Sunday 31 March 2019

बेखुदी (गजल)

खुशी यूँ सभी पे लुटाती रही है
छिपा के दर्द वो हंसाती  रही  है

कर्ज प्रेम का तू चुका कब सकेगा
नयन ख्वाब तेरा सजाती  रही  है

तुझे चाह कर क्या खता हो गई थी
अभी तक मुझे गम रुलाती रही  है

पलट कर न देखा कभी भी मुझे वो
दिलाशा हृदय को  दिलाती  रही  है
 
तमाशा बनाया  फरेबी जहां को
उसे बेखुदी  ये   सताती  रही   है
   
कभी भी  शिकायत न करती किसी से
सभी  राज अपना  छुपाती   रही  है

मुक्कद्दर में  बेवफा  ही  लिखा  था
सिर्फ पीर दिल के  दिखाती  रही  है

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