा - हंसगति छंद ( मात्रिक)
20 मात्रा
 11/9 पर यति

➖यति से पहले 21 यति के बाद
त्रिकल ।

मन भावन उपहार ,शुचि मिलन सजना ।
सावन आये द्वार, विलग मत रखना ।।
       
जीवन तुमको सौंप ,मुदित उर मेरा  ।
आनंदित है गेह , लगे पियु फेरा ।।
पावन अपना प्रीत, युगो उर डेरा ।
 साजन सच्चा मीत , स्वप्न दृग घेरा ।
बरसे छम छम मेह, तुम्हीं पर मरना
सावन आये द्वार , विलग मत रखना ।

मुश्किल में भी साथ ,सदा तुम देना ।
नैया हो मझधार , थाम कर लेना ।।
भोली हूँ मैं भूल , माफ तुम करना ।
 प्रियवर मेरे आप , हृदय में रहना ।।
  सूना लगता गेह , कहाँ हो ललना ।
मन भावन उपहार,शुचि मिलन सजना ।।

आज तलक उर याद , प्रणय की रैना ।
कम्पित है मम गात , जाग ते नैना ।
शुचित वरदान प्रेम , पुनीत हमारा ।।
रख ली हूँ संभाल , सौगात प्यारा ।।
पुलकित जीवन शाम , हर्ष नित भरना ।।
मन भावन उपहार , शुचि मिलन सजना ।।

लाली मेरी माँग , सदा सजी रहे ।
पायल बिछुआ पाँव , मधुर प्रीत गहे ।।
अंजन अलकित नैन , नेह रस छलके ।
कुंतल कजरा डाल , हृदय कुँज महके ।।
प्रीतम भर लो बाँह , मोद मृदु बहना ।।
मन भावन उपहार , शुचि मिलन सजना ।



प्रो उषा झा रेणु
देहरादून

यादें गाँव की


 खोयी *मैं* भूली बिसरी यादों में ।
  दादी दिख जाती पूजा करती   ,
 तुलसी वृक्ष शुचि उस आंगन में ।।
दीये की कतारें झिल मिल करती,
नित दिन तुलसी चौरा संध्या में ।

  दलान पर मंदिर के प्रांगन खड़ा,
  बूढ़ा बरगद ममत्व लुटाये बरसों से।
  चलती गाँव की चौपाल वहीं ।
 आपस में बच्चे बूढे गपियाते ।
  चुपके से लेट जाते पशु वहीं  ।।
 भाँति भाँति के पंछी आश्रय पाते,
शीतल शुद्ध छाँव बरगद लुटाते ।
शुचित वायु सबके प्राण बचाते ।।
खेलते लुका छुपी हम बच्चे वहीं।।

बाड़ में  नीम के पौधे लगे थे ।
दादा जी कहते देख डाॅ पौधे  ।।
होते अंग अंग इनके गुणकारी ।
 करो नमन सब कोई अब इनको ,
 छाँव में इनके तनिक सुस्ता लो ।।
 
कट गए वृक्ष,अब चौपाल कहाँ !
कमरों में हुए बंद सब ए सी में ।।
 भटक रहे पंछी लगाए नीड कहाँ
 तिनका ले घुमे कंक्रीट के भीड में।
  तृषित मन लौट रहे अंजान देश में

  प्रो उषा झा रेणु
   देहरादून उत्तराखंड़

Saturday 10 April 2021

फागुन गीत

विषय - फागुन

अली कली मदहोश हुए हैं,प्रीत पगी मन फगुनाई।
मन विभोर खोये सपनों में ,चूनर पूर्वा फहराई ।

खिलने लगे पलास सेमल , धरा गगन है सिंदूरी ।
नैन बिछे प्रिय के आगत में , सही नहीं जाए दूरी ।।
विरह रागिनी पुहू छेड़ती, विरही अँखिया तरसाई ।
अली कली मदहोश हुए हैं , चूनर पूर्वा फहराई ।

मन मलंग अनकही प्यास है, मुखर प्रणय उर मतवाले ।
भावों कि बिसात बिछी जब, खुले हृदय के फिर ताले ।।
रंगों से अच्छादित नयना ,महि पर यौवन गदराई ।।
अली कली मदहोश हुए हैं ,प्रीत पगी मन फगुनाई ।

होली की रंगीनी देकर ,धमक ऋतु राज पुलकाते ।
वृंत अनावृत तीर चले उर, दिवाने को नित लुभाते ।।
पशु पंछी मन पुलक रहे हैं , लदी बौर शुचि अमराई ।
मन विभोर खोये सपनो में , चूनर पूर्वा फहराई ।।

