विधा हरिहरण घनाक्षरी
8,8,8,8
मदीर बहे पवन ।
दूर धरा की तपन ।
महके चंदन वन ।
मुदित मानव मन ।
पुष्पित है गुलशन ।
सुरभित है कानन ।
सारिका फुदके वन ।
झूमता कोकिल मन ।
मन भावन सावन ।
पुलकित जन जन ।
पिया से लड़े नयन ।
पिघले नेह से मन ।।
बजे पायल छनन ।
जब खनके कंगन ।
भरे उमंग सघन ।
बहके प्रीतम मन ।
उषा झा
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