Thursday 2 January 2020

झूमे कोकिल मन

विधा हरिहरण घनाक्षरी 
8,8,8,8

मदीर बहे पवन ।
दूर धरा की तपन ।
महके चंदन वन ।
मुदित मानव मन ।

पुष्पित है गुलशन ।
सुरभित है कानन ।
सारिका फुदके वन ।
झूमता कोकिल मन ।

मन भावन सावन ।
पुलकित जन जन ।
पिया से लड़े नयन ।
पिघले नेह से मन ।।

बजे पायल छनन ।
जब  खनके कंगन ।
भरे उमंग सघन ।
बहके प्रीतम मन ।

उषा झा 

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