उड़ने लगी गुलाल मुग्ध जगत , राधे कृष्ण अनुकूल है
मन मधु राग थाप ठोलक की , उड़े प्रिया के दुकूल है।
मधुबन में भौवरें का फेरा , कलियाँ ने ली अँगड़ाई ।
मन विभोर खोये सपनों में , चूनर पूर्वा फहराई ।।

प्रो उषा झा 'रेणु'

Thursday 8 April 2021

मुग्ध मन दुलारी में

सार ललित छंद

कोमल कोमल फूल लगे हैं, देखो फुलवारी में ।
खिली कली ममता के आँगन,मुग्ध मन दुलारी में ।।

रंग बिरंगे बाग रहे बस , देख भाल करना है ।
पंख कली के बड़े सुकोमल, उपवन का गहना है ।।
कुत्सित मधुकर दूर रहे तब , महके हर क्यारी में ।
कोमल कोमल फूल लगे हैं, देखो फुलवारी में ।

बुरी निगाहें कलियों पर हो, तो मिले दंड भारी ।
मसल नहीं डाले दुष्ट कभी, करना पहरेदारी ।।
मोहित है गुलशन बचपन के, निशि दिन किलकारी में ।
ममता के आँगन खिली कली , मुग्ध मन दुलारी में ।।

तितली अलि का फेरा गुल में ,मन अटखेलियों को।।
मृण्मयी नयन की प्यास बुझी , चूम के पंखुड़ियों को । पुहुप जग को सौरभ बाँटने, की अब तैयारी में ।।
कोमल कोमल फूल खिले हैं , देखो फुलवारी में ।

जग बगिया की शान कली है, नेह उन्हें बस बाँटो ।
रूप दिवाने पथ भटके जो,उसके पर अब काटो ।।
सुमन सुवासित वसुधा तब हो, मधु पराग प्यारी में ।।
खिली कली ममता के आँगन, मुग्ध मन दुलारी में।।

मोदित कलियाँ चटके निशि दिन, गुल सिंचित करना है ।
बजे नुपुर छन छन छन पग में ,हृदय भरे रसना है ।।
उड़े तितलियों के दुकूल मृदु , लगती शुचि न्यारी है ।

कोमल कोमल फूल खिले हैं , देखो फुलवारी में ।
खिली कली ममता के आंगन , मुग्ध मन दुलारी में ।।
*उषा की कलम से
सर्वाधिकार सुरक्षित 

सम्मोहन प्रियतम का

नूतन चाहत हृदय सँजोये ,प्रणय रंग संसार ।
स्वप्न सजा कर इन नैनों को, करे सजन उपकार ।।
प्रेम पान को तृषित अधर है, बजते उर के तार ।
तट को तोड नदी करती है , सागर से मनुहार ।।

प्रमुदित तन मन प्रणय मिलन को, हो जीवन साकार ।
एक डोर से बँधे हुए दिल, सत्य प्रेम आधार ।।
बीज प्रेम के लगी पनपने ,सिंचित प्रणयित नीर ।
महि पर पुष्पित नेह वाटिका, बिखरे कण कण हीर।

कुंचित अलको में पिय खोये, सम्मोहन आगार ।
कलित रूपहली ओढ चूनर,पनघट बैठी नार ।।
सजल नयन के अवगुंठन में, छाये हृदय बहार ।।
ललित उरोजों से मन रसना ,चाहे मृदु अभिसार ।

रस चखने को मधुप कली से,मांगे शुचि अधिकार ।
मधुबन गूँजे मधुप दिवाना, मुखर राग दरबार ।।
हृदय विलोचन बस झूम रहा, बजे मृदुल झंकार ।
प्यासी अखियाँ ढूँढ रही है, प्रेम मिलन तैयार ।।

पिया चकित से देखे सजनी, विमल रूप शृंगार ।
चंचल हिरनी भरी कुँलाचे , वन में रास विहार ।।
नाचे गाये मन मोर जभी , पगे हृदय में प्यार।
फैली आभा प्रेम कहानी, सात समुन्दर पार ।

*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून  

Sunday 14 March 2021

दुल्हन सी वसुन्धरा

विधा - ताटंक छंद
16 / 14
25.02.2021

दुल्हन सी दिखती है वसुधा,रोम रोम को महकाया ।
चटकी कलियाँ सुरभित मधुबन ,चख पराग अलि बौराया।

रुनझुन रुनझुन बोल अमिय फिर ,कानों में मधुरस घोला ।
मीठी सी अँगडाई लेकर , नयना ने भी पट खोला ।।
शीतल चंदन मलय पवन है, उर्जित नव संचार देखो ।
मधुरिम बेला उषा काल की, मनुज नित्य दिव्य परेखो ।।
छिटक रही हजारों रश्मियाँ , दिवेश नव विहान लाया ।

हरी भरी हो अब वसुन्धरा ,नहीं भरी हो घातों से ।
रहे मुदित मन सदैव वसुधा, खिले हृदय बरसातों से।।
ऊँची ऊँची बनी मिनारे , काटे बाग बगीचे हैं ।
नाम जपे मानव विकास के ,अखियाँ अपनी मीचें हैं।।
खुद के कर्मों से आकुल नर, मेघा को जब लौटाया ।
चटकी कलियाँ ....

