Thursday 15 November 2018

रुसवा ममता

विषय- व्यंग्य

वृद्धाश्रम में अभिभावक , बहा रहे अश्रु रोज ।
कलेजे के टुकड़े को, हर पल करते खोज ।

डग मग चले थाम जिसे ,छोड़ा उनका हाथ  ।
जीवन के इस मोड़ पे ,छोड़ दिया सुत साथ ।

पाल पोस बड़ा करते , गम से रखते दूर     ।
बुढ़ापे का लाठी बन, प्रेम करे भरपूर       ।

ममता रूसवा हो गई,,किया ऐसा करतूत  ।
ऐसे संतान से भला, रहे सभी बिन पूत ।
 
 भूखा रह पाला जिसे ,रोटी दे वो भीख   ।
 नेह इतने दिए फिर भी ,याद न रही सीख ।

जीवन की सभी खुशियाँ ,देकर, सूनी है आँख ।
किया न परवाह उनका,गम दे दिए हजार लाख ।

सुत उनके सेवा करे  , करते हैं सब आस ।
स्वार्थी संतान के रहे , माँ बाप न अब खास  ।

पौध लगा कर आस की, देगा वो फल मूल  ।
ले गया कोई ओर फल , एहसास हुआ भूल ।

घर के  मालिक बदल गए  , हुए बेघर माँ बाप ।
सीढ़ी पे सीढ़ी लगी  ,कर्म फल मिलते आप ।

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