विधा- बरवै छंद
पांडु पुत्र के न रहे ..अब अधिकार
ताऊ बैरी, किससे .. करे गुहार
स्वार्थ के रिश्ते, बहे..रक्त मवाद
भाई हो जब दुश्मन ..घर बर्बाद
भ्रष्ट दुर्योधन चले .. शातिर चाल
फंस गए सभी पांडव ..उठा सवाल
सकुनि के छल ने छीन..ली घर बार
पांडव छुपे वनों में ...ही परिवार
द्रोपदी को लगाया ,, जिस दिन दाँव
मार दिया कुल्हाड़ी,, कौरव पाँव
अबला की चीर हरण,,भरे बजार
कौरव पुत्रों के घृणित ,,,थे व्यवहार
कान्हा पांचाली की ,, सुनी पुकार
लाज बचा ली तब प्रभु,,कृष्ण मुरार
दुर्योधन के मन में... था अति लोभ
बंधी पट्टी मद की ...था हृद क्षोभ
छल घृणा से हुआ था ,,बड़ा संग्राम
रक्त बहे सगो के तय , यही अंजाम
No comments:
Post a Comment