छुपे मेह हैं ऋतु बदल रही, सूखी ताल तलैया है ।
वृक्ष विहिन धरती नीड़ बिना,अब तो दुखी चिरैया है ।।
लाना है जग में खुशिहाली, अब वृक्ष लगाओ भाई ।।
बरसेगी बदरा श्रमजीवी, मुख हर्ष सजाओ भाई ।
मृदु स्पर्श मृदा की पाकर फिर, नूतन अंकुर पनपाया ।
दुल्हन सी दिखती है वसुधा ,रोम रोम को महकाया ।

तरु लता नवल किसलय पाये, आज वल्लरी बहक रही ।
वृक्ष बने नव पौध सींच कर ,कली कुंज में चहक रही ।।
झम झम बरसा बरसेगी जब, बीज खेत में पनपेगी।
ऋतु रानी जब जब रूठेगी, पुनि धरनी नीर बहेगी ।।
महि वृक्ष विहिन मेघा लौटी , शजर छाँव दृग तरसाया ।।
चटकी कलियाँ सुरभित मधुबन,चख पराग अलि बौराया।

दुल्हन सी दिखती है वसुधा, रोम रोम को महकाया ।

प्रो उषा झा 'रेणु'
देहरादून

कश्मीर की खुशहाली

कश्मीर की खुशहाली
16/14(कुकुभ छंद)

देख स्वर्ग सम्मोहित नयना ,कश्मीर शान वसुधा की।
सेब लदे बागों में बैठी , सजी बैंच कप कहुआ की ।।

नयनों में सतरंगी सपने, लगते सब थे अपनों से ।
नित दिन महफिल कारपेट पर ,चमन सजे मुस्कानों से।
मुख दूध बादाम से धोते , डल में नित बत्तख डोले ।।
हिरण फुदकते जब हौले से, मुदित हृदय भी पट खोले।
प्रेम सुधा बरसे कण कण में, केसरी रूप संध्या की ।।
देख स्वर्ग सम्मोहित नयना...

गूँज रही संगीत कान में , झीलों के शोरों से ।
हरियाली से अलंकृत मेरु , सुरभित वन फूलों से ।।
सुन्दर धरती कलुषित कर दी, गेह जलाया स्वार्थी ने।
केसर बाग लहू की होली, खेली कौन मनचलों ने ।।
लिफाफे में पैगाम आता , तस्करि हाथी दाँतों की ।
देख स्वर्ग सम्मोहित...

 मुरझाये से फूल बाग में,सड़ी झील में मछली है।
दुष्टों से जीवन दहशत में , झुका रहा झंडा बहसी ।।
बैठी गिटार लिए बाग में, वह लड़की डरी डरी सी
रौंद रहे बेल अंगूर के , क्यों कर मनुजता छुपी सी।
बंदुक के नोक पर जिन्दगी , हर घर में ताला लटकी।
देख स्वर्ग सम्मोहित......

ऋषि मुनि की यह भू पावन है , जंगल में जड़ी भरी है।
राजा महराजा से शाषित, इनकी भरी तिजोरी है।।
हरि भरी रहे कश्मीर सदा , चंदन सी महके वादी ।
चाँद प्रकाशित करे नीड़ को,,संतरा न हो वरवादी ।।
प्रश्न चिन्ह् क्यों लगा धर्म पर?हो बात हस्तकरघाँ की।
देख स्वर्ग सम्मोहित...

निर्यात ट्रक में फल मेवा हो , सुखी रहे अब हर कोई।
बच्चे स्कूल ड्रेस में गाये ,वायलिन पर नन्हीं खोई ।
खुली रहे सब घर की खिडकी,बिन डर एक्समस मनाए ।
पीले ,नीले हरे गुलाबी, सब होली ईद मनाए ।।
बिना कश्मीर देश शून्य है ,यह तो जान हिन्दुस्तां की
देख स्वर्ग सम्मोहित नयना , शान कश्मीर वसुधा की।

उषा झा स्वरचित

Wednesday 3 March 2021

नवल पर लगे नारी को

विधा-गीत

बेडियाँ तोड़ ली नारी ने,घर के चौखट से निकल रही।
नया ज़माना देखो आया, आदत अपनी वो बदल रही ।

आंगन में खिल गई कली जब,उर मुस्काया मातु पिता का छुई मुई सी मासूम नन्हीं, मैया लगाती नजर टीका ।।
देखो शौक लाडली के अब,,खेलती है जूड़ो करांटे ।
पढ़ने में होशियार इतनी ,बेटों के बिटिया कान काटे ।।

 भविष्य के फैसले खुद करती,नये युग संग परी चल रही ।
नया ज़माना देखो आया ...

