विधा- मनहरण घनाक्षरी
8, 8, 8, 7
तोड़ दिए धनु राम
बज उठे शंख नाद
हर्षित थे ऋषि संग
जनकपुर धाम
जनक के प्रण पूर्ण
डाल दी सिया माला
द्वय दिल एक हुए
मिले तप का दाम
देख के टूटे घनुष
विश्वामित्र थे मायूस
ऋषि दाए ज्यों ही शाप
मिले दुष्परिणाम
खतम हुआ आवेश
हृद हुए भावावेष
हुए बहू पश्चाताप
बिगड़े सब काम
होनी पर बस नहीं
दो दिल मिले नहीं
विलग हुए थे दोनों
भाग्य हो गए बाम
उषा झा (स्वरचित )
देहरादून उत्तराखंड
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