Wednesday 30 June 2021

विरह राधा

राधा विकल, मन हो चली।
तिल तिल विरह, में वो जली।।

चितचोर ले, कर दिल गया ।
धेनू सखा, बिसरा गया ।।
टूटे सभी सपने सखा ।
छलिया छुपे नेहा दिखा।।
सूनी हुई गोकुल की गली।
राधा विकल मन हो चली ।

कान्हा छुपा, मथुरा नगर ।
दिल को चुरा, कर बेखबर  ।।
प्रीतम कहीं , बिसरा गए ।
नेहा लगा, बहला गए ।।
मुरझा गई मन की कली ।
राधा विकल मन हो चली ।
   
छलिया खुशी,भी ले गया ।
घनश्याम क्यों रूला  गया ।।
माधव कहाँ, किस का हुआ ।
सहना विरह, भारी हुआ ।।
आँखिया लड़ाई क्यों भली ?
राधा विकल मन हो चली ।।

कैसे जिए अब सांवरी ।
कितनी दुखी , है बावरी ।।
बंसी बजा ,अब मोहना ।
तुम क्यों भुला, हरि बोलना।।
केशव छले गोकुल लली ।
राधा विकल मन हो चली ।।

जीवन व्यर्थ, अब हो गए ।
मन संग वो ,लेकर गए ।।
दरशन नहीं, देते मुझे ।
तड़पा रहे , गिरधर मेरे ।।
 सत प्रीत में पीड़ा मिली ।
राधा विकल मन हो चली ।

ब्रजभूमि भी, सूना पड़ा ।
मायूस सब, कोई खड़ा ।
माधव हृदय , क्यों न पढ़ा ।
छल दोष सब,  ने ही मढा ।।
बस दंश पाई मनचली ।।
राथा विकल मन हो चली ।।

बेकार मन, माया में पड़ा ।
पट्टी खुली , दृग था पड़ा ।।
जा उद्धव अब ,तू ना सिखा।
झूठी नहीं ,आशा दिखा ।।
चाहत सदा सबको छली ।
राधा विकल मन हो चली ।।

उषा झा  

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