खोल रही अपनी हथकड़ियाँ,,नवल पंख लग गए परों में ।
अब जुल्मों सितम नहीं सहेगी,क्यों अबला बन रहे घरों में।
आज घर आफिस सँभाल रही,,निभाती सभी जिम्मेदारी।
करना अपमान न नर इनका,,सृष्टि की अनोखी भेंट नारी।

नर को टक्कर देने, खुद ही,,अब वो मैदान में उतर रही।
नया ज़माना देखो आया ...।

  मर्यादा सीमा को भूली ,,करती अनदेखी सुनीति की ।
  आजादी का जश्न मनाती ,,जान बूझ के रास्ता भटकी।।
  बदल रही रंग ढंग नारी ,,,चढ़ा नशा नये बदलाव का ।
  धुम्रपान मद्यपान भाता, लानत है ऐसी आदत का।

   क्या संदेश पूत को देगी, आधुनिकता में तुम ढल रही
   नया ज़माना देखो आया, आदत अपनी सब बदल  रही
 *प्रो उषा झा रेणु*

पलायन

विधा - राधे श्यामी
16 / 16
 अब बंद पड़े गेह गाँह के,बस सूनी अँखिया राह तके ।
 जब खबर नहीं लेते कोई , नम नयना निशि दिन तब छलके 
था जिनपर अभिमान गाँव को, पढ लिखकर नाम बढाएगा ।
पर पता नहीं था नव पीढी ,ऐसे उनको रूलाएगा ।।

अपने शोणित से नित सींचा , सोचा  पौध लहलहाएगा ।
वो उन्नत उर्वर बीज बने , मन भी सदा खिलखिलाएगा।
 देखो आँधी आई कैसी , धूमिल सपने अब नैनों के  ।
अब लगे मरुस्थल गाँव सभी ,है दर पे झाड़ बबूलों के ।।

 सब श्वेद बहाते मिलजुल के ,बहते नेह त्याग का झरना ।।
 बोते सपने सब खेतों में,चहका करता था अँगना ।।
 हर निवाला बाँट के खाते,बस थोड़े में किया गुजारा ।
 मुट्ठी भर रुपये से बापू , उनके किस्मत सदा सँवारा ।।

मीठे पानी भरे कुँआ में , खग पंछी प्यास बुझाते थे ।
अलबेली सुन्दर नार सजी , लगते पनघट पर मेला थे।
देखो जलकुँभी से भरे कुँआ, उसमें  मेढक ही रहते हैं ।
प्रतिपल निरिह तके राही को ,उर घायल  से लगते हैं ।

आते न पुत्र भूले भटके, बाबा गम की प्याली सटके हैं ।
उजड़े खेत खलिहान सारे, घर घर अब ताले लटके हैं ।।
बीमारी लगी पलायन की,अब तो बूढा बरगद रोता ।
भूतों का डेरा गाँव बना,पगड़ंडी पर गीदड़ सोता ।।


उषा झा स्वरचित
देहरादून उत्तराखंड

Monday 1 March 2021

विरांगना

विधा - चामर छंद
212 121 212 121 212
सिंहनी निर्भीक, केसरी ध्वजा निहारती ।
युद्ध भू सुहाग चिन्ह कंठ हार धारती ।
शंख नाद ओज के निनाद शस्यश्यामला ।
कर्मयोगिनी पुकार राष्ट्र हीत निर्मला ।

वेदमंत्र वास था हिया सुविज्ञ विश्व का
राष्ट्र प्रेम का उबाल जाँ निसार कर्णिका ।
पापनाशिनी कटार हस्त धार भैरवी ।
माँ प्रतंत्रता हटे कराल शौर्य गौरवी ।

रूप है विराट भारती दिखा सुपंथ दी।
पावनी महान भाव दिव्य राष्ट्र तंत दी ।
दुष्ट रौंद युद्ध जीत लक्ष्य साध कालवी।
मौत से डरो नहीं करो सुकर्म मानवी।

