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क.
बेटी की मौत, कोख में ,
सरेआम हो आज रही ।
ममता की प्याली खाली,
कचरे में खो, नित्य रही ।।
हृदय लालसा बेटे की ,
सुता उपेक्षा सहती है ।
शर्मसार है आज सृजन
फूट कर वसुधा रो रही ।।
ख.
अत्याचारी छीन रहे
मातु पिता की नींदे तक।
नहीं सुरक्षित बच्ची भी ,
कोई सँभाले कहाँ तक?
जन्म ,कली लेगी कैसे ,
अभिभावक सब डरे हुए ।
स्कूल से घर तक बच्ची,
साये में डर के कब तक?
ग.
पढी -लिखी बेटी ब्याही ,
दौलत बिना न जा पाती ।
दहेज उजाड़ी जिंदगी,
बिटिया जान चली जाती।
हँसी खुशी घर सँभालती ,
पर खुद की परवाह नहीं ।
चाह नहीं चंद लम्हे की ,
बिटिया कभी न सुख पाती।
उषा झा देहरादून
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