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इंसान नहीं सच्चे है लाज कहाँ उसको
पट चीर रहे नारी अब मार भगा उसको ।
अबला न समझ कोई वो तो जगत जननी ।
सम्मान मिले हर स्त्री नर दो न सजा उसको ।
पहचान मिटा कर था अभिमान जिन्हें खुद पर
क्यों आज भुला बिसरा परिवार दिया उसको ?
जग पूज सदा माता संकल्प करो सब ये ।
वो मूल धरा की अब बहला न जहाँ उसको ।।
मन मोद रहे नारी, घर राज करे बेटी ।
मति भ्रष्ट कलुष को नर लो आज घटा उसको ।।
उषा झा स्वरचित
देहरादून उत्तराखंड
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