Sunday 31 March 2019

स्वर्ग बन जाए धरती

मिले निवाला जब सबको तब,,रहते न कोई छोटा बड़ा।
पूरी हो सबकी जरूरतें ,, नेह हृदय में रहता उमड़ा ।।

हक न छीने कोई किसी का , लालच प्रेम पर न भारी हो।
रिश्तों की बगिया महके तब, उर ममता से बलिहारी हो ।  
दीनों का मिट जाए पीर सभी,रोटी कपड़ा व मकान  मिले
उज्वल रहे देश का भविष्य,दीये शिक्षा की हर गाँव जले ।।
हर गेह नेह प्रकाशित रहे,,हो न जब हृद में नफरत जड़ा
पूरी हो सबकी...

मिल बाँट कर जब सब खाता,जलता है सबके घर चुल्हा।।
प्रेम प्रीत की गंगा बहती ,,नफरत के दिन फिर ढला ढला।
भेद भाव की दीवार गिरे , बनता है समाज समता का ।।
धन का वितरण एक बराबर ,हर गृह में फिर लगे ठहाका।
जाति पाति का बैर मिटे तो,कुटिल दूर रहता खड़ा खड़ा।।
मिलते जब सबको .....

मित्र बने जीव जन्तु वन में ,,लगे बाघ हिरण गले मिलने ।
सब पशु मिलकर नाचे गाये,,डरे न अब शेर से मेमने  ।।
दुश्मनी किसी से जग में हो , बन जाए फिर धरा स्वर्ग ।
काश मिले सबके दिल ऐसे ,अपनों पे हो तब सदा गर्व ।।
एक तालाब में प्रेम बहे ,,हो मछली के संग केकड़ा ।।
मिले जब सबको .....

बेखुदी (गजल)

खुशी यूँ सभी पे लुटाती रही है
छिपा के दर्द वो हंसाती  रही  है

कर्ज प्रेम का तू चुका कब सकेगा
नयन ख्वाब तेरा सजाती  रही  है

तुझे चाह कर क्या खता हो गई थी
अभी तक मुझे गम रुलाती रही  है

पलट कर न देखा कभी भी मुझे वो
दिलाशा हृदय को  दिलाती  रही  है
 
तमाशा बनाया  फरेबी जहां को
उसे बेखुदी  ये   सताती  रही   है
   
कभी भी  शिकायत न करती किसी से
सभी  राज अपना  छुपाती   रही  है

मुक्कद्दर में  बेवफा  ही  लिखा  था
सिर्फ पीर दिल के  दिखाती  रही  है

Thursday 28 March 2019

पिता की पुण्य तिथि

अहीर छंद- अहिर छंद

पितु जाने किस देश,, यादें हैं अब शेष
बह रहे नित्य नीर,,धरे न मन अब धीर
चले गए जब छोड़ ,,,बचे उनके न जोड़
थी मुदित बाँह झूल ,,,पाऊँ न उन्हें भूल

उनका अप्रतिम शान,,छिड़के सब पर जान
उन में था गजब रोब,,करे झूठ पर क्षोभ
बिन पिता हूँ अनाथ,,उन्हीं से थे सनाथ
 सुने मन मधुर गूँज ,, हुए खत्म नेह पूँज,,

कितने हुए उद्धार ,,किए बहुत उपकार
बने पिता हर बार ,,,नैन बहे अश्रु धार
माँ संग सभी उदास,,,मिलन की न अब आस
पुण्य तिथि में दिल शाद,, करते हैं हम याद

माँ की बिमारी

विधा- अहीर छंद

माँ है बहुत बिमार ,,डाॅ करते उपचार
चल भी कहाँ पाती,,पीड़ित छटपटाती
मर्ज बहुत पुराना,,प्रभु जान बचाना
आफत से अंजान,,परिवार परेशान

हालत है नासाज,,हुए हैं सभी जाँच
आपरेशन न टाल ,, संशय न कोई पाल
घुटने के बदलाव ,, डाॅ ने दिए सुझाव
होगा दुख का हरण ,, मिलेगा नव जीवन

हो गया आपरेशन,, सहमे हैं आनन
डर रहे हैं बच्चे,,,दिल के बहुत कच्चे
चार कदम माँ चली,,पुष्पी उर के खिली
हर्ष में डुबे सभी,,आए न आफत कभी

बिसात में अभिमन्यु

क्लांत मानवों के हहाकार
सड़े लाशों से उठ रहे दुर्गन्ध
चील कौवे की चीख पुकार
तमाशबीन के लगे बजार

