विधा -मनहरण घनाक्षरी
सोहे मुस्कान मुख पे
गम दूर नुक्कड पे
पति पत्नी जब संग
रिश्ते सारे ही निखरे
खुशी के पंछी चहके
आंगन कलि महके
जिये सरिता सी निश्चल
सीपी में मोती बिखरे
प्रेम में विलीन ऐसे
मिश्री पानी घुले जैसे
अंह की न गुजांइश
प्रीत घट हृद भरे
उम्र बढ़े प्रेम उफने
कठिनाइयों से भरे
जीवन के पगडंडी,
मिल के वो नापा करे
***
पी से मिले जब दिल
मन में खिले कमल
पत्नी के हर्षित उर
ऋतु के लगे हैं फल
जी रहे सुखद पल
द्वार सुनहरा कल
रिश्तों में अब उमंग
बिखरे न पुष्प दल
हृद भरा कोलाहल
निकले न कोई हल
शैनःशैनःरूग्ण तन
सुख रहा नैन जल
बीते मधुरिम पल
सूना है हृदय तल
खाली है घर आंगन
शुभ दिन गए ढ़ल
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