Thursday 31 October 2019

कड़वी याद


122 2     122 2           12 22     1222
तुम्हें फिर याद कर आँखें जगी बस पीर सोती है ।
उदासी अब गमों के बीज ही हर वक्त बोती है ।।

कभी तुमने मुझे भी प्यार कर रखते पनाहों में ।
पराये क्यों किया उर जख्म से बेजार रोती है ।।

हृदय तो अब तलक मंजर मिलन के देख कर जीता ।
सुहाने दिन ढ़ले अब भी जतन से क्यों सँजोती है ।।

जला दिल बात कड़ुवी याद करके पिघलती रहती ।
तड़प कर मन मुझे अब आस बंधाती न होती है। ।

हमेशा मन दुखाया जो उसे मैंने दिया ये दिल ।
जगी अब नींद से उनपर सभी विश्वास खोती है ।।

उषा झा (स्वरचित )

खंडित विश्वास

रुला गया क्यों बेवफा,क्या था मेरा दोष?
नीड़ प्यार का जल गया,रिक्त प्रेम का कोष।

दूध सपोले को पिला, किया सदा विश्वास 
डंक मुझे अब मारता,शेष न कोई आस ।

टूटे रिश्ते काँच से,भरी हृदय में आग।
मुखड़ा उसका चाँद सा,लेकिनउसमें दाग 

जीना क्यों मुश्किल हुआ, करता रहा  प्रहार 
मात-पिता उसके लिए,लगते असह्य भार 

आँधी क्यो बनता पिया, उड़ा दिया क्यों नीड़?
दो राहों पर मै खड़ी,देख रही जग भीड़ ।।

रीत रहा घट हृदय का, छलता क्यों है  प्यार।
बीज प्रपंची बो गया, वोछलियाअवतार ।

नही धार तलवार पर,चलना है आसान ।
करे कैद जज्बात को, वो पत्थर इन्सान ।

Saturday 26 October 2019

प्रेम दीप जले

विधा - सुन्दरी सवैया
आठ सगण और गुरू (112/8 2)

112   112   112     112  112  112 112  112 2
धनतेरस की शुभ साँझ भये धन धान्य सभी घर में बरसा दे
घर द्वार सजा सब बैठ गए कब आंगन पैर कुबेर सहसा दे
मन ज्योति जले ,दिन रैन बढे खुशियाँ कमला धन तू बरसा दे
 मग दीपक एक जले यम दूर रहे वरदे, मुख सिर्फ हँसा दे

प्रिय नेह भरे जब दीप जले मदहोश हुआ मन भींग रहा है
 घर रौशन प्रेम करे सबके घृत डाल अहं ,हृद पींग रहा है
मुख दर्शन को उनके मचले मनमोहन, क्यों उर धींग रहा है 
बस प्रीत प्रकाशित हो दिल में तम दूर रहे , तन भीग रहा है

Friday 18 October 2019

वियोग


1222      1222   122 2    2212
प्रिये मेरी खबर ले लो उदासी तड़पा रहा   ।
तुम्हारी याद देते दर्द मुझको अब भटका रहा  ।।

अभी तक देखती राहें तुम्हें ही दिल चाहा करे
प्रणय के दिन दिखाते ख्बाव कितने,मन महका रहा ।

कई दास्तान की खोली अभी मैंने फिर पोटली ।
पुरानी याद नस्तर क्यों चुभा कर तन दहका रहा ।।

अकेली अब चली जाती विरानी सी सूनी डगर  ।
वफा पर चोट गंभीर , जख्मी तन सहला रहा  ।।

जिगर की है जगी आशा कभी मुझपर बहुरे सजन  ।
निराशा में मरू तृष्णा नयन को फिर दिखला रहा ।।

उषा झा (स्वरचित )
देहरादून( उत्तराखंड )

सीता स्वयंवर


विधा- मनहरण घनाक्षरी
8, 8, 8, 7
तोड़ दिए धनु राम
बज उठे शंख नाद
हर्षित थे ऋषि संग
जनकपुर धाम

जनक के प्रण पूर्ण
डाल दी सिया माला
द्वय दिल एक हुए
मिले तप का दाम

देख के टूटे घनुष
विश्वामित्र थे मायूस
ऋषि दाए ज्यों ही शाप
मिले दुष्परिणाम

खतम हुआ आवेश
हृद हुए भावावेष
हुए बहू पश्चाताप
बिगड़े सब काम

होनी पर बस नहीं
दो दिल मिले नहीं
विलग हुए थे दोनों
भाग्य हो गए बाम

उषा झा (स्वरचित )
देहरादून उत्तराखंड

Sunday 6 October 2019

स्वार्थ लील गए रिश्ते

सिंहावलोकित(दोहे )

चालें बाजीगर चली  ,फँस जाते मासूम  ।
मासूम दूध से धुले, पकड़े शातिर दूम  ।।

हृदय में टकराव बढी, आये रिश्ते स्वार्थ ।
स्वार्थ कारण विनाश के, कर मनु कुछ परमार्थ ।।

लालच की पराकाष्ठा , करे करु क्षेत्र  याद ।
याद अनगिनत हृदय में , अपनों में ही  बाद ।।