वीरता विशाल आन बान शान भारती
शूर वीर शौर्य गीत को सुना हुकांरती।
थाम ली विरांगना ध्वजा, निसार प्राण को ।
देश धर्म है,करो सुदान मातु शान को।

सत्य पंथ पे चली बढी मशाल हाथ ले ।
देश प्रेम है बडा चली समूह साथ ले ।
ध्यान लक्ष्य पे टिका सुवीर राज त्याग की ।
दुष्ट नाश को बहा प्रवीर रक्त पातकी ।

*प्रो उषा झा 'रेणू'*
देहरादून

कर्णिका

Thursday 25 February 2021

दिल्लगी कर ली

काफिया - ई
रदीफ - कर ली
विधा - गजल
2122 1212 22/112
मीत से थोड़ी' दिल्लगी कर ली ।
जिन्दगी यार फिर दुखी कर ली।

ठोकरों ने मुझे दिया हिम्मत ।
मंजिले हमसे दोस्ती' कर ली ।।

बात कोई अगर लगी दिल पर ।
जख्म पर फिर दवा तभी कर ली ।।

आरजू थी हसीन दिलबर हो ।।
जुस्तजू में 'आँखे नमी कर ली ।

शौक ऊँचे मकाम की थी' उसे ।
जब लगी चोट खुदकशी कर ली ।।

प्रेम नफरत स्वभाव में आया ।
सोच जैसी भी' जिस घडी कर ली ।।

ख्वाब पूरा नहीं किया रब ने ।
कुफ्र दिल में तभी घनी कर ली ।।

देश के संग क्यों किया धोखा ।
हसरते पाजी' क्यों बड़ी कर ली।

हाल देखो उषा जहाँ के अब ।
डूबती शाम सरवरी कर ली ।

*उषा की कलम से*
देहरादून



Monday 22 February 2021

मधुमय बसंत

विषय - बसंत
विधा गीत
दिन - सोमवार
दिनांक - 21.02.2021

उतर आया बसंत मोरे अँगना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।
विरह वेदना भारी, छलके नयना ।।

घर पिछुआरे नित कूके कोयलिया ।
सबको मधुरिम गान सुनाती बगिया ।।
मुखरित है डाली डाली शुचि कलियाँ ।
लदे बोर पेड़ो में नव नव फलियाँ ।।
सौरभ पीकर बहके अलि तितलियाँ ।
पिय मग प्रीत छलकाती अखियाँ ।।
फिर से खिले सूर्ख गुलाब है अँगना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।।

विरह वेदना भारी छलके नयना ...।
उतर आया बसंत ....

मधुबन रंग बिरंगे पुष्प निहारे
रोम रोम सुरभित कर रही बहारें ।।
लागे धरती पे यौवन खिला खिला ।
विषाद विहिन हृदय अब नहीं गिला ।
गेहूँ सरसों खेत करे गल बहियाँ ।
मदहोश भ्रमर छुपे देखो पँखुडियाँ ।।
चाहत सदैव उर प्रीतम पर मिटना
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत म

बिहुँसकर चली मंद मंद पुरवैया ।
मलय संग ढलके सुधियों का आँचल।।
पिहू पिहू बोले पपिहरा बाग में ।
प्यासे नैन प्रियतम की बस लाग में ।।
राग रागिनी छेड़ रही मन वीणा ।
सजनी सजना के प्रेम चैन छीना ।।
घोल रहे बस जीवन में बहु रसना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत मोरे अँगना ।

शूल संग फिर भी गुलाब मुस्काता
मिटकर भी जगत में खुशबू लुटाता ।
हमें सीखना गुलाब सा प्रेम लुटाना ,
दो पल के जीवन से खुशी चुराना ।।
मधुमय यह मधुमास नहीं उर छलना
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत मोरे अँगना ।

उषा की कलम से
देहरादून 

Sunday 21 February 2021

मृदु राग अरु ज्ञान दे शारदे

दिग्पाल छंद मृदु गति

*शारदे वंदन

221 212 2 221 2122
हे हंसवाहिनी शुभफलदायिनी सुविमले ।
पद्मासना लिए पुस्तक शोभती सुकमले ।
संसार गह महाश्वेता रूप बुद्धि विद्या ।
जो शूर वीर पाते हैं शौर्य शक्ति आद्या ।

माँ हस्त शुचि कमंडलु ,गल हार काँचमणि है।
सौम्या निरन्जना से सौभाग्य भी अक्षुण है ।
सुरवंदिता विशालाक्षी हर गेह में पधारो ।
हे शास्त्ररूपिणी पद्माक्षी जगत सवारो ।।

माँ शारदा दया कर मम ज्ञान दो सुमाता ।
तेरी कृपा मिले तो सम्मान काव्य पाता ।।
है आस माँ तुम्हीं से बस लाज आप रखना।
आई शरण तुम्हारी बस नेह मातु करना ।।

