काफिया - ई
रदीफ - कर ली
विधा - गजल
2122 1212 22/112
मीत से थोड़ी' दिल्लगी कर ली ।
जिन्दगी यार फिर दुखी कर ली।
ठोकरों ने मुझे दिया हिम्मत ।
मंजिले हमसे दोस्ती' कर ली ।।
बात कोई अगर लगी दिल पर ।
जख्म पर फिर दवा तभी कर ली ।।
आरजू थी हसीन दिलबर हो ।।
जुस्तजू में 'आँखे नमी कर ली ।
शौक ऊँचे मकाम की थी' उसे ।
जब लगी चोट खुदकशी कर ली ।।
प्रेम नफरत स्वभाव में आया ।
सोच जैसी भी' जिस घडी कर ली ।।
ख्वाब पूरा नहीं किया रब ने ।
कुफ्र दिल में तभी घनी कर ली ।।
देश के संग क्यों किया धोखा ।
हसरते पाजी' क्यों बड़ी कर ली।
हाल देखो उषा जहाँ के अब ।
डूबती शाम सरवरी कर ली ।
*उषा की कलम से*
देहरादून
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