लालच भारी प्रेम पर, लहू का कहाँ  मोल ।।
मोल जब होता  दिल का, रिश्ता फिर अनमोल ।।

जाना खाली हाथ है , छुपे हृदय क्यों  दाग ।
दाग तो भद्दा दिखता, सजा हिया के  बाग ।।

Friday 4 October 2019

रेख मनुजता की

विधा - श्रृंखला बद्ध  (दोहे)

वशीभूत हरि प्रेम के, हृदयंगम में  भक्त ।
बँध जाते है स्वयं हरि,नियम खत्म सब सख्त।

नियम खत्म जब सख्त हो , बहे व्यर्थ में  रक्त ।
मानवता पर चोट जब, तब मर्यादा  जप्त ।।

तब मर्यादा जप्त हो ,आता हरि को क्रोध ।।
तन विराट धारण किए  , हरि के रूप अयोद्ध  ।।

हरि के रूप अयोद्ध थे , समा गए संसार ।
यशुदा इतनी डर गई,विस्मित नैन निहार ।

विस्मित नैन निहारती,  कुटिल मनुज  को देख ।
गिर मनुष्य कितने गए , मिटे मनुजता रेख ।।

मिटे मनुजता रेख जब ,  घृणा बिकै बाजार ।
प्रेम नेह दिल में नहीं,  रिश्ते है मँझधार ।।

रिश्ते है मँझधार में, करे प्रेम व्यापार ।
बना खिलौना दिल  लिया, जता रहे अधिकार ।।

सपने पूच्छल तारे

विधा - गीत

ख्वाहिशें ली अंगड़ाईयाँ, जुगनू बन चमक रहे
आये तारों की बाराती , क्यों गुमसुम खड़े गुणे ।

आज मन पंछी सा उड़े हैं ,तुमको ही ढूंढ रहे
देख क्षितिज में लाली छायी, प्रियतम इन्तजार में ।
फिर से मृगमरीचिका देखो, मरू में भरमा रहे
नैन आस की बदली आई, सुहाने दिन ढल रहे।
ख्वाहिशों की....

ये कैसी उर को प्यास लगी , बेबस पाँव जमे हैं
कौंध रही यादों की बिजली , जड़वत हुए ठगे हैं ।
पूनम की रात बैलगाड़ी, लिये सैर को निकले
थँसा वक्त का पहिया ज्यूँ ही, अब तो दम निकल रहे।
ख्वाहिशों .....

दूर चले आए हम कितने , छुट गए सभी अपने
तन्हा सफर कटे अब कैसे, पूच्छल तारे सपने ।
छोड़ जगत को जो जाते हैं,बने प्रकृति के गहने
लता वृन्द में खोज रहे हैं , वृन्दावन भटक रहे ।
ख्वाहिशों .....

Wednesday 2 October 2019

सपना गाँधी का

विथा- सिंहावलोकित (दोहे)

गाँधी का एक सपना, हिन्सा जग हो खत्म ।
खत्म ईष्या द्वेष करें,  मिटा हृदय से क्षद्म ।।

कहते गाँधी थे हमें , रिश्ते रहे प्रगाढ़ ।
प्रगाढ़ प्रेम विभेद बिन,लाओ हृद से काढ़।।

नहीं मनुज भूखा  रहे,सपने भर लो नैन
खुशियाँ छलके नैन से ,भरे नेह से रैन ।।

ऊँच नीच निकृष्ट कथन ,सब है एक समान ।
समान काया मनुज के,विचार क्यों असमान।।

जल वायु खुशी गम मिले,सभी ईश के पुत्र ।
पुत्र धर्म का फर्ज कर, लक्ष्य से  गुम कुपुत्र ।।

द्वेष हाॅवी मानव पर , राह करे अवरुद्ध ।
राह अवरुद्ध दुखद है , रहते गाँधी क्षुब्ध ।।

बापू ने जो सीख दी, दिल से कर स्वीकार ।
स्वीकार कर स्वच्छ धरा , अब न करो अपकार ।।

Tuesday 1 October 2019

रिश्ते प्यार से

विधा' - सिंहावलोकित दोहे

दिल के रिश्ते, युगों से, हुआ प्रेम-आधार ।
आधार, प्रीत जगत की,बने तभी संसार ।

मन-मंदिर में प्रेयसी, बसी हैं रोम-रोम ।
रोम-रोम हर्षित हुआ,करे प्रेम, हृद मोम ।

पलकों में प्रियतम बसे,देख रही वो राह ।
मुश्किल कितनी, राह हो,प्रीत है बेपनाह

मोती टपके नैन से,  देते  प्रीतम  शूल।
शूल से बोझिल,पलछिन,उड़े ख्वाब के धूल ।

दंश-विरह के जब मिले,मुख से निकले आह।
आह से प्राण न निकले  , ईश करे आगाह ।।

रहें संग, दोनों युगल, हो जीवन में प्यार ।
प्यार बिन अधूरे मनुज , बहे प्रेम रस धार  ।।

चाहत के इकरार से , है जिन्दगी हसीन ।
हसीन जब हो हमसफर , भाग्य नहीं फिर दीन ।।

विश्वास, त्याग, नेह से,दिल लेते हैं जीत ।
मान हार लो जीत कर,यही प्रीत की रीत  ।।

उजड़े घर फिर से बसे, दिल में हो संकल्प
संकल्प से रिश्ते सुधरे  , बस प्रेम ही विकल्प ।।