Thursday 5 November 2020

नारी अबला नहीं


 221    1222    221   1222
इंसान नहीं सच्चे है लाज कहाँ उसको
पट चीर रहे नारी अब मार भगा उसको ।

अबला न समझ कोई वो तो जगत जननी ।
सम्मान मिले हर स्त्री नर दो न सजा उसको ।

 पहचान मिटा कर था अभिमान जिन्हें खुद पर 
क्यों आज भुला बिसरा परिवार दिया उसको ?

 जग पूज सदा माता संकल्प करो सब ये ।
 वो मूल धरा की अब बहला न जहाँ उसको ।।

 मन मोद   रहे नारी, घर राज करे बेटी ।
 मति भ्रष्ट कलुष को नर लो आज घटा उसको ।।

उषा झा स्वरचित 
देहरादून उत्तराखंड

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