क्लांत मानवों के हहाकार
सड़े लाशों से उठ रहे दुर्गन्ध
चील कौवे की चीख पुकार
तमाशबीन के लगे बजार
पालतु पशु पर खर्च हजार
मलाई मक्खन खाता स्वान
भूख करे अंतड़ियों पे प्रहार
दीन के घर रोटी की मार
दाँव पर लगी देश की स्मिता
अभिमन्यु बिसात में फँसता
चोर चोर बना मौसेरा भाई
देशहीत का सिर्फ प्रचार
गला रहे नेता दाल आया चुनाव
सियासी चाल उलझे शेर सियार
दे रहे वो लोक लुभावन प्रस्वाव
कहे वही असली सरकार
गरीबों की रोटी बने हैं हथियार
घड़ियाली आँसू बहा रहे प्रपंची
सुदामा घर रूके चमचमाती कार
गरीबी रेखा जन आधार
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