पालतु पशु पर खर्च हजार
मलाई मक्खन खाता स्वान
भूख करे अंतड़ियों पे प्रहार
दीन के घर रोटी की मार

दाँव पर लगी देश की स्मिता
अभिमन्यु बिसात में फँसता
चोर चोर बना मौसेरा भाई
देशहीत का सिर्फ प्रचार

गला रहे नेता दाल आया चुनाव
सियासी चाल उलझे शेर सियार
दे रहे वो लोक लुभावन प्रस्वाव
कहे वही असली सरकार

गरीबों की रोटी बने हैं हथियार
घड़ियाली आँसू बहा रहे प्रपंची
सुदामा घर रूके चमचमाती कार
गरीबी रेखा जन आधार

गम नुक्कड़ पे

विधा -मनहरण घनाक्षरी

सोहे मुस्कान मुख पे
गम दूर नुक्कड पे
पति पत्नी जब संग
रिश्ते सारे ही निखरे

खुशी के पंछी चहके
आंगन कलि महके
जिये सरिता सी निश्चल
सीपी में मोती बिखरे

प्रेम में विलीन ऐसे
मिश्री पानी घुले जैसे
अंह की न गुजांइश
प्रीत घट हृद भरे

उम्र बढ़े प्रेम उफने
कठिनाइयों से भरे
जीवन के पगडंडी,
मिल के वो नापा करे
***
पी से मिले जब दिल
मन में खिले कमल
पत्नी के हर्षित उर
ऋतु के लगे हैं फल

जी रहे सुखद पल
द्वार सुनहरा कल
रिश्तों में अब उमंग
बिखरे न पुष्प दल

हृद भरा कोलाहल
निकले न कोई हल
शैनःशैनःरूग्ण तन
सुख रहा नैन जल

बीते मधुरिम पल
सूना है हृदय तल
खाली है घर आंगन
शुभ दिन गए ढ़ल

Tuesday 26 March 2019

बेपरवाह

तेरी मुहब्बत को सिने में ही बसाया अब तलक
मैंने  बिखर के प्रीत अपना निभाया अब तलक

जब शाम होती तो लगे शायद अभी  छू कर गए  
दिल के जख्म पे खुद  मलहम लगाया अब तलक

थी ख्वाहिशे अब जिन्दगी भर साथ हो अपना सजन
छल झूठ का सपना सनम तुमने दिखाया अब तलक

हमने कभी परवाह की,उनपे सभी कुछ वार दी
क्यों बेवफा मुझको सरे रास्ते नचाया अब तलक

रिश्ते कई अनमोल जीवन में भुलाना है कठिन
हमने उन्हें अपने दिलों में ही छुपाया अब तलक
                    
स्वार्थ न हो तब भी कभी रिश्ता निभा, मिलते सकूँ
जो पास  दिल के थे उन्हें  तूने रुलाया अब तलक

कोई नहीं अब आह भरता सिसकती उन रूह पे  
नाराज किस्मत को सबों ने ही मिटाया अब तलक

Monday 25 March 2019

परित्याग

विधा- कविता

दरवाजे पे लगाए आँखे टकटकी
आहट न आई किसी के आने की
टूटी चारपाई पर पड़े वो गीले में
नब्ज चल रही बस जी रहे आस में
छोड़ गए संतान पड़ोसी के भरोसे
वृद्ध माँ पिता की साँसे हैं अटकी
मोह न छुट रहा सूत को देखने की

उम्मीद थी कोमल कोंपल खिलेंगे
उन्नत पौध  छाया दार वृक्ष बनेंगे
लगेंगे साख पे फल फूल विश्वास के
मजबूत दरख्त बन सहारा देंगे उन्हें
की थी हिफाजत दुष्ट कपटियों से
दी थी जिन्हें परवरिश बेहतरीन
आज वो ही कर गए  मुख मलीन

ये दुनियाँ है सिर्फ मतलब का
बदल गया अब रंग ज़माने का
शर्म लिहाज न अब किसी का
जो थे उनके टुकड़े कलेजे के
वो दुबके पल्लू में आसक्ति के
खिलाए निवाले अपने हिस्से के
भूले उन्हें ,दंश दिए अकेलेपन के

हिसाब लगाते माँ के ममत्व के
किसे मिले प्यार दुलार अधिक
नाप तौल रहे हैं प्यार पिता के
माता पिता बँट गए हैं बच्चो में
बारी आई जब उनकी सेवा की
निकल गए सभी पिछली गली
परवरिश को संतान गाली देके

