Monday 27 December 2021

गुल्लू और बिल्लू(बाल कहानी)

बिल्लू और गुल्लू दो जुड़वे भाई थे । एक माँ के कोख से
पैदा होने के बावजूद दोनों विपरीत स्वभाव के थे ।
गुल्लू भोला -भाला और बिल्लू लोमड़ी के तरह लालची
और चालाक ।इस बात को माँ पिता और बहनें समझती
थी ।इसलिए सभी गुल्लू को बहुत प्यार करते थे और
बिल्लू को सभीं से झिड़की मिलती थी ,कभी - कभी
थप्पड़ भी खा जाता था ।
एक दिन बिल्लू ने कहा..." अरे ओ गुल्लू इधर आओ
तुम्हें कुछ दिखाना चाह रहा हूँ !
गुल्लू ने कहा बिल्लू मैं समझ रहा,"तुम मुझे छका रहो हो.. हरदम मुझे फुसलाते रहते हो।"
पर बिल्लू हाथ पकड़ कर खींचते हुए गुल्लू को ले गया,
और गुल्लक दिखाते हुए बोला ..."देखो तुम्हारा गुल्लक
भर गया है...।"
"जरा इसको फोड़कर देखो तो , कितने रूपये जमा हो गए ", बिल्लू ने गुल्लू से कहा ।
गुल्लू के भी मन में उत्सुकता हुई ,और वह गुल्लक को
को हिलाकर देखा तो , वह भर भी गया था ।
उसने आव- देखा- न ताव देखा खट से जोर से जमीन पर पटक दिया ।इतने सारे पैसे देख बिल्लू के मन उथल पुथल मच रहा था । फिर उसने गुल्लू से कहा ,
"मैं भी पैसे गिनने में तेरी मदद कर दूँ....।"
"गुल्लू ने कहा हाँ -हाँ भाई जरूर , तुम मदद कर दो ।"
इधर ढेरों पैसे देख बिल्लू के मन लालच आ गया था ।
वो तरकीब लगा रहा था कैसे ,गुल्लू से पैसे ठगे जाए ।
पैसे गिनते- गिनते बिल्लू ने कहा ,"देखो गुल्लू तुम्हारे
कितने सारे पैसे काले पड़ गए हैं।"
देखो भाई ये पैसे तो भदवा पैसे ( बेकार) माने जाएँगें।"
"भाई इसे फेंक दो , इससे तो कुछ नहीं आएगा ।"
गुल्लू ये सुनकर मायूस हो गया ।फिर बोला ,
"ठीक है इन पैसों को नाली में फेंक देते हैं ..।"
बिल्लू ने बड़ी चालाकी से कहा , अरे मैं फेंक आता हूँ
गड्ढे में इसको ।"
"गुल्लू ने कहा मैं भी चलता हूँ तेरे साथ ।" पर बिल्लू ने
होशियारी दिखाई फिर कहने लगा , "तू बाकि पैसे तब
तक सँभाल ले ।" नहीं तो ये पैसे कोई उठा लेंगे ।
"तब तक मैं भदवा (बेकार ) पैसे को फेंक आता हूँ।"
और बात पूरी करते करते वह तेजी से उड़ गया ।
सारे पैसे को किसी नल के पानी से चमकाया और जाने उस पैसे से क्या क्या खरीदा... ।
चहकते हुए वह घर जब लौटा तो बिल्लू के हाथ खिलौने
खाने के सामान से भरे थे । गुल्लू ललचाई नजर से भाई को देख रहा था । कहने लगा मुझे भी दे दो । पर वह तो एक दाना भी देने को तैयार नहीं था । उसने कहा ,
"ये मैंने अपने पैसे से खरीदा है ।तुम्हें कैसे दे सकता हूँ ।"
।गुल्लू के आँखों में आँसू भरे थे । पर वह चुपचाप घर के अन्दर चला गया । माँ ने जब गुल्लू को उदास देखा तो पूछने लगी ," कहो गुल्लू क्या बात है क्यों रोनी सूरत बना रखे हो।"
उसने बिल्लू के तरफ इशारा किया कहा "भाई मुझे नहीं दे रहा चीजी खाने को ।"
माँ पापा ने फिर कड़क कर कहा कहाँ से लाए पैसे बताओ ?तुम्हारा गुल्लक तो भरा है ।हमने पैसे दिए नहीं , सच -सच बता कहाँ से पैसे लाया ।माँ -पापा के डर दिखाने पर बिल्लू सच उगल दिया ।उस दिन उसकी खूब धुनाई हुई । फिर बिल्लू को मुर्गा बनाकर कसम खिलाई गई कि कभी किसी के साथ धोखा नहीं करेगा ? न कभी
झूठ बोलेगा वह ?
उस दिन के बाद से बिल्लू में बहुत परिवर्तन आ गया था ।
धीरे धीरे वह अच्छे बच्चे बन गए थे ।

*उषा की कलम से*
उत्तराखंड देहरादून
यह मेरी स्वरचित मौलिक रचना है ।साथ ही अप्रकाशित
अप्रेशित रचना है ।


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