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तुम्हें फिर याद कर आँखें जगी बस पीर सोती है ।
उदासी अब गमों के बीज ही हर वक्त बोती है ।।
कभी तुमने मुझे भी प्यार कर रखते पनाहों में ।
पराये क्यों किया उर जख्म से बेजार रोती है ।।
हृदय तो अब तलक मंजर मिलन के देख कर जीता ।
सुहाने दिन ढ़ले अब भी जतन से क्यों सँजोती है ।।
जला दिल बात कड़ुवी याद करके पिघलती रहती ।
तड़प कर मन मुझे अब आस बंधाती न होती है। ।
हमेशा मन दुखाया जो उसे मैंने दिया ये दिल ।
जगी अब नींद से उनपर सभी विश्वास खोती है ।।
उषा झा (स्वरचित )