था अभिमान उनके संस्कार पे
धोखा दे चले गए आने को कहके
देखा न संतान को जाने कब से
पल्ला झाड़ बुजुर्ग माता पिता से
औलाद मस्त अपने ही कुनबे में
यही तस्वीर आज आधुनिकता की
फर्ज से दूर हैं,चाहिए हक बराबरी की

उषा झा (स्वरचित)
उत्तराखंड़(देहरादून)

Monday 18 March 2019

माँ है बिमार

विधा--अहीर छंद

माँ है बहुत बिमार ,,डाॅ करते उपचार
चलने से लाचार,,पीड़ा है भरमार
मर्ज का हुआ भान,,प्रभु बचाना जान
आफत से अंजान,,परिवार परेशान

हालत है नासाज,,हुए हैं सभी जाँच
आपरेशन न टाल ,,कोई संशय न पाल
घुटने के बदलाव ,, डाॅ ने दिए सुझाव
पीड़ा होगी दूर  ,, जीवन सबका नूर

हो गया है इलाज ,, सहमे हैं हम आज
चल ली , है संतोष,, आए हृद को होश
मिट गए सभी पीर,,बहे खुशी के नीर
छा गए हर्ष धूप  ,, खिले हृदय के पुष्प

उषा झा (स्वरचित)

Saturday 9 March 2019

मनमीत

विधा- गीत

जल रही मैं सदियों से , तेरी ही प्रतिक्षा में
जम रही अब सुधियों के धूल,ले लो तुम पनाह में

जीवन दीया के मैं बाती ,,तुम भी घृत बन जाना
बुझने ना देना आस पिया, जोत प्यार के जलाना
मिलके सुख दुख बाँटू हो सिर्फ ,नेह छैया अंगना में
जल रही मनमीत सदियों से ....

प्रेम अगन में जलती हर दिन,,आँधी बुझा न डाले
डरती दुनिया के नजरों से,,, हैं दिल सबके काले
आ एक दूजे को थाम, हो,,,जाए फना संसार में
जल रही मनमीत सदियों से ....

नारी तो बाती होती है,,पुरुष है ज्वलन शक्ति 
अधूरे एक दूजे बिन है,,द्वय दिलों की आसक्ति
हम संग हो तो अपने चमके,,सितारे आसमां में
जल रही मनमीत सदियों से ,तेरी ही प्रतिक्षा में

दो दिल जब मिलते हैं प्रेम दीपक पथ रौशन करे
नर बिन नारी है अधूरी,, कौन इससे इंकार करे
यही सत्य है सृष्टि का नींव ,,नर नारि के मिलन में
 जल रही मनमीत सदियों से,तेरी ही प्रतीक्षा में
जम रही सुधियों के धूल ,ले लो तुम पनाह में  ।।

प्रो उषा झा रेणु 

सिक्को पे न डोल कलम

कमतर न कलम को आंक
तलवार से पैनी इसकी धार

कलम या तलवार कौन बड़ा है
प्रश्न बार बार मन में उठता है
एक दुश्मनों के शीश काटता
दूजा शब्दों से ही करता वार
तलवार से पैनी इसकी धार

कलम में ताकत है बेशुमार
निष्पक्ष लेखन से रख सरोकार
देर न लगता तख्ता पलटने में
मदांध शासक करे अत्याचार
तलवार से पैनी इसकी

जब निरंकुशता हद से बढता
झूठ जब सत्य पर भारी पड़ता
कलम लगाता अंकुश उन पर
कमाल किया कलम ने हर बार
तलवार से पैनी इसकी धार ...

कलम ओज भरती है वीरों में
इन्सां के संग निभाती अन्याय में
अश्रु पोछे कलम अबलाओं के
कलम ने काम किया है हजार
तलवार से पैनी इसकी ...

कलम में ताकत है अनगिनत
अरी को ललकार लहू बहाती
कभी लिखे शांति प्रेम संगीत
प्रेम पाती से पत्थर दिल जाए हार
तलवार से पैनी इसकी  ..

जब कभी कलम बिक जाता
समाज तब टुकड़ो में बँट जाता
दीन दुखियों पे ही गाज गिरता
कुत्सित मनोवृत्ति बहुत बेकार
तलवार से पैनी इसकी ...

कलम तुम अद्भुत अनमोल
सिक्को के खनक पे न डोल
आईना समाज को दिखा तुम
करना है बस इतना उपकार
तलवार से पैनी इसकी ...

