Sunday 26 January 2020

सुवासित मन आंगन

जब यौवन की कलियाँ चटकीं, अलि मकरंद की चाह में 
मलय- पवन भी होश उड़ाता , छाता नशा निंगाह में ।
आवारा बादल घूम रहा , नेह बूँद जो बरस रही ।
मचल दिवाने गये रूप के, बैचेन दिल है , आह में ।

गुलशन की है शोभा न्यारी, मन मुस्काया मेरा है ।
पुष्प खिले हैं रंग- बिरंगे, मधुप जमाया डेरा है ।।
सांकल उर की खोल, मधुमास, सहसा भीतर घुस आया ।
प्रीति- रीति तज स्वप्न लोक में, नव नव नित्य सवेरा है ।

पलें ख्वाहिशें, नयनों में अब , जीवन भर पी संग रहे ।
तृषित- हृदय तब,तृप्ति मिले जब ,भरे प्रेम मन रंग रहे ।।
भागी तृष्णा, गया हृदय मरु, सुवासित ! देह परदेशी ।
पुलकित रोम-रोम , फूट गए, कोंपल रसना अंग रहे ।।

जब लिए थाम, तुम हाथ प्रिये  ,छूट न पाये , साथ कभी ।
पगी प्रीति दिन रैन हृदय में, हो न विरह की रात कभी ।।
घड़ी मिलन की बेला अनुपम, कटे प्रेम में यह जीवन ।
जीवन- संध्या संग पिया हो, नहीं मिले आघात कभी ।।

उषा झा देहरादून

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