वीणा जभी बजाती झंकृत हृदय सुरों से ।
करती अराधना माँ आशीष दो करों से ।।
भंडार प्यार का तो तुझमें भरा भवानी ।
संगीत सुर मयी दो वरदान आप दानी ।।

मृदु राग भर कलानिधि मम कंठ हो पुनीता ।
वागीश ने कृपा की वो रच सके सुगीता ।।
पदकंज आज दासी, ले आस माँ पड़ी है ।
माता पुकार सुन लो दृग नीर की लड़ी है ।

हो जीव मुक्त ईर्ष्या से ज्ञान चक्षु खोलो ।
दो विश्व भव्यता वीणा पाणि प्रीत घोलो ।।
आलोक दिव्य भर दो संसार आज विमला ।
ब्राह्मी महाभद्रा वाणी में विराज मृदुला ।।

*उषा की कलम से*
देहरादून 

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है

2122 1122 1122 22
काफिया - ई
रदीफ - रहती है

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है ।
राह मुश्किल है मगर फिर भी खुशी रहती है ।।

जुल्म की खत्म हदें कत्ल हुआ रिश्तों का ।
पीर इतनी है कि अब नींद खुली रहती है।।

और इंसान परेशान हुआ जाये अब ।
कितने खतरों में घिरी अपनी गली रहती है ।।

ये निगाहें ही करें रोज ही छलनी उसको ।
घर में रहती है मगर फिर भी डरी रहती है ।।

शर्म बेची है निजी स्वार्थ हुआ है हावी।
क्यों बुराई ये तेरे दिल में घुसी रहती है ।।

हद से बाहर तू कभी भी नहीं होना जालिम ।
राख में भी तो कहीं आग छुपी रहती है।

ख्वाहिशें खुशियों' की रखते हैं जमाने में सब ।
पर उषा बेरुखी' से रोज़ दुखी रहती है ।

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है
राह मुश्किल है मगर फिर भी खुशी रहती है

उषा झा देहरादून 

Sunday 14 February 2021

आह में मधुकर

आनंद छंद ये मात्रिक लय युक्त छंद है ।
2122 212

रात देखो चाँदनी।
नाचती है मोरनी ।।
झूमती कलि बाग में ।
आज भँवरे राग में ।।

चातकी सी नैन में ।
आस सजती रैन में
स्वर्ण किरणें भोर में
मोद मन आलोक में।

तितलियों की चाह में
भृंग सारे आह में ।
हो कली अब अंक में ।
रात मधुकर पंक में ।।

भ्रम का मन अंश हो ।
वेदना के दंश हो ।
मन वियोगी द्रोह में ।।
स्वप्न खोये शोर में

रात काली भी ढले
प्रेम सच्चे बस मिले
धीर धरते जो सदा
शूल दिल से हो जुदा

*उषा की कलम से

Saturday 13 February 2021

आ जाओ मनमीत



गीत 
16/ 14

जम रही धूल अब सुधियों के,ले  लो मुझे पनाहों में ।।
जल रही मनमीत सदियों से , दम निकले हैं आहों में ।।
 
जीवन दीया के मैं बाती ,,प्रियतम तुम  घृत बन जाना ।।
आस न बुझने देना अपना, प्रेम दीपक इक जलाना ।।
मिलके सुख दुख सिर्फ बाँट लूँ ,हो नेह छाँव बस अँगना 
निशि दिन सजन प्रतीक्षा तेरी, प्रेम सुधा मुझको चखना ।
चाहत दिल में बस यही चलूँ ,संग  प्रीत  के  राहों में  ।।
जम रही धूल अब सुधियों के ले लो मुझे पनाहों में ।।

प्रेम अगन में जलती निशि दिन,आँधी बुझा नहीं डाले ।
डरती दुनिया के नजरों से,, दिल जग में सबके काले।।
आ थाम एक दूजे के कर ,प्रणय धार  में  बह  जाए  ।।
 विरह वेदना भारी दिल में , नैनन  गगरी  भर जाए  ।।
तड़प रहा तन मन बरसों से, छलके पीर निगाहों में ।।
जल रही मनमीत सदियों से , दम निकले हैं आहों में।

नारी तो बाती होती है,, सदा पुरुष  ज्वलन  शक्ति  है।
एक दूजे बिन हम अधूरे,,द्वय उर भरे आसक्ति है  ।।
 संग पिया हो चमके अपने, निशि दिन सितारे आसमां  ।।
प्रीतम यादों को रौशन करना ,गिन रही तारे आसमाँ  ।।
 छोड़ गए जबसे साजन हो,नयन बहे इन माहों में  ।।
जल रही मनमीत सदियों से ,दम निकले हैं आहो में ।

प्रेम सुधा नित झर झर झरते,शुचि नेह पथ प्रशस्त करे ।
नर बिना नारी है अधूरी,,  बिन प्रिये दृग निर्झर झरे  ।।
युग युग से प्रियतम भटक रही , तेरी करूँ बस प्रतीक्षा  ।।
फैला कर आँचल माँग रही,प्रीत दान की अब भीक्षा ।
 सत्य सृष्टि द्वय हृदय मिलन से,उर कली खिले बाँहों मे।

जम रही धूल अब सुधियों के , ले लो मुझे पनाहों में  ।।
उषा की कलम से 
देहरादून उत्तराखंड़

मैं उषा झा  यह घोषणा करती हूँ कि यह मेरी स्वरचित, मौलिक ,

महि पर पधारो रघुवर

योग छंद
12/ 8 अंत 122 से अनिवार्य

हे रघुनंदन महि पर , आज पधारो ।
माँ बहनों की अब तो , लाज बचाओ ।

शत्रु घनेरे छलते , आज सुता को
रावण रूप बदल के ,हरे सिया को ।
दानव बने मनुज ये, शोणित पीते ।
संहार करो प्रभु ये, क्यों कर जीते ।।
जग को मर्यादा का , पाठ पढाओ ।

हे रघुनंदन महि पर, आज पधारो ।
माँ बहनों की अब तो,लाज बचाओ।

राम पिता की आज्ञा ,से वन धाये ।
ऐसे पूत कहाँ इस, जग पितु पाये ।।
तज गए कलयुगी , पूत प्यारे ।
वृद्धाआश्रम बैठे , बाँट निहारे ।।
बहते अश्रु मातु के, मान दिलाओ ।

माँ बहनों की अब तो,लाज बचाओ।
हे रघुनंदन आज महि पर,आज पधारो।

बनते बैरी भाई , रिश्ते भूले।
टूटी मन की शाखें ,कैसे फूले।।
छलते दीनों को ये, हुए अभागे ।
स्वार्थ हुआ हाबी ,नीति त्यागे ।।
रोते दीन हीन के, धीर बँधाओ ।

हे रघुनंदन महि पर , आज पधारो ।
माँ बहनों की अब तो , लाज बचाओ ।

*उषा की कलम से*
देहरादून

Friday 12 February 2021

ऋतु राज आए

2122 2122

कल्पनाएँ गढ रहा मन
द्वार पे ऋतु राज आए ।

हो गई कुसमित धरा है ।
प्रेयसी का जी भरा है ।।
वाटिका लगती सुवासित ।
देख जड़ चेतन प्रभावित ।।
जागती नव कामनाएँ ।
द्वार पे ऋतु राज आए ।

वल्लरी नव मस्तियाँ है ।।
नृत्य करती तितलियाँ हैं ।
रागिनी मृदु मोद भरती ।
प्रीत से नित बोध करती ।।
झूमती है हर दिशाएँ ।
द्वार पर ऋतु राज आए।
प्रेम के सौगात लाए ।।

तरु लता भी खिल खिलाती ।
गीत मृदु कोकिल सुनाती ।।
घोलती रसना हिया में ।
आस उरजित है जिया में ।
लुप्त सारी चेतनाएँ ।।
द्वार पे ऋतु राज आए ।
प्रेम के सौगात लाए ।।

ओढ धानी चूनरी को ।
महि लजाती रूपसी को
तुंग दिखती हरितिमा है ।
पास आई प्रियतमा है ।

शशि निशा भी मुस्कुराए।।
प्रेम के सौगात लाए ।।

संग पिय मधुमास में हो ।
स्वप्न सच अब आज से हो।।
है विमल यह प्रीति जग में ।
सार जीवन रीति जग में ।।
प्रेम के सौगात लाए ।।

द्वार पे ऋतु राज आए ।


*उषा की कलम से*
यह मेरी (उषा झा) स्वरचित , मौलिक , प्रकाशित ,
अप्रेशित रचना है ।





Monday 8 February 2021

मिश्री की डली हिन्दी

मीठी डली लगे मिश्री सी ।
मृदुल सरस मन भावन हिन्दी।।

केसर चंदन की ये बिन्दी ।
मस्तक सजा रहे भारत का ।।
बंधन नही किसी धर्म पंथ का ।
बनी सदा पहचान हिन्द का ।।
करे नेह हर इक भाषा से ।
मौन रहती आंग्ल भाषा से ।।
घटा रहे संतान मान क्यों? ।
राष्ट्र भाषा पर अभिमान हो ।