Thursday 7 March 2019

दूषित निति कौरव का

विधा- बरवै छंद

पांडु पुत्र के न रहे ..अब अधिकार
ताऊ बैरी, किससे .. करे गुहार

स्वार्थ के रिश्ते, बहे..रक्त मवाद
भाई हो जब दुश्मन ..घर बर्बाद

भ्रष्ट दुर्योधन चले .. शातिर चाल
फंस गए सभी पांडव ..उठा सवाल

सकुनि के छल ने छीन..ली घर बार
पांडव छुपे वनों में ...ही परिवार

द्रोपदी को लगाया ,, जिस दिन दाँव
मार दिया कुल्हाड़ी,, कौरव पाँव

अबला की चीर हरण,,भरे बजार
कौरव पुत्रों के घृणित ,,,थे व्यवहार

कान्हा पांचाली की ,, सुनी पुकार
लाज बचा ली तब प्रभु,,कृष्ण मुरार

दुर्योधन के मन में... था अति लोभ
बंधी पट्टी मद की ...था हृद क्षोभ

छल घृणा से हुआ था ,,बड़ा संग्राम
रक्त बहे सगो के तय , यही अंजाम

रहे स्वच्छ पर्यावरण

लुप्त हरियाली से क्षुब्ध है वसुन्धरा
बिन बरसे नभ में घुमड़ रहे हैं बदरा
बिन नीर ताल तलैया सब सूखे पड़े
ग्लोबल वार्मिंग से मनुज संभल ले जरा

धुआँ धुआँ है जिन्दगी जलती पराली
गाड़ी की भीड़ ने आफत बुला डाली
दूषित पर्यावरण में है बेबस जीवन 
नित्य नीर बहाते हैं प्रकृति के माली

प्रकृति के संग खिलवाड़ अति महंगा पड़ा
कहीं कहीं जल प्लावन कहीं सूखा पड़ा
भूख से बिलख रहे सब, मानव लाचार
मृदा क्षरण से अब सारा जहान उजड़ा

पशु भूखा है खोज रहा हरियाली
घोसला बिन पक्षी के,कानन खाली
उभर रहे नदियों में रेत और बालू
जल बिन तड़पे मछली,जलाशय खाली

नादां इन्सां कंक्रीट के जाल बुन रहे
दिन प्रतिदिन पर्यावरण नष्ट कर रहे
वृक्ष कटान व केमिकल गैस से दुखी मही
रुग्ण सभी, दूषित वायु सांस में घुल रहे

जाग जा मनुज, वृक्ष लगा कर वृष्टि करा दे
पैदल चलकर अब प्रदूषण को हरा दे
कूड़ा का निस्पादन न ही यत्र तत्र कर
लो कपड़े की थैली प्लास्टिक बंद कर दे

Monday 4 March 2019

पुण्य तिथि

सबों को छोड़ गए ,,,पितु जाने किस देश
तीन वर्ष से नीर,,,, दृग में बचे न शेष
उनके बिन अधूरा,,,लगे हमें परिवार
वंद पलक करूँ प्रकट ,,,होती छवि हर बार

रोबदार व्यक्तित्व,, उनका अप्रतिम शान
दयालू इतने कि,,,,छिड़के सब पर जान
निश्छल हँसी की, अब,,,तलक सुने दिल गूँज
बिन पिता हूँ अनाथ,,हुए खत्म नेह पूँज

पुण्य तिथि पर पितु को, करे दिल बहुत याद
धी मैं उस विभुति की ,,,,दूँ नसीब को दाद
लूँ जब भी जनम वो, बने पिता हर बार
विनती तुमसे प्रभु ,, नैन बहे अश्रु धार

Friday 1 March 2019

आलम मदहोशी के

रविधा --पदपादाकुलक छंद

ओ पिया आ गया वसंत है
उनमुक्त भ्रमर बाग में है
खिल रही कली उर में मेरी
तकती राहें निश दिन तेरी

सज संवर सजनी इठलाती
पी संग सखी नयन मटकाती
रंग रही रूत सबके उर्मी
मधुमास में मिले द्वय प्रेमी

कोयल की कूक अब न भाती
छन छन पायल शोर मचाती
साजन बिन सब फीका लगता
बैरी पी याद नहीं करता !

सज धज दुल्हन बनी मही
ख्वाबों के झूला पींग रही
मन भाए खुशबू कलियों के
आया आलम मदहोशी के

नव पल्लव से तरु प्रमुदित
मन कूँज प्रीत से सुवासित
कुसमित कानन दिल हर्षाए
प्रियतम हृदय बहुत बौराए