Saturday 12 June 2021

आस सजे श्रमजीवी के

विधा- ताटंक छंद
16 / 14 अंत तीन गुरु

आशाओं का संदेश लिए, नव प्रभात जब आएगा ।।
भर जाएगी झोली उनकी, सौगात शुभ्र लाएगा ।।

उषा काल धरणीधर देखो,मुदित खड़े वह रेतों में।
साँझ सवेरे धूल सने तन, श्वेद बहाते खेतों में ।।
करे परिश्रम सच हो सपने, नित गगन निहारे वो ।
दो बूँद बरस जा री मेघा ,नित भविष्य सँवारे वो ।।
खेतो में फसले लद जाए ,हृदय कमल खिल जाएगा ।
आशाओं का संदेश लिए , नव प्रभात जब आएगा ।।

कृषक दुखी है, व्यापारी, स्वार्थी भाव गिराता है ।
झूठे सपने भरे नयन में,क्यों मन को भरमाता है।।
सेठ, सरकार जब छल करता,श्रमजीवी बस रोता है ।
गुदड़ी सीकर वस्त्र पहनता,बीज खुशी का बोता है ।।
मोल परिश्रम का मिल जाए, गीत खुशी के गाएगा ।
आशाओं का संदेश लिए , नव प्रभात जब आएगा ।।

पूँजी नहीं यकीं हाथों पर , फिर भी खेत लहलहाते ।
अपना पीठ जलाते हलधर , मरु में सोना उपजाते ।।
फल फूल लदे हैं पेड़ो पर ,पशु पंछी भी मुस्काते ।।
मायूस मन दृग कोर भींगे, जग प्रतिपालक नीर बहाते ।।
लाभ योजनाओं के पहुँचे , नेहिल दीप जलाएगा ।।
भर जाएगी झोली उनकी , सौगात शुभ्र लाएगा ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून

जग प्रतिपालक नीर बहाते


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