वेद ऋचा सी पावन हिन्दी ।
मृदुल सरस मन भावन हिन्दी।

गौरव गान युगों से गाती ।
हिन्दी जग में शान बढाती ।।
अक्षुण रहे धरोहर सम्मान दो ।
हिन्दी को नवल पहचान दो ।।
निकली संस्कृत के गर्भ से ।।
भारतीय प्रीति रख संस्कृति से ।।
हिन्दी हर भाषा की जननी    ।
मिले अधिकार लक्ष्य हमारा ।
होगा अब विस्तार तुम्हारा ।।

छंद रचो नव गायन हिन्दी ।
मृदुल सरस मनभावन हिन्दी।।

*उषा की कलम से*
देहरादून उत्तराखंड

बसंत आगमन

विधा- शृंगार छंद

धरा ने कर ली है श्रृंगार ।
बसंत पुलकित खड़े हैं द्वार।।
रागिनी उरजित उर आगार ।
प्रीत मुखरित लगता संसार ।।

हृदय में अजब हुआ एहसास
सजन से मिलने की है प्यास।
पावनी बरसे  मृदुल फुहार  ।
हिया के बजते हैं हर तार  ।।
 
प्रेम आसक्ति भरे  मधुमास।
जगत रति मदन के हुए दास ।
खिले हैं शुचित  हृदय में  फूल ।
तभी मन भूल गए हैं शूल  ।।

नैन के कलशी छलके आज।
दबे हैं  उर में  कितने  राज ।।
बताना तुमको कितनी बात।
सपन सजना हो मदीर रात।।

मिलन मधुरिम की निशि दिन आस ।
अमा  देती  बस उर संत्रास ।।
तृषित मन चाहे प्रियतम दर्श  ।
अधर कर सुधा स्नेहील स्पर्श।।

उषा झा देहरादून

मुदित आँगन किलकारी से

गीत

सूना आँगन किलकारी से, मुदित हुआ।
एक सितारा पाकर आँचल , शुचित हुआ।।

मीठी लोरी सुनकर जिसको , नींद लगे।
उन्हें देखने , मातु पिता के , नैन जगे।।
थपकी देकर आँचल में जो , सबल हुए ।
जिम्मेदारी ,से वही पूत , मुकर गए।।
गुमसुम माता , पितु उदास नित ,व्यथित हुआ ।
पाकर आँचल .....

पुत्र बिना अब, प्यासी अँखिया तरस रही ।
ममता मोती नित बरसाती, बिलख रही ।
उन बिन जीना, मुश्किल लगता , छोड़ गए ।
मातु पिता से रिश्ते क्यों कर , तोड़ गए ।।
ठूठ साख हैं ,कब वो पुष्पित ,फलित हुआ ।
पाकर आँचल एक....

सूना आँगन, खटिया माली, विकल हुए  ।
हैं बेगाने, छाँव नेह के, विलग हुए।
क्यारी सूखी, उन बागों की , नीर बिना ।
टूटी लाठी,देख कमर की ,धीर बिना ।
किया उपेक्षित संतति क्यों कर ,भ्रमित हुआ ।।

सूना आँगन, किलकारी से, मुदित हुआ
पाकर आँचल एक सितारा , शुचित हुआ।।

*उषा की कलम से*
उषा झा देहरादून

Tuesday 2 February 2021

याद

स्मित मुस्कान अधर देकर विदा साँझ
एकाकी जीवन बस सुधियों की आँच।
स्निग्ध स्नेह की आभा फैली क्षितिज।
मेघ आसाढ का निर्झर झर रहा आज।

ओसारे पर लेटे रूग्न तन सोच रहा ।
हृदय विषाद घनेरे ये मीत लगे बदरा ।
जैसे हृदय टीस ले उमड़ घुमड़ रहा।।
भावित स्वप्न विहृवल मन कर रहा ।।

आकुल दादूर प्रेयसी को पुकारता ।
विरह व्याकुल मोर वन में नाचता ।।
प्रिय संदेश लिए चंचल बदरा बरसता।
अंतस् में मृदुल स्मृति हृदय मचलता ।

घन गर्जन से कम्पित उर वसुधा के ।
उतरे गगन लिए शत धार सुधा के।।
मृदुल राग अब श्वास श्वास में घुलती।
मंद सुगंध तन मन प्लावित वसुधा के।

सावन भादव मन सुकोमल भाव भरे ।
विरही उर एकाकी आहत अलाव जरे ।।
चपला चमकी पल भर को आस सजी
सूखे उर में प्रतिपल बस प्रेम जलाव भरे ।

*उषा की कलम